कोई 6 महीने पहले फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी यात्रा से ठीक पहले करीब 250 लोगों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। प्रधानमंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र में पंडित दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा का अनावरण करने आए थे। इस बारे में तमाम पत्र और शिकायतें भेजी गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
जिन मकानों को ध्वस्त किया गया उनमें से करीब 50 झुग्गियां प्रतिमा से कोई 150 मीटर के फासले पर थीं। इन्हें प्रतिमा अनावरण से दो दिन पहले जमींदोज़ कर दिया गया था। ये झुग्गियां प्रशासन की आंख में चुभ रहीं थीं क्योंकि यह प्रतिमा और स्मारक स्थल से साफ नजर आती थीं। इन झुग्गियों में लोग करीब 60 सालों से यहां रह रहे थे। दीनदयाल उपाध्याय की 60 फुट ऊंची प्रतिमा राजघाट ब्रिज के करीब बनाई गई है।
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इस बस्ती में रहने वाले 60 साल के रामदास कहते हैं, “सरकारी अफसर दो बुलडोज़र लेकर आए और पूरी बस्ती को जमींदोज़ कर दिया। हमसे कहा गया कि तीन दिन बाद वापस आ जाना और फिर से अपने घर बना लेना। क्या इतना काफी होता। हम तो यहां जमाने से रह रहे हैं, प्रशासन ने तो यह भी फिक्र नहीं की कि हमारे पास रहने की और जगह नहीं है।” रामदास अब नजदीक के एक मंदिर में रहते हैं, और हर कुछ दिन बाद बस्ती में आकर घर बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन स्थानीय अधिकारी उन्हें भगा देते हैं।
इस उजड़ी बस्ती के लोग अब फुटपाथ और आसपास के मंदिरों में रहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि एक न एक दिन वे अपने घर लौटेंगे। पूरे मॉनसून के दौरान उनके पास सिर छिपाने की जगह नहीं थी। रामदास कहते हैं, “हम प्लास्टिक की शीट और चादरों से खुद को बचाते थे। हमारे पास खाना बनाने की कोई जगह नहीं है। हमारी जिंदगी अब पूरी तरह दूसरों के रहमोकरम पर है।” इससे पहले रामदास और उन जैसे लोग बांस का सामान बनाकर बेचते थे और जीविका चलाते थे। अब चूंकि रहने का ही ठिकाना नहीं है तो ऐसे में काम भी बंद पड़ा है।
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महिलाओं के लिए तो और मुश्किल है। उन्हें शौच या स्नान के लिए एक किलोमीटर से भी दूर पब्लिक टॉयलेट जाना पड़ता है। पीने का पानी लाने की जिम्मेदारी भी महिलाओं पर है। एक बच्ची की मां 26 साल की सुनीता बताती हैं, “हम मर्दों की तरह खुले में तो शौच कर नहीं सकते और न ही नहा सकते हैं। हमने कई बार अपने घर बसाने की कोशिश की लेकिन अधिकारी अब कहते हैं कि हम वहां नहीं रह सकते क्योंकि वह सरकारी जमीन है। हमारे राशन कार्ड, आधार कार्ड सब पर सुजाबाद का पता है। उस समय तो अधिकारियों ने नहीं सोचा कि हम सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रहे हैं। हमारे पास बिजली का कनेक्शन भी था। यह सब कैसे हो गया। और अब वह हमें भगा रहे हैं क्योंकि हम गरीब हैं।”
जिस इलाके में इन लोगों की झुग्गियां होती थीं, उस पर अब स्थानीय दुकानदारों और ट्रर वालों ने कब्जा कर लिया है। 50 साल की तारादेवी बताती हैं, “वे अब वहां रेत जमा करते हैं, ट्रक में चढाते उतारते हैं। इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन हमारे सिर पर छत होने से उन्हें फर्क पड़ता है। क्या अपने घर की मांग करना गलत है। हमारे बच्चे बीमार पड़ रहे हैं, अब सर्दियां आ रही हैं तो और दिक्कत होगी।”
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इनमें से कुछ परिवार इलाके के प्रधान से भी मिले, लेकिन उसने भी हाथ खड़ कर लिए। सुनीता बताती है, “हमसे कह दिया गया कि अब यह वीआईपी इलाका हो गया है, इसलिए हम अब यहां नहीं रह सकते। हम कहां जाएं अब। क्या सरकार किसी और का मकान ऐसे गिरा सकती है?”
इलाके के प्रधान बनारसी लाल कहते हैं, “यह सच है कि ये लोग सालों से यहां रह रहे थे। लेकिन दीनदयाल उपाध्याय स्मारक इसके करीब ही बन गया। वीआईपी आते रहते हैं। ऐसे में नजदीक में झुग्गियां नहीं हो सकतीं। इस इलाके को विकसित किया जा रहा है। प्रशासन कोई मदद नहीं करेगा।” बनारसी लाल का दावा है कि कई झुग्गी वालों को दूसरी जगह घर दिए गए थे लेकिन झुग्गी वाले इससे इनकार करते हैं।
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लॉकडाउन के दौरान इन झुग्गी वालों किसी किस्म का सरकारी राशन नहीं मिला। उनकी मदद इनरवॉयस फाउंडेशन नाम की संस्था ने की। संस्था ने इन झुग्गी वालों की तरफ से प्रधानमंत्री के शिकायत पोर्टल पर शिकायतें भी दर्ज कराई हैं। इनरवॉयस फाउंडेशन की मदद करने वाले अथिरा मुरली बताते हैं, “सौरभ और मैंने 6 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोर्टल के माध्यम से पत्र भेजा है। एक सप्ताह बाद 13 अक्टूबर को पोर्टल पर देखन के बाद पता चला कि हमारी शिकायत को केस क्लोज्ड केटेगरी में डाल दिया गया है। इस बारे में कोई कम्यूनिकेशन भी नहीं किया गया।” संस्था ने 4 अक्टूबर को जिलाधिकारी को भी पत्र लिखा था, लेकिन प्रशासन भी इस मामले में अभी तक चुप है।
इनरवॉयस के मुख्य कार्यकर्ता सौरभ सिंह बताते हैं कि, “इस इलाके के करीब 250 लोगों को बेघर कर दिया गया। वे लोग खुले में सो रहे हैं और बारिश के दिनों में खुद को प्लास्टिक शीट से बचाते हैं। इनके बच्चे भीग जाने के कारण बीमार हो रहे हैं, कई को बुखार आ रहा है। महिलाओं और बुजुर्गों को अमानवीय हालात का सामना करना पड़ रहा है। इनके पास आधार कार्ड और सुजाबाद के वोटर कार्ड भी हैं, लेकिन आज वे बेपता हैं, बेघर हैं।”
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