ध्यान रहे कि
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद दोनों देशों में तनाव बना हुआ है। वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में भी विपक्ष लगाातार मोदी सरकार से इस विषय पर स्पष्टीकरण मांग रहा है। इस सबके बीच तिब्बत के धर्म गुरू दलाई लामा से तवांग गतिरोध के संदर्भ में चीन के लिए उनके संदेश के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि, चीजें सुधर रही हैं। यूरोप, अफ्रीका और एशिया में चीन अधिक लचीला है। इसके साथ ही जब पूछा गया कि क्या वो कभी चीन लौटेंगे तो दलाई लामा ने कहा कि, वो कभी चीन वापस नहीं जाएंगे और जिंदगी भर भारत में ही रहेंगे। उन्होंने कहा कि ‘मुझे भारत बेहद पसंद है। यहां हर चीज की आजादी है। वो भी कांगड़ा मेरा स्थायी निवास है। कांगड़ा पंडित नेहरू की पसंद है। यह मेरा स्थायी निवास है।‘
दलाई लामा को दुनियाभर में उनके आध्यात्मिक ज्ञान के लिए माना जाता है। वह तिब्बतियों के सबसे बड़े राजनैतिक प्रतिनिधि भी हैं। चीन की सरकार दलाई लामा को विवादास्पद और अलगाववादी बताती है। दलाई लामा चीन की नीतियों का खुलकर विरोध करते रहे हैं।
चीन ने सन 1950 में अवैध तरीके से तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। तब दलाई लामा ने भारत से शरण मांगी थी। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दलाई लामा को अनुमति प्रदान की, और में शरण दी। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय बनाया गया। तिब्बत के मसले को सुलझाने की दलाई लामा ने कई बार कोशिश की। पर असफलता ही हाथ लगी। भारत में लोग दलाई लामा को एक बड़ा धार्मिक नेता मानते हैं।
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