'उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, सीलमपुर, ओल्ड मुस्तफाबाद, भजनपुरा, चांद बाग आदि इलाके बीते 24-25 फरवरी को अचानक जलने शुरू नहीं हुए। इनकी शुरूआत शाहीन बाग से हुई है। मैं अगर अभी दिल्ली का पुलिस कमिश्नर (आयुक्त) होता तो शाहीन बाग में सड़क पर प्रदर्शन करने वालों को पहले ही दिन सड़क से पार्क में ले जाकर बैठा देता। चाहे जो होता किसी भी कीमत पर जाफराबाद आदि इलाके को मैं जलने नहीं देता। भले ही क्यों न सरकार मुझे निकाल कर बाहर कर देती।'
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यह खरी-खरी और दो टूक दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने कही है। अजय राज शर्मा यूपी कैडर 1966 बैच के पूर्व दबंग आईपीएस और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं। देश की पुलिस को एसटीएफ देने का श्रेय भी अजय राज शर्मा को ही जाता है। अजय राज शर्मा दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेवा-निवृत्त महानिदेशक हैं। अजय राज शर्मा इन दिनों अपनी किताब 'बाइटिंग द बुलेट' के कारण चर्चाओं में हैं।
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अजय राज शर्मा ने आगे कहा, “दिल्ली में पुलिस नहीं, मजाक बन गई है। ‘अगर आप दिल्ली पुलिस के इस वक्त कमिश्नर होते तो भला क्या करते?' पूछे जाने पर अजय शर्मा ने कहा, “जिस दिन 100-50 लोग शाहीन बाग में रास्ता घेरकर बैठे थे, मैं उसी दिन उन सौ-पचास लोगों को सड़क से किसी पार्क में ले जाकर बैठा दिया होता।”
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दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा, “सच यह है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में दंगे 24-25 मार्च को अचानक नहीं फैल गए। पहले शाहीन बाग की जमीन तैयार हुई। उसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए जिस नेता के दिल में जो कुछ ऊट-पटांग आया, उसने वो बोला। बे-रोकटोक। किसी ने गोली मार देने तक की बात की।”
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अपनी 40 साल की पुलिसिया जिंदगी पर हाल ही में 'बाइटिंग द बुलेट' लिखने वाले पूर्व आईपीएस अजय राज शर्मा के ही अल्फाजों में, “मैंने जो कुछ मीडिया से देखा-सुना है उसके हिसाब से तो दिल्ली के इन दंगों में पुलिस मूक-दर्शक बनी रही। वजह क्या थी यह दिल्ली पुलिस और हुकूमत मुझसे ज्यादा जानती है। मुझे तो लगता है कि पुलिस किसी दबाव और भ्रम में थी। जैसे ही सांप्रदायिक भावनाओं का घड़ा भरा, असामाजिक तत्वों ने उस घड़े को दंगों के रूप में फोड़ डाला।”
इन दंगों में उत्तर पूर्वी दिल्ली जिला पुलिस पर उंगली उठाते हुए अजय राज शर्मा बोले, “जिला डीसीपी ने इलाके में कर्फ्यू तो लगाया, मगर बहुत बाद में और कम फोर्स के बलबूते। कम फोर्स के कंधों पर कर्फ्यू लगाना भी जिला पुलिस को उल्टा पड़ गया।”
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2000 के दशक में दिल्ली के दबंग पुलिस कमिश्नर रहे अजय राज शर्मा ने विशेष बातचीत के दौरान दो टूक दोहराया, “मैंने पुलिस की नौकरी में हमेशा कानून देखा। मैंने वर्दी में हमेशा कानून को ही ऊपर रखा। सरकार को कभी कानून से ऊपर जाकर अहमियत न देनी चाहिए न मैंने कभी ऐसी गलती की। इतिहास गवाह है। मैं अपने मुंह और कुछ सच उगलूंगा तो लोग कहेंगे कि अब ज्यादा बोल रहे हैं।”
कभी दिल्ली पुलिस की कमिश्नरी संभाल चुके अजय राज शर्मा ने कहा, “दिल्ली पुलिस को मैंने लीड किया। अब मुझे उत्तर पूर्वी जिले के दंगे से बहुत तकलीफ हुई है।”
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