बाल श्रम मुक्त भारत बनाने के लिए बाल श्रम को लेकर संवेदनशीलता पैदा करने और कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू) और द्वाबा विकास एवं उत्थान समिति 1 जून से 30 जून तक उत्तर प्रदेश के दो ज़िलों प्रयागराज और कौशाम्बी मे ‘डोंट हेल्प द चिल्ड्रन बाई एम्प्लॉयिंग देम’ के नारे के साथ विशेष अभियान चला रही है। क्राई और उसकी सहयोगी संस्थाएं इस अभियान को प्रयागराज और कौशाम्बी ज़िलों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, वाराणसी, सोनभद्र, भदोही, चंदौली, लखीमपुर खीरी, बदायूं जनपद सहित देश के 26 राज्यों में संचालित कर रही है।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य समाज, जनप्रतिनिधियों, हितधारकों, पत्रकार, समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत प्रबुद्धजनो और बाल श्रम के संभावित नियोजकों की बालश्रम के बारे में मानसिकता बदलने, बच्चों को बाल श्रम से मुक्त और शिक्षा से जोड़कर बाल अधिकारों को सुनिश्चित करना है। यह अभियान कौशाम्बी ज़िले में सघन रूप से 5 ब्लॉक के 60 गांव में परिवार और समुदाय के साथ-साथ जनपद के प्रमुख चौराहों, होटल, ढाबों पर और प्रयागराज में शहर की बस्तियों में रहने वाले परिवारों और समुदाय के साथ बाल श्रम के मुद्दे पर बात की गई और उनके हस्ताक्षर लिए गए। समुदाय से बातचीत के समय बालश्रम का मुख्य कारण गरीबी तो बताया ही गया, मंहगी शिक्षा के मुद्दे पर भी सवाल उठाए गए।
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क्राई के नॉर्थ रीजन की डायरेक्टर सोहा मोइत्रा ने कहा कि बच्चों का किसी भी प्रकार के कॉमर्शियल काम में शामिल होना उनका बचपन छीन लेता है। यह उन्हें वयस्कों की जिम्मेदारियां ढोने पर विवश करता है। जो उन्हें पढ़ाई के साथ खेलों से भी वंचित कर देता है। इस कैंपेन के जरिए लोगों से अपील है कि बच्चों को नौकरी देकर उनकी मदद न करें। इसकी बजाए उन्हें पढ़ने, खेलने और बचपन जीने के मौके दें। इस मानसिकता को बदलने के प्रयास में, हमने इस अभियान की संकल्पना की है। इस अभियान के माध्यम से क्राई का उद्देश्य समुदाय में बच्चों को रोजगार से न जोड़ उन्हें सीखने, खेलने और खुशहाल बचपन जीने के अवसर देकर उनकी मदद करने का संदेश लोगों तक पहुंचाना है।
द्वाबा विकास एवं उत्थान समिति ने बताया कि भारत में बाल श्रम निषेध कानून 1986 में आने और बाल श्रम मुक्त भारत की घोषणा होने के बावजूद देश के कई इलाकों विशेष रूप से गांवों और बस्तियों में अभी भी बालश्रम पर रोक का सफल क्रियान्वयन पूरी तरह नहीं हुआ है और इसके बारे में जागरूकता की कमी है। रोज़गार एवं श्रम मंत्रालय भारत सरकार की अधिकृत वेबसाइट पर बालश्रम के सन्दर्भ में उपलब्ध डाटा सेंसस 2011 के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या 43,53,247 है और उत्तर प्रदेश में बाल श्रमिकों की संख्या 8,96,301 है।
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समिति ने बताया कि इस अभियान में संस्था के द्वारा कई जनप्रतिनिधियों को शामिल किया गया और मुद्दे पर उनके साथ संवाद किया गया और उनकी राय ली गई। अभियान के बारे में उन्हें बताया गया और उनके हस्ताक्षर लिए गए। अभियान में शामिल जनप्रतिनिधियों में सांसद विनोद सोनकर, सांसद रीता बहुगुणा जोशी, सांसद केसरी देवी पटेल, राज्यसभा सांसद शम्भू शरण पटेल, डॉक्टर के पी श्रीवास्तव, सदस्य विधान परिषद के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष कौशाम्बी कल्पना सोनकर, महापौर प्रयागराज गणेश केसरवानी, उप महापौर, प्रयागराज अनामिका चौधरी, ब्लॉक प्रमुख मंझनपुर, प्रयागराज नगर निगम के सभासद और 60 गांव के पंचायत प्रधान सहित 74 जनप्रतिनिधियों द्वारा अभियान के साथ सहमति दी गयी और हस्ताक्षर किये गए।
