महंगाई से जहां जान महंगी हो रही है, वहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अब मौत भी महंगी हो गई है। बैकुंठ धाम और गुलाला घाट पर अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए आने वाले परिवारों की शिकायत है कि लखनऊ नगर निगम (एलएमसी) द्वारा निर्धारित 550 रुपये के मुकाबले चिता के लिए लकड़ी 650-700 रुपये प्रति क्विंटल बेची जा रही है। चिता के लिए लकड़ी बेचने वाला ठेकेदार अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक 3.6 क्विंटल लकड़ी के लिए 2,520 रुपये की मांग कर रहा है जबकि बोर्ड पर प्रदर्शित 550 रुपये प्रति क्विंटल की दर से यह लगभग 2,000 रुपये होनी चाहिए।
लकड़ी की ऊंची कीमत पर सवाल उठाने वालों को कठोरतापूर्वक विद्युत शवदाह गृह जाने को कहा जाता है। बैकुंठ धाम में महाब्राह्मण का कर्तव्य निभाने वाले पंडित नरेंद्र मिश्रा कहते हैं, प्रत्येक चिता के लिए 3-4 क्विंटल लकड़ी की आवश्यकता होती है। बाजार में लकड़ी की कीमत बढ़ने के कारण ठेकेदारों ने भी कीमत बढ़ा दी है। श्रम और परिवहन के लिए भी भुगतान करना पड़ता है।
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मूल्य वृद्धि के फैसले का बचाव करते हुए बैकुंठ धाम के एक ठेकेदार कुमार ने कहा कि एलएमसी ने 2010 से दरों में संशोधन नहीं किया है। उन्होंने कहा, इन वर्षों में, लकड़ी और अन्य खर्चों में जबरदस्त वृद्धि हुई है। 2020 में, बाजार में लकड़ी की कीमत लगभग 400 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब बढ़कर 600 रुपये हो गई है। दिसंबर में, हमने एलएमसी अधिकारियों से कीमत संशोधित करने का अनुरोध किया था। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में नुकसान से बचने के लिए हमने खुद दरें बढ़ाने का फैसला किया।
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नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा कि मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। उन्होंने कहा, समिति की रिपोर्ट आने के बाद हम दर तय करने के लिए ठेकेदारों से मिलेंगे। विद्युत शवदाह गृह पारंपरिक श्मशान भूमि से डायवर्जन के मद्देनजर अधिक शवों के अंतिम संस्कार में असमर्थ है।
एक पूर्व विधायक ने कहा, पारंपरिक श्मशान भूमि पर बोझ को कम करने के लिए हमें और अधिक विद्युत शवदाह गृह स्थापित करने की आवश्यकता है। लोग अब विद्युत शवदाहगृह को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।
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