उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने 11 जिलाध्यक्षों के खिलाफ बड़ा सख्त रूख अपनाया है। उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की नामांकन प्रक्रिया के दौरान शनिवार को एक्टिव न रहने वाले 11 जिलों के पार्टी अध्यक्षों पर गाज गिराई है। एसपी प्रमुख के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 11 जिलाध्यक्षों को पार्टी से बर्खास्त कर दिया है। इनमें समाजवादी पार्टी के गोंडा, झांसी, गोरखपुर, मुरादाबाद, आगरा, मऊ, गौतमबुद्धनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती, भदोही और ललितपुर के जिलाध्यक्ष के नाम शामिल हैं।
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बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश पंचायत अध्यक्ष चुनाव में इन जिलों में एसपी के पक्ष में नतीजे नहीं आए हैं। पार्टी मुखिया इस बात से नाराज हैं कि कैसे चुनाव में एसपी से चुने गए जिला पंचायत सदस्यों की संख्या ज्यादा होने के बाद भी जिला अध्यक्ष के चुनाव उनके पक्ष में नहीं जा रहे हैं। यादव ने इन सभी के ऊपर जिला पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया में अनियमितता का आरोप लगने पर हटाया है।
इनमें से ज्यादातर जिले ऐसे हैं जहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन तक नहीं कर पाए। माना जा रहा है कि पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जिलाध्यक्षों की नाकामी को देखते हुए पार्टी की तरफ से ये कार्रवाई की गई है।
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जिन 11 जिलों के जिलाध्यक्षों को पार्टी ने हटाया है। उनमें 10 जिले ऐसे हैं, जहां सपा उम्मीदवार पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन भी नहीं कर पाए। इसमें गौतमबुद्ध नगर, आगरा, मुरादाबाद, ललितपुर, झांसी, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, मऊ, गोरखपुर शामिल हैं। माना जा रहा है कि इसमें स्थानीय जिलाध्यक्षों की भी कमी है। जिसकी वजह से एसपी प्रत्याशी नामांकन नहीं कर पाए। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इन जिलाध्यक्षों को पद से हटा दिया है।
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इससे पहले अखिलेश यादव ने ट्वीट के माध्यम से लिखा था कि गोरखपुर और अन्य जगह जिस तरह बीजेपी सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है, वो हारी हुई बीजेपी का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है। बीजेपी जितने पंचायत अध्यक्ष बनाएगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी।
उधर राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार 17 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के एक ही नामांकन हुए हैं या वैध पाए गए हैं। इनमें से ज्यादातर जगहों पर बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। ऐसे में बीजेपी पर पंचायत अध्यक्ष चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर और दूसरे दलों में सेंधमारी कर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव जीतने के आरोप लग रहे हैं।
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