देश में फैली कोरोना महामारी के खिलाफ जारी जंग में स्वास्थ्य कर्मी सबसे पहली पंक्ति में खड़े हैं। केंद्र की मोदी सरकार ने इन्हें कभी मसीहा कहा तो कभी कोरोना वॉरियर्स के नाम से बुलाया। ताली से लेकर थाली तक बजवाई, लेकिन इनके लिए जो जरूरी कदम उठाए जाने थे वह नहीं उठाए गए। यही वजह है कि आज 480 से ज्यादा मामलों के साथ कोरोना का नया हॉटस्पॉट बन गया दिल्ली का AIIMS, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान। इनमें 17 रेजिडेंट डॉक्टर्स, 2 फैकल्टी और 75 एटेंडेंट हैं। इसके अलावा कई सफाईकर्मी, लैब टेक्नीशियन और अन्य लोग भी संक्रमित हैं।
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लगातार खबर आ रही थी कि स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सरकार पर्याप्त सुविधाएं और सुरक्षा इंतजाम नहीं कर रही हैं। यहां तक कि उन्हें मिलने वाले PPE किट्स भी स्वास्थ मंत्रालय के ही न्यूनतम मानकों के नहीं थे। लेकिन संवेदना के साथ इन शिकायतों को दूर करने की बजाए सवाल उठाने वाले डॉक्टरों को ही डरा धमका कर चुप कराने की संस्कृति बन गई है इस सरकार में।
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पिछले तीन दिन से AIIMS के अंदर नर्सों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है। इस कोरोना काल में किसी भी देश की यह सबसे बड़ी खबर होती। लेकिन हमारे यहां तो मुख्यधारा की मीडिया ने ब्लैकआउट कर रखा है इस खबर को।
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AIIMS के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया की तरफ पूरा देश उम्मीद से देख रहा था कि वो इस स्वास्थ्य संकट की घड़ी में हम सबको दिशा दिखाएंगे। लेकिन वो तो बिना रीढ़ के इंसान निकले जो खुद अपने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए, उनकी और हमारी सुरक्षा करने की बजाए सरकार की कठपुतली बन गए।
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