‘चुनौती स्वीकार' कर जो "महिलाएं महिलाओं के साथ" अपनी एकजुटता दिखाने के लिए हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर अपनी ब्लैक एंड वाइट फोटो डाल रही हैं, उनमें से ज्यादातर पोस्ट में इसके पीछे की असल वजह का कोई जिक्र नहीं मिल रहा है। असल में यह अभियान तुर्की से शुरु हुआ है जहां आए दिन किसी दोस्त, जानकार या परिजनों के हाथों जान से मारे जानी वाली महिलाओं की ब्लैक एंड वाइट फोटो अखबारों में छपा करती है।
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हाल ही में जब एक व्यक्ति पर एक 27 साल की छात्रा पिनार गुलतेकिन की बहुत ही क्रूर तरीके से हत्या करने का आरोप लगा तो देश की महिलाएं इन आए दिन होने वाली हत्याओं और हमेशा महिलाओं के सिर पर लटकने वाली ऐसी तलवार के विरोध में सड़कों पर उतरीं। गुलतेकिन के लिए न्याय की मांग और ऐसे अपराधों के खिलाफ महिलाओं के विरोध प्रदर्शनों से ही यह फोटो चैलेंज उपजा। इसमें हर महिला को अपनी एक ब्लैक एंड वाइट तस्वीर लगानी है और कुछ अन्य महिलाओं को टैग करके प्रेरित करना है कि वे भी तुर्की की महिलाओं के इस अहम आंदोलन को आगे बढ़ाए।
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एक और समझने वाली बात ये है कि इस तरह अपनी ब्लैक एंड वाइट फोटो लगा कर महिलाएं असल में यह संदेश दे रही हैं कि अगर कुछ नहीं किया गया तो ऐसे ही किसी दिन शायद कोई उनकी भी जान ले सकता है और फिर वे केवल अखबार में छपी एक काली-सफेद तस्वीर जितनी ही रह जाएंगी।
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इतने अहम और खौफनाक संदेश को तुर्की के अलावा भी विश्व के कई देशों में समर्थन मिला। जहां अमेरिका तक में कई मशहूर हस्तियों ने इसे आगे बढ़ाया वहीं यह भारत में भी खूब लोकप्रिय हो रहा है। लेकिन, इस बीच भारत में इसका मूल संदेश कहीं खो जाने के कारण अब यह केवल अपनी सुंदर दिखने वाली तस्वीर डालने तक सिमटता दिख रहा है। ऐसे में एक बार फिर तुर्क महिलाएं सोशल मीडिया पर ही इस गलतफहमी को दूर करने की कोशिश कर रही हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, फेमिसाइड शब्द उन तमाम महिलाओं की हत्या के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी उनके पार्टनर ही हत्या कर देते हैं। कई मामलों में पति के हाथों पत्नियों को घरेलू हिंसा का शिकार बनना पड़ता है और आगे चलकर वे महिलाओं को मौत के घाट भी उतार देते हैं। साल 2019 में तुर्की में कम से कम 474 महिलाओं की ऐसे ही हत्या हुई मानी जाती है। इस साल इस संख्या में और बढ़ोत्तरी का अनुमान है क्योंकि कोरोना वायरस की महामारी के कारण घरों में दुर्व्यवहार और हिंसा झेलने वाली महिलाओं की संख्या और ज्यादा मानी जा रही है।
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इसके बावजूद, तुर्की में राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन की सरकार ‘इस्तांबुल कन्वेन्शन' से बाहर निकलने या कम से कम कुछ बड़े बदलाव लाने की कोशिश कर रही है, जो कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने वाली विश्व के सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौतों में आता है। देश की महिलाएं सरकार के इस प्रयास का भी विरोध कर रही हैं और मांग कर रही हैं कि लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा से बचाने के लिए इसे बरकरार रखा जाए।
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महिलाओं के विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया और हिरासत में भी उनके साथ मारपीट किए जाने की खबरें हैं। महिलाओं की शिकायत है कि देश में परिवार में हिंसा या दुर्व्यवहार की शिकायत करने वाली महिलाओं की कोई मदद नहीं करता। “वी विल स्टॉप फेमिसाइड” अभियान से जुड़ी मेलेक ओन्देर ने कहा कि तुर्की की पुलिस, सरकार और सरकारी अधिकारियों को महिलाओं के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
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हालांकि राष्ट्रपति एर्दोआन ने गुलतेकिन की हत्या की खबर के अगले दिन ही ट्विटर पर खेद जताया था, लेकिन कई महिला अधिकार समूह उनके शब्दों को खोखला मानते हैं। उनका आरोप है कि 2011 से जारी ‘इस्तांबुल कन्वेन्शन' के नियमों को लागू करने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है बल्कि वे तो इसे खत्म करने की कोशिश में लगे हैं। एक साल बाद ही इसमें सुधार करने वाला तुर्की पहला देश था और एक बार फिर वे इससे असंतुष्ट हैं। सरकार के दकियानूसी और धार्मिक धड़े का मानना है कि इससे तलाक को बढ़ावा मिलता है और परंपराएं टूटने का खतरा बढ़ता है। इसके पहले भी जब 25 नवंबर 2019 को इस्तांबुल में करीब 2,000 महिलाओं ने इकट्ठे होकर महिलाओं के खिलाफ लक्ष्यित हिंसा को खत्म करने की मांग उठाई थी, तो उन्हें तितर बितर करने के लिए देश की पुलिस ने महिलाओं पर आंसू गैस छोड़ी थी और रबर की गोलियों से उन्हें निशाना भी बनाया था।
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