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निर्भया के दोषियों पर देश के सबसे बड़े जल्लाद का बड़ा बयान, इंसाफ दिलाने के लिए की ये मांग

देश के सबसे बड़े जल्लाद पवन ने कहा कि मैं तो एकदम तैयार बैठा हूं। निर्भया के मुजरिमों के डेथ-वारंट मिले और मैं तिहाड़ जेल पहुचूं। मुझे मुजरिमों को फांसी के फंदे पर टांगने के लिए महज दो से तीन दिन का वक्त चाहिए।

फोटो: सोशल माीडिया
फोटो: सोशल माीडिया 

देश के सबसे बड़े जल्लाद पवन ने निर्भया के दोषियों को लेकर बड़ा बयान दिया है। जल्लाद ने कहा, “निर्भया और हैदराबाद जैसे रूह कंपा देने वाले कांड घर बैठे नहीं रुक सकते हैं। इसके लिए बहुत जरूरी है कि जितनी जल्दी हो सके निर्भया के मुजरिमों को फांसी पर लटका दो। डॉक्टर के हत्यारों को जल्दी से मुजरिम करार दिलवा दीजिए। हिंदुस्तान में निर्भया और प्रियंका कांड खुद बखुद ही बंद हो जाएंगे। जब तक ऐसे जालिमों को मौत के घाट नहीं उतरा जाएगा तब तक बाकी बचे हुए ऐसे क्रूर इंसानों में भला भय कैसे पैदा होगा?”

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

मेरठ में मौजूद पुश्तैनी जल्लाद पवन ने खुलकर बात की है। पवन ने कहा, "अगर निर्भया के हत्यारों को सरकार लटका चुकी होती तो शायद, हैदराबाद की मासूम बेकसूर डॉक्टर बेमौत मरने से बच गई होती। निर्भया के हत्यारों को आखिर तिहाड़ जेल में पालकर रखा ही क्यों जा रहा है? निर्भया कांड के मुजरिम हों या फिर डॉक्टर के हत्यारे। इनका इलाज जब तक आनन-फानन में नहीं होगा, तब तक यह मुसीबतें समाज में बरकरार रहेंगीं।"

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

पवन ने आगे कहा, "मैं तो एकदम तैयार बैठा हूं। निर्भया के मुजरिमों के डेथ-वारंट मिले और मैं तिहाड़ जेल पहुचूं। मुझे मुजरिमों को फांसी के फंदे पर टांगने के लिए महज दो से तीन दिन का वक्त चाहिए। सिर्फ ट्रायल करुंगा और अदालत के डेथ वारंट को अमल में ला दूंगा।"

पवन ने कहा, "मैं खानदानी जल्लाद हूं। इसमें मुझे शर्म नहीं लगती। मेरे परदादा लक्ष्मन जल्लाद, दादा कालू राम जल्लाद, पिता मम्मू जल्लाद थे। मतलब जल्लादी के इस खानदानी पेशे में मैं अब चौथी पीढ़ी का इकलौता जल्लाद हूं।"

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

पवन ने पहली फांसी दादा कालू राम जल्लाद के साथ पटियाला सेंट्रल जेल में दो भाईयों को दी थी। दादा के साथ अब तक जिंदगी में पांच खूंखार मुजरिमों को फांसी पर टांगने वाले पवन के मुताबिक, “पहली फांसी दादा कालू राम के साथ पटियाला सेंट्रल जेल में दो भाईयों को लगवाई थी। उस वक्त मेरी उम्र यही कोई 20-22 साल रही होगी। अब मैं 58 साल का हो चुका हूं।"

पवन के दावे के मुताबिक, अब तक अपने दादा कालू राम के साथ आखिरी फांसी उसने बुलंदशहर के दुष्कर्म और हत्यारोपी मुजरिम को सन 1988 के आसपास लगाई थी। वह फांसी आगरा सेंट्रल जेल में लगाई गयी थी। उससे पहले जयपुर और इलाहाबाद की नैनी जेल में भी दो लोगों को दादा के साथ फांसी पर लटकवाने गया था।

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

पवन ने आईएएनएस के साथ बातचीत में साफ कहा, "ऐसे मुजरिमों को पालकर रखना यानी नये मुजरिमों को जन्म लेने के लिए खुला मौका देना होता है।"

पवन के मुताबिक, फिलहाल उनका जीवन उत्तर प्रदेश सरकार से मिलने वाले 5 हजार रुपये महीने से जैसे तैसे चल रहा है। यह रुपये मेरठ जेल से हर महीने मिल जाते हैं। बकौल पवन, “पहले तो सस्ते के जमाने में फांसी लगाने के औने-पौने दाम दादा कालूराम को मिला करते थे। आजकल एक फांसी लगाने का दाम 25 हजार रुपया है। हालांकि इन 25 हजार से जिंदगी नहीं कटनी। फिर भी खुशी इस बात की ज्यादा होती है कि चलो किसी समाज के नासूर को जड़ से खत्म तो अपने हाथों से किया।”

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

दिल्ली जेल के महानिदेशक संदीप गोयल ने कहा, “ऐसा नहीं है कि फांसी पर लटकाने के लिए कोई विशेष रुप से अधिकृत होता हो। यह जेल प्रशासन और राज्य सरकार पर भी निर्भर होता है कि, वो जिसे भी इस काम के लिए कानूनी रुप से बेहतर समझे, उससे यह काम (फांसी पर मुजरिम को लटकवाना) करवा ले। बस इस काम में (मुजरिम को फांसी देने के वक्त) समझदारी और सावधानी सबसे महत्वपूर्ण होती है।”

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

एशिया की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर और बाद में कानूनी सलाहकार के पद से सन 2016 में रिटायर हो चुके सुनील गुप्ता से भी मंगलवार देर रात आईएएनएस ने बात की। सुनील गुप्ता ने हाल ही में जेल की जिंदगी पर 'ब्लैक-वारंट' नाम की सनसनीखेज किताब भी लिखी है।

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

उन्होंने ने कहा, “मेरी 35 साल की नौकरी में मेरे सामने आठ लोगों को तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। इनमें रंगा-बिल्ला, इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत-केहर सिंह, कश्मीरी आतंकवादी मकबूल बट्ट, विद्या जैन के हत्यारे दो भाई जगतार-करतार सिंह, संसद हमले का आरोपी अफजल गुरु शामिल थे। किसी को भी फांसी पर लटकाने में कोई दिक्कत नहीं आई। हां, इस काम के लिए विशेषज्ञ तो होना चाहिए। क्योंकि इसमें अदालत के बेदह संवेदनशील हुक्म की तामील की जानी होती है। इस हुक्म के तामील होने में चूक बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। हांलांकि अभी तक ऐसी चूक कभी किसी को फांसी पर लटकाये जाने के वक्त सुनने-देखने को मिली तो नहीं है।”

Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST

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Published: 04 Dec 2019, 9:50 AM IST