वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में पेश बजट में डिजिटल परिसंपत्ति से हुई आमदनी पर 30 प्रतिशत कर के प्रावधान की घोषणा की है लेकिन विशेषज्ञों की राय में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर और सख्त नियम बनाने की जरूरत है, क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ती है। विशेषज्ञों की राय में डिजिटल टैक्स की घोषणा तो सही है लेकिन इसके जरिये डार्क वेब पर मनी लॉन्ड्रिंग यानी धनशोधन और हवाला लेनदेन काफी तेजी से बढ़ रहा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है।
उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने गत सप्ताह ही अपने एक फैसले में कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग हत्या से भी जघन्य और गंभीर अपराध है, क्योंकि इससे पूरी अर्थव्यवस्था को क्षति होती है।
ब्लॉकचेन डाटा प्लेटफॉर्म चेनएनालिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, नॉन फंजिबल टोकन (एनएफटी) के जरिये भी मनी लॉन्ड्रिंग की जा सकती है। एनएफटी बाजार में कुछ गतिविधियां मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी हैं। एनएफटी एक प्रकार का क्रिप्टोग्राफिक टोकन होता है और इसे डिजिटल परिसंपत्ति कहा जा सकता है, क्योंकि इससे वैल्यू जेनरेट होती है।
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गत सप्ताह जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कला के क्षेत्र में मनी लॉन्ड्रिंग को आंकना मुश्किल है लेकिन ब्लॉकचेन की पारदर्शिता की वजह से एनएफटी आधारित मनी लॉन्ड्रिंग का ज्यादा अच्छा आंकलन किया जा सकता है। विधि एवं साइबर कानून विशेषज्ञों के मुताबिक क्रिप्टो का पूरा पारिस्थितिक तंत्र यानी इकोसिस्टम साइबर अपराध को बढ़ावा देने वाला बनता जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय के वकील एवं साइबर कानून विशेषज्ञ डॉ पवन दुग्गल ने इस विषय पर अपनी राय देते हुए कहा कि क्रिप्टो परिसंपत्ति और क्रिप्टोकरेंसी सभी ब्लॉकचेन पर आधारित हैं और इसी कारण डार्क वेब पर कई प्रकार के साइबर अपराध को अंजाम देने के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है। बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी डार्क वेब पर वास्तविक करेंसी बन चुके हैं।
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क्रिप्टो परिसंपत्ति और क्रिप्टोकरेंसी डार्क नेट पर किसी खास साइबर अपराध की पहचान करने में वास्तव में पुलिस के लिए मुश्किल हालात पैदा करते हैं। दुग्गल का कहना है कि यह ब्लॉकचेन आधारित प्रौद्योगिकी भारत समेत सभी देशों के लिए बहुत चुनौतियां लाने वाली है।
उन्होंने कहा कि इससे न सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले बढेंगे बल्कि क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल साइबर आतंकवाद और साइबर कट्टरवाद के लिए भी होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल परिसंपत्ति से होने वाली आमदनी पर कर को लेकर कुछ स्पष्टता आई है लेकिन एक विस्तृत क्रिप्टो विधेयक न होने से सही आंकलन खासकर क्रिप्टोकरेंसी के अवैध इस्तेमाल का आंकलन करना मुश्किल हो गया है।
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नयी दिल्ली स्थित साइबर कानून विशेषज्ञ विराग गुप्ता के मुताबिक वेब 3.0 के आने से क्रिप्टो परिसंपत्ति में बहुत तेजी आएगी। उन्होंने कहा, डिजिटल परिसंपत्ति अपराधियों के लिए सुरक्षित तरीका है और इसी कारण आर्थिक धोखाधड़ी और अपराधों का पूरा माहौल इससे बदल जाएगा। नशीली दवाओं के कारोबारी, आतंकवादी संगठन, हवाला कारोबारी और मनी लॉन्ड्रिंग में लिप्त लोग डिजिटल परिसंपत्ति का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है और भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ जितेन जैन ने कहा कि डिजिटल परिसंपत्ति पर हुई आमदनी पर 30 प्रतिशत का कर लगाए जाने के बावजूद क्रिप्टो, एनएफटी बाजार में तेजी रहेगी और कई कंपनियां भारी मुनाफे का प्रलोभन दिखाकर प्रौद्योगिकी की कम जानकारी रखने वाले लोगों को चूना लगाने का प्रयास करेंगी। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक और बड़ी चिंता का विषय यह है कि भारतीय साइबर कानून के दायरे में क्रिप्टो आधारित अपराध लगभग न के बराबर हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार लोकतांत्रिक देशों को साथ मिलकर क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में काम करना होगा ताकि ये गलत हाथों में न पड़े। उन्होंने गत वर्ष नवंबर में आस्ट्रेलिया की स्ट्रैटेजी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित सिडनी परिचर्चा में दिये अपने भाषण में कहा था कि क्रिप्टोकरेंसी और बिटकॉइन पर सभी लोकतांत्रिक देशों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि ये गलत हाथों में ना पड़े, जो हमारे युवाओं को तबाह कर सकती है।
भारत में गत साल प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने क्रिप्टोकरेंसी के जरिये 4,000 करोड़ रुपये से अधिक के लेनदेन का खुलासा किया था। गुप्ता ने कहा है कि बजट पेश किये जाने के बाद शीर्ष अधिकारियों ने निवेशकों को इससे जुड़े खतरों के बारे में आगाह किया था लेकिन उन्होंने डार्क वेब से उत्पन्न खतरों और मनी लॉन्ड्रिंग सिंडिकेट के बारे में चेतावनी नहीं दी।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस सबंध में सही कदम उठाने का समय आ गया है ताकि भारत को सिर्फ क्रिप्टो आधारित प्रौद्योगिकी से लाभ ही न हो बल्कि इस प्रौद्योगिकी के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने के कानूनी ढांचा भी हो ताकि साइबर अपराध और साइबर सुरक्षा के खतरों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके।
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