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गाजा में युद्ध विराम के प्रस्ताव पर भारत की तटस्थता से देश स्तब्ध, विपक्ष ने साधा सरकार पर निशाना

मानवीय आधार पर गाजा में इज़रायली हमले रोकने के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंजूरी दे दी। लेकिन भारत ने इस प्रस्ताव से दूरी बनाए रखी। भारत के इस रुख पर देश स्तब्ध है। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार पर निशाना साधा है।

गाजा में युद्धविराम का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पास हो गया
गाजा में युद्धविराम का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पास हो गया 

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविता समर शेष है कि अंतिम पंक्तियां हैं-

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

इन पंक्तियों का स्मरण आज इसलिए कि इज़रायल-हमास संघर्ष में मारे जा रहे निर्दोषों को बचाने और मानवीय आधार पर युद्ध विराम करने का जो प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में पास हो गया, और उन देशों के चेहरे भी साफ सामने आ गए जो बीते तीन सप्ताह से जारी नरसंहार को रोकने के विरोध में हैं। लेकिन इसी प्रस्ताव से दूरी रखने वाले देशों के चेहरे भी सामने आ गए जिन्होंने तटस्थता की आड़ में परोक्ष रूप से प्रस्ताव का विरोध किया। तटस्थता का जामा ओढ़ने वाले कुल 45 देशों में भारत का नाम भी शामिल है। वह भारत, जो ऐतिहासिक तौर पर फिलिस्तीन का साथ देता रहा है, उसका समर्थन करता रहा है, जिसकी आत्मा में गांधीवादी विचारों का रस है, जो मानवता के साथ और हिंसा के विरुद्ध खड़ा रहा है।

लेकिन संयुक्त राष्ट्र में इज़रायल द्वारा गाज़ा में मानवीय आधार पर युद्ध विराम करने के प्रस्ताव पर भारत की गैर-मौजूदगी या तटस्थता से पूरा देश स्तब्ध है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शायद सही ही कहा है कि, “भारत के इस कदम से स्तब्ध और शर्मिंदा हैं।” उन्होंने कहा है कि “जब मानवता के साथ हर कानून को ताक पर रख दिया गया है तो ऐसे समय में अपना रुख तय नहीं करना और चुपचाप देखते रहना गलत है।“

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आपको सिर्फ संदर्भ के लिए बता देते हैं कि आम नागरिकों के जीवन की रक्षा का आह्वान करने वाले युद्ध विराम के इस प्रस्ताव का विरोध किन देशों ने किया। इज़रायल को तो इसका विरोध करना ही था, लेकिन उसके साथ अमेरिका, ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, फिजी, ग्वाटेमाला, हंगरी, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरो, पापुआ न्यू गिनी, टोंगा और पराग्वे शामिल हैं।

वहीं जिन 45 देशों ने इस प्रस्ताव से दूरी बनाकर तटस्थ रहने का ढोंग किया उनमें भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, साइप्रस, डेनमार्क, जॉर्जिया, जर्मनी, ग्रीस, इराक, इटली, जापान, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देश शामिल हैं।

नीचे दी तस्वीर में उन सभी देशों के नाम देखे जा सकते हैं जिन्होंने प्रस्ताव के समर्थन, विरोध में वोट किया। साथ ही उन देशों की सूची भी है जिन्होंने इससे दूरी बनाई।

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भारत के इस कदम पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो एक्स पर लंबी पोस्ट लिखी है। प्रियंका गांधी ने महात्मा गांधी के उस कथन का उल्लेख किया कि आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है। उन्होंने कहा, “हमारे देश की स्थापना अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर हुई थी। इन सिद्धांतों के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। ये सिद्धांत संविधान का आधार हैं, जो हमारी राष्ट्रीयता को परिभाषित करते हैं। वे भारत के उस नैतिक साहस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य के रूप में उसके कदमों का मार्गदर्शन किया है।“

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एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी भारत के रुख पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, “...फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत सरकार के बीच भ्रम की स्थिति है. भारत की नीति फिलिस्तीन का समर्थन करने की थी, इजरायल का नहीं. (फिलिस्तीन में) हजारों लोग मर रहे हैं और भारत कभी इसका समर्थन नहीं किया. इसलिए मौजूदा सरकार में असमंजस की स्थिति है...”

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सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने भी इस मुद्दे पर अपनी पार्टी का रुख सामने रखा है। बयान में कहा गया है कि पार्टी इस बात से स्तब्ध है कि भारत ने उस प्रस्ताव से दूरी बनाई है जिसमें नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए युद्ध विराम का आह्वान था। उन्होंने लिखा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर इस संहार को रोकन चाहिए।

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आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने भी भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पर गैरहाजिरी की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि, “यह पहली बार है जब भारत ने मानवता, युद्ध विराम और विश्व शांति के विषय पर सबसे आगे रहने के बजाय ढुलमुल रवैया अपनाया। केंद्र सरकार भारत की विदेश नीति के साथ खिलवाड़ बंद करें।मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील नीति हमारी विदेश नीति का ध्वज होना चाहिए।“

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भारत के इस रुख पर जहां विपक्ष ने सरकार की तीखी आलोचना की है, वहीं कूटनीति विशेषज्ञों और विदेशी मामलों पर नजर रखने वाले पत्रकारों ने भी सरकार के इस कदम पर हैरानी जताई है।

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