सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार से ऐसा कोई भी कदम उठाने से मना किया है, जिससे दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को वित्तीय तौर पर घाटा पहुंचे। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ्त मेट्रो सेवा क्यों दी जा रही है। साथ ही यह भी कहा कि महिलाओं को मुफ्त सेवा देने दिल्ली मेट्रो गैर-मुनाफे वाला वेंचर बनकर रह जाएगी। न्यायाधीश अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी दिल्ली सरकार को फेज-चार के मेट्रो निर्माण के लिए जमीन की लागत को लेकर राहत देते हुए की।
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जस्टिस अरुण मिश्र की बेंच ने कहा कि दिल्ली सरकार ये सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि मेट्रो को नुकसान ना उठाना पड़े। उन्होंने आगे कहा कि अगर मेट्रो को घाटा होता है तो दिल्ली सरकार को वहन करना होगा। बेंच ने कहा कि एक तरफ आप मुफ्त में चीजे बांट रहे हैं तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट से घाटे की बात करते हुए केंद्र सरकार से रुपये दिलाने की मांग करते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली मेट्रो के फेज-चार के लिए भूमि की लागत का 50 प्रतिशत केंद्र को वहन करना होगा। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली मेट्रो ने अब तक किसी भी तरह के वित्तीय घाटे का सामना नहीं किया है और संभावना है कि भविष्य में भी उसे कोई नुकसान नहीं होगा।हालांकि, कोर्ट ने दिल्ली सरकार से यह भी कहा कि वह जनता के पैसे का सही इस्तेमाल करे।
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12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो के 104-किलोमीटर के फेस-चार परियोजना पर काम शुरू करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिया। इस मेट्रो के लिए जमीन का मुद्दा केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच झगड़े की वजह बन गई थी।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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