जनप्रतिनिधियों और अधिकारीयों और समुदाय के साथ ही न्यायिक अधिकरियों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता, अपर जिला जज एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कौशाम्बी देवेश गुप्ता, अध्यक्ष उच्च न्यायालय बार कॉउंसिल इलाहाबाद अशोक कुमार सिंह, कमल कृष्णा रॉय, ज़फर अब्बास, अध्यक्ष बार कॉउंसिल कौशाम्बी राकेश कुमार जायसवाल, किशोर न्याय बोर्ड सदस्य, कौशाम्बी मोहम्मद रैहान, बाल कल्याण समिति अध्यक्ष, कौशाम्बी कमलेश चंद्र, सदस्य बाबीनाज़, बिंदेश्वरी प्रसाद, जय शंकर गुप्ता के द्वारा भी इस अभियान में हस्ताक्षर करते हुए समर्थन दिया गया।
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इसके अलावा मंडल, ज़िला स्तर, ब्लॉक और पंचायत स्तर के हितधारकों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, प्रोफेसर, अधिवक्ताओं, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों, कार्यकर्तांओं, खिलाडियों के साथ इस अभियान के उद्देश्य को साझा किया गया और उनकी सहमति और हस्ताक्षर के लिए पहल की गई। प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज डॉक्टर एस पी सिंह, डॉक्टर प्रोफ़ेसर मनमोहन कृष्णा, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग और पूर्व जन संपर्क अधिकारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डॉक्टर आर के सिंह, विजिटिंग प्रोफेस्सर वाणिज्य विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डॉक्टर सोनल शंकर, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, आईपीएस मंडल अधिकारी अधिसूचना विभाग, प्रयाग राज मंडल, प्रवीण सिंह चौहान मंडल अधिकारी पुलिस स्टाफ प्रयागराज द्वारा अभियान का समर्थन किया गया।
इनके साथ ही दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा, राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाडी मोहम्मद शारिक, मोहम्मद ज़ैद, शैल रावत, प्रेस क्लब इलाहाबाद के अध्यक्ष अशोक चतुर्वेदी और इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकार साथी, अध्यक्ष मुंडेरा ब्यापार मंडल, संजय सिंह, पुलिस अधीक्षक कौशाम्बी बृजेश कुमार श्रीवास्तव, मुख्य विकास अधिकारी कौशाम्बी डॉक्टर रवि किशोर त्रिवेदी, अपर जिलाधिकारी कौशाम्बी, जय चंद पाण्ड़ेय, जिला कार्यक्रम अधिकारी कौशाम्बी सुरेश गुप्ता, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रयागराज के साथ-साथ कौशाम्बी और प्रयागराज जनपद में पंचायत विभाग, श्रम विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा और पुष्टाहार विभाग के ब्लॉक और पंचायत स्तर के अधिकारीयों-कर्मचारियों, चिकित्साधिकारी, एएनएम, आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं सहित 254 हितधारकों के द्वारा अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर किया गया और समर्थन में बयान जारी किया गया।
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कौशाम्बी के मुख्य विकास अधिकारी द्वारा अभियान के समर्थन में बयान देते हुए अपील की गई कि 'जब कि बाल श्रम पूरी तरह प्रतिबंधित है लेकिन अभी भी गांवों में ऐसी स्थितियां देखने को मिल जाती हैं, जहां बच्चों को बाल श्रम में लगा दिया जाता है। हमारा सामाजिक दायित्व है कि बाल श्रम को रोकने के लिए समाज के सभी लोगों के सहयोग से रोका जाना चाहिए। पुलिस अधीक्षक कौशाम्बी के द्वारा अपील की गई कि बाल श्रम वास्तव में समाज के लिए अभिशाप है और इसे रोकने के लिए हमें हर स्तर पर प्रयास करना होगा।
