हैदराबाद के निजाम की करीब 310 करोड़ रुपए की विरासत में हिस्सेदारी नहीं मिलने की सूरत में उनके 120 वारिस कानूनी जंग लड़ने को तैयार हैं। निजाम की यह विरासत पिछले सात दशक से लंदन के एक बैंक में संजोई हुई है। इस विरासत को लेकर 70 साल से चल रहे मुकदमे में यूके हाईकोर्ट ने दो अक्टूबर को फैसला भारत के पक्ष में सुनाया है।
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अब सवाल हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के कानूनी वारिसों का है क्योंकि निजाम के राज्य का विलय 1948 में भारत में हो गया था। अदालत के फैसले के बाद आई कुछ रिपोर्ट के मुताबिक यह धन कहने को आठवें निजाम प्रिंस मुक्करम जाह बहादुर और उनके छोटे भाई मुफ्फाखम जाह को मिलेगा जबकि आखिरी आसफ जाही शासक के वंशज भी अपनी हिस्सेदारी का दावा करने की तैयारी में हैं।
मीर उस्मान अली खान के पोते नवाब नजफ अली खान ने बताया कि उन्होंने ही पुराने रिकॉर्ड और वसीयतों को खंगाल कर बैंक में पड़ा धन पाने की पहल की थी। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, "अगर वे दोनों पोते ही दावेदार हैं तो 2013 तक उन्होंने क्यों चुप्पी साध रखी थी।" उनका दावा है कि उन्होंने इस लड़ाई के लिए 2016 तक लंदन में एक वकील को रखा था, लेकिन उनको संयुक्त रूप से मुकदमा लड़ने के लिए निजाम स्टेट के तहत आने को कहा गया।
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खान 120 वारिसों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि वे संयुक्त रूप से मुकदमा लड़ने लिए निजाम स्टेट और भारत सरकार के बीच हुए करार में पक्षकार थे। उनको भरोसा दिलाया गया था कि धन का बंटवारा निजाम के सभी कानूनी वारिसों के बीच होगा।
यूके हाईकोर्ट ने हैदराबाद के 1948 में विलय के दौरान नेटवेस्टबैंक में जमा किए गए धन पर पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया। भारत के बंटवारे के बाद और हैदराबाद के भारत में विलय से पहले निजाम के वित्तमंत्री मोइन नवाब जंग ने 10,07,940 पौंड स्टर्लिग और नौ शिलिंग लंदन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त के एच. आई. रहीमतुल्ला के नाम पर नेटवेस्ट बैंक में जमा करवा दिया था।
भारत ने इस पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि निजाम स्वतंत्र शासक नहीं थे। भारत ने बैंक अकाउंट को फ्रीज करवा दिया। तब से यह मामला लटका हुआ था।
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