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उमर खालिद को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में फिर नहीं मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी अपील

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू के छात्र नेता रहे उमर खालिज को जमानत देने से इनकार कर दिया है। खालिद पर दिल्ली दंगों में शामिल होने और साजिश रचने का आरोप है।

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Getty Images Hindustan Times

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ा झटका देते हुए उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। खालिद पर 2020 के दिल्ली दंगों में शामिल होने और साजिश रचने का आरोप है, उनके खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।ृ

बता दें कि उमर खालिद की जमानत याचिका पर 7 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज इस संबंध में फैसला सुनाया गया, जो उमर खालिद की उम्मीदों के खिलाफ गया है।

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न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने मंगलवार को उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज करने के संबंध में फैसला सुनाया। जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए उमर खालिद ने हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की थी।

गौरतलब है कि उमर खालिद ने अपनी याचिका में कहा था कि उनका उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है और उनकी कोई 'आपराधिक भूमिका' नहीं है। साथ ही यह भी कहा था कि उनका दिल्ली दंगे से जुड़े अन्य आरोपियों से कोई संपर्क नहीं है। दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध किया।

उमर खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य के खिलाफ यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज है। इन सभी पर फरवरी 2020 के दंगों में कथित साजिशकर्ता होने का आरोप है। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

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फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा, 'हमें जमानत की अपील में कोई दम नजर नहीं आता। जमानत की अपील खारिज की जाती है।”

24 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार करने के बाद खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था। उमर खालिद को 13 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और वह 765 दिनों से हिरासत में है। उनके वकील वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने 22 अप्रैल को बहस शुरू की थी जो 28 जुलाई को समाप्त हुई। विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दिल्ली पुलिस की तरफ से 1 अगस्त को बहस शुरू की जो 7 सितंबर को समाप्त हुई थी।

कोर्ट ने आज अपील को खारिज करते हुए पाया कि खालिद ने जंतर मंतर, जंगपुरा, शाहीन बाग, सीलमपुर, जाफराबाद और भारतीय सामाजिक संस्थान में विभिन्न तिथियों पर विभिन्न बैठकों में भाग लिया था और उनके नाम का साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक में उल्लेख किया गया है।

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