द्वाबा विकास एवं उत्थान समिति के कार्यकारी निदेशक परवेज़ रिज़वी ने बताया कि कौशाम्बी के 60 गांव, प्रयागराज की 3 बस्तियों में समुदाय और बच्चों को मिलाकर 35000 लोगों तक अभियान के मक़सद को पहुंचाया गया। बाल श्रम के खिलाफ अभियान बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि द्वाबा विकास एवं उत्थान समिति संस्था कौशाम्बी और प्रयागराज में पिछले 23 वर्षों से क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू ) के साथ मिलकर बच्चों के सार्वभौमिक विकास और उनकी सुरक्षा के लिए कार्य कर रही है। बालश्रम निषेध कानून के बनने और इस को लागू करने में समय समय पर यथासंभव सहयोग किया गया है और बाल श्रम जैसी कुरीति को समाप्त करने के लिए सरकार के प्रयासों में सहयोग और भागीदारी कि जा रही है।
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'बच्चों को काम पर लगाकर उनकी मदद न करें' अभियान में परिवार, समुदाय, बाल समूह, किशोरी समूह, बच्चों, सरकार, जनप्रतिनिधि और सभी स्तर के हितधारकों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, अधिवक्ताओं, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों, कार्यकर्तांओं, खिलाडियों के समर्थन के लिए किये जा रहे प्रयास का मुख्य मक़सद बालश्रम के खिलाफ सामूहिक सोंच को विकसित करना है। हालांकि यह अभियान 30 जून तक चलेगा लेकिन हम इस मुहिम को सतत आगे ले जाएंगे।
इस अभियान का समन्वयन प्रयागराज और कौशाम्बी दोनों जनपदों में प्रमुख रूप से संस्था की सचिव तैयबा तहसीन, कार्यकारी निदेशक परवेज़ रिज़वी, सहयोगी मोहम्मद रैहान, बेबी नाज़, दोनों जनपदों के समन्वयक मजहर अब्बास, मुकेश कुमार, वासी अहमद, वाहिद हुसैन, हीरा लाल, शोभा रानी, संगीता देवी, श्वेता निषाद, राजेश कुमार, नीलम त्रिपाठी, नाजिश फातिमा, शंकर लाल और विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत संस्था के सहयोगियों के द्वारा किया गया।
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बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम 1986 के प्रमुख पहलू
• 14 वर्ष से अधिक लेकिन 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को संदर्भित करने के लिए 'किशोर' शब्द की शुरुआत की गई
• बच्चा 14 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को संदर्भित करता है
• कानून सभी खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में बच्चों के साथ-साथ किशोरों के रोजगार पर भी प्रतिबंध लगाता है। यह संशोधन बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुरूप है।
• यह 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए अपवाद है जहां एक बच्चे को केवल परिवार की मदद करने के लिए, पारिवारिक उद्यम में या स्कूल के घंटों के बाद या छुट्टियों के दौरान बाल कलाकार के रूप में काम करने की अनुमति है। अपवाद "एक बच्चे के लिए शिक्षा की आवश्यकता और देश में सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सामाजिक ताने-बाने की वास्तविकता के बीच संतुलन" बनाने के लिए बनाए गए थे।
• सीएलपीआरए अधिनियम 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 15 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों को अधिनियम के भाग ए में सूचीबद्ध खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में रोजगार पर रोक लगाता है। जिसमें - खदानें और कोलियरियां (भूमिगत और पानी के नीचे दोनों) शामिल हैं) इसके साथ साथ 1884 के विस्फोटक अधिनियम में परिभाषित ज्वलनशील पदार्थ और विस्फोटक तथा 1948 के फैक्ट्री अधिनियम में सूचीबद्ध आइटम नंबर 3 से 31 तक खतरनाक प्रक्रियाएं शामिल हैं।
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