उच्च शिक्षा में हस्तक्षेप करने की मोदी सरकार की आदत से लगातार टकराव की स्थितियां पैदा होती रही हैं। अब एक बार फिर देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईएम से सरकार की ठन गई है। देश के शीर्ष आईआईएम संस्थानों ने मिलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा हाल में घोषित पीएचडी योग्यता के नए मानदंडों का विरोध किया है।
ऐसी खबरें हैं कि इस संबंध में सरकार के सामने मजबूती से अपना पक्ष रखने के लिए सभी आईआईएम संस्थानों के निदेशक 13 दिसंबर को बैठक करेंगे। इकॉनामिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईएम, अहमदाबाद ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर पीएचडी नियमावली पर आपत्ति जताई है। इन प्रबंधन संस्थानों का मानना है कि सरकार ने आईआईएम में पीएचडी कार्यक्रमों के लिए जो योग्यता मानदंड तय किए हैं, वह ‘प्रतिबंध’ जैसे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे नियम फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (एफपीएम) की प्रकृति के खिलाफ हैं।
अखबार ने पूरे मामले में शामिल कुछ लोगों के हवाले से लिखा है कि इन मानदंडों को तय करते समय सरकार ने आईआईएम को दी गई स्वायत्तता का ध्यान नहीं रखा है।
23 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने प्रबंधन संस्थानों के निदेशकों को विस्तार से लिखित में यह जानकारी दी थी कि पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के न्यूनतम मानदंड क्या होंगे।
नए योग्यता मानदंडों में तीन ऐसे पहलू हैं जिस पर आईआईएम ने आपत्ति दर्ज की है। इनमें चार वर्षीय डिग्री या बीटेक कर चुके सीधे प्रवेश पाने वाले उम्मीदवारों के लिए 8 सीजीपीए, एक की बजाय दो वर्ष के पोस्टग्रैजुएट डिप्लोमा और सीए, सीएस या आईसीडब्ल्यूए जैसी पेशेवर योग्यताओं के बावजूद स्नातक डिग्री की आवश्यकता शामिल हैं।
आईआईएम, अहमदाबाद ने मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि सरकार ने पीएचडी करने की चाहत रखने वाले सीधे प्रवेश पाने वाले उम्मीदवारों के लिए 8 सीजीपीए की अनिवार्यता रखी है, जबकि एफपीएम को लेकर उनका आंतरिक आंकड़ा यह बताता है कि संस्थान ने 6 सीजीपीए वाले छात्रों को भी प्रवेश दिया है। आईआईएम ने कहा है कि उसके आधे से ज्यादा एफपीएम कर चुके छात्र इंजीनियरिंग डिग्रीधारक थे और 60 फीसदी से ज्यादा उम्मीदवारों का सीजीपीए 8 से कम था। इनमें से कई अभी आईआईएम, अहमदाबाद में पढ़ा भी रहे हैं।
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अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, आईआईएम ने सरकार के इस प्रस्ताव को लेकर चिंता जताई है कि एक पीएचडी कार्यक्रम को कम से कम तीन साल चलना चाहिए। उन्होंने इसे दो साल रखने को कहा था। अधिकतर पुराने आईआईएम अभी संस्थागत प्रक्रियाओं के जरिए डॉक्टोरल एफपीएम देते हैं। लेकिन आईआईएम अधिनियम, 2017 के प्रभावी होने के बाद अब आईआईएम पीएचडी डिग्रियां दे सकते हैं।
आईआईएम को भेजी गई सरकार की नई नियमावली विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानकों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। मंत्रालय का मानना है कि राष्ट्रीय महत्व के सभी संस्थानों में एकरूपता होनी चाहिए।
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