वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का कितना असर पड़ा है, इसका ठीक-ठीक हिसाब तो अब तक नहीं लगाया जा सका है, लेकिन हाल ही में एक सप्ताह के भीतर हमने दुनिया भर के शेयर बाजारों को 5 खरब डॉलर का नुकसान झेलते देखा। न्यूयॉर्क स्थित तनका कैपिटल के मुख्य निवेश अधिकारी ग्राहम तनका ने सही ही कहा है कि अभी किसी को नहीं पता कि गिरावट कितनी होने जा रही है।
गैर सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक चीन के ह्युवेई प्रांत, जहां से वायरस फैला, के बाहर की फैक्टरियां 50-75 क्षमता पर ही काम कर पा रही हैं क्योंकि लाखों कर्मचारी अपने गृह राज्य में फंसे हैं और यात्रा प्रतिबंध के कारण वे काम पर नहीं लौट पा रहे हैं। चीन का मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेज मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जनवरी के 50 से गिरकर फरवरी में 35.7 रह गया जो नवंबर, 2008 के बाद का न्यूनतम स्तर है। नॉन मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई भी जनवरी के 54.1 से गिरकर फरवरी में 29.6 रह गया। चीन आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसकी वैश्विक जीडीपी में भागीदारी 17 फीसदी की है और अनुमान है कि कोरोना के कारण चीन की सालाना विकास दर में इस साल 2 फीसदी की गिरावट आ सकती है।
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 24 फीसदी की भागीदारी है इनका कुल सालाना व्यापार 720 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। अगर जापान और दक्षिण कोरिया में वायरस का संक्रमण और फैला तो कार, मशीनरी, ऑप्टिकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और केमिकल उत्पाद से जुड़ी सप्लाई पर काफी बुरा असर पड़ सकता है।
भारत में मैन्यूफैक्चरिंगऔर निर्यात पर काफी बुरा असर पड़ा है, खास तौर पर मेडिसिन, इलेक्ट्रॉनिक, टेक्सटाइल और केमिकल के क्षेत्रों में। सालाना 30 अरब डॉलर