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पीएम की पंजाब यात्रा में आखिर वह कौन था जिसने एसपीजी के नियमों को तोड़ने को कहा! जवाब तो एसपीजी को भी देना होगा

जानकार बताते हैं कि ‘ब्लू बुक’ में साफ कहा गया है कि अवरोध का पहला संकेत मिलते ही प्रधानमंत्री के काफिले को तत्काल वापस होना होता है। फिर किसने और किन स्थितियों में प्रधानमंत्री के काफिले को फ्लाईओवर पर 20 मिनट तक फंसे रहने दिया?

सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में से एक
सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में से एक 

काले रंग का सूट। आंखों पर काला चश्मा। कानों में वायरलेस लीड। छिपे हैंडगन से लैस। यह है प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) के सुरक्षा कर्मियों का जाना-पहचाना हुलिया। इस विशेष बल का गठन प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों की सुरक्षा के लिए 1985 में किया गया था। यह और बात है कि 2019 में नियमों में संशोधन के बाद यह विशेष दस्ता अब केवल प्रधानमंत्री की सुरक्षा करता है।

एसपीजी केंद्रीय अर्ध-सैन्य बलों से चुने गए 3,000 सर्वश्रेष्ठ कमांडो का विशेष दस्ता है। इसके लिए 2020-21 के बजट में 592 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया जो 2014-15 के मुकाबले लगभग दोगुना है। तब एसपीजी का वार्षिक बजट 289 करोड़ रुपये हुआ करता था और वह प्रधानमंत्री के अलावा नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्यों की सुरक्षा कर रही थी। 2019-20 में एसपीजी के बजटीय आवंटन को 2018-19 के 385 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 535 करोड़ रुपये किया गया और इस फैसले को इस आधार पर वाजिब ठहराया गया कि चुनावी वर्ष होने की वजह से एसपीजी सुरक्षा घेरे वाले इन चारों लोगों को काफी यात्राएं करनी होंगी।

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अभी 5 जनवरी को पंजाब से लौटते वक्त प्रधानमंत्री ने कथित तौर पर चुटकी ली कि “वह भाग्यशाली हैं कि बठिंडा हवाई अड्डे तक जिंदा लौट आए।“ लेकिन उनकी इस बात से ही यह विशेष सुरक्षा दस्ता सवालों के घेरे में है। केंद्रीय गृह मंत्रालय और भारतीय जनता पार्टी- दोनों ने पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस पर प्रधानमंत्री के जीवन को खतरे में डालने के आरोप लगाए हैं, पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एसपीजी की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

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पीएम की सुरक्षा और यात्रा योजनाएं ‘ब्लू बुक’ में निर्धारित नियमों के अनुकूल होती हैं और इसमें सभी संभावित आकस्मिक स्थितियों पर क्या किया जाना चाहिए, इसका ब्योरा है। मार्गों और सुरक्षा योजनाओं की निगरानी के लिए एसपीजी की अग्रिम टीम हमेशा पीएम के गंतव्यकी यात्रा से कुछ दिन पहले यात्रा करती है। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) और राज्य पुलिस के इनपुट के आधार पर एसपीजी वैकल्पिक मार्गों का चयन करती है और फिर उन मार्गों को सुरक्षा के लिहाज से चाक-चौबंद कर दिया जाता है जिससे कि अगर जरूरत पड़ी तो उससे प्रधानमंत्री को निकाला जा सके।

‘ब्लूबुक’ में व्यापक सुरक्षा विवरण होता है। मोटरसाइकिल बेड़े और उस बेड़े में कौन शामिल होगा, यह सब एडवांस्ड सिक्योरिटी लाइजन (एएसएल) के तहत पहले ही तय कर लिया जाता है। इसके बारीक विवरणों वाली पुस्तिका उन्हें दी जाती है जिन्हें देने की जरूरत समझी जाती है। सूत्रों का दावा है कि कई बार एएसएल बुकलेट सौ पन्नों से भी अधिक की हो जाती है।

प्रधानमंत्री के चारों ओर इस विस्तृत सुरक्षा घेरे को देखते हुए 5 जनवरी को उनके पंजाब दौरे के दौरान हुआ कथित ‘सुरक्षा उल्लंघन’ हैरतअंगेज है। एसपीजी और आईबी गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती हैं और उसने ही सबसे पहले ‘सुरक्षा उल्लंघन’ की बात उठाई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी पंजाब सरकार को दोषी ठहराया और प्रधानमंत्री को ‘शारीरिक रूप से नुकसान’ पहुंचाने की साजिश का आरोप लगाया।

लेकिन अंतिम क्षणों में प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से 122 किलोमीटर की दूरी तय करने की अनुमति देने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इतने लंबे रास्ते को ‘क्लीयर’ करने में कितना वक्त लगता है और दो घंटे की पूरी अवधि के लिए यातायात को रोकने या रास्ते में सुरक्षा सुनिश्चित करने में कितना समय लगता है? क्या यह वास्तव में एसपीजी की आकस्मिक योजनाओं का हिस्सा था?

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इनके अलावा भी तमाम सवाल हैं जिनका जवाब मिलना जरूरी है। मौसम विभाग ने कई दिन पहले ही उत्तरी राज्यों में 5 जनवरी को बारिश और खराब मौसम की भविष्यवाणी की थी। यह नहीं माना जा सकता कि एसपीजी मौसम के पूर्वानुमान से बेखबर थी। हाल ही में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु को देखते हुए संभवतः एसपीजी ने बठिंडा से हुसैनीवाला तक हेलीकॉप्टर की सवारी से इंकार कर दिया होगा। लेकिन सवाल तो यह उठता है कि ऐसा करते समय क्या एसपीजी ने दो घंटे लंबी सड़क-यात्रा को वास्तव में ‘क्लीयर’ किया था?

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जानकार बताते हैं कि ‘ब्लू बुक’ में साफ कहा गया है कि अवरोध का पहला संकेत मिलते ही प्रधानमंत्री के काफिले को तत्काल वापस होना होता है। फिर किसने और किन स्थितियों में प्रधानमंत्री के काफिले को फ्लाईओवर पर 20 मिनट तक फंसे रहने दिया? जैसा कि गृह मंत्रालय का आरोप है, क्यों प्रदर्शनकारियों को काफिले से 20 मीटर तक आने दिया गया?

इस गुत्थी का भी सुलझना जरूरी है कि कहीं किसी ने एसपीजी के फैसलों को पलटा तो नहीं? इस तरह की अफवाह है कि प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान एसपीजी प्रमुख को निकाल बाहर किया गया था। एसपीजी को इस बात के लिए जाना जाता है कि अगर बात सुरक्षा की होती है तो वह किसी की नहीं सुनती। लेकिन लगता है कि हाल के वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पूरे मामले की जांच से खुलासा हो सकेगा कि आखिर हुआ क्या।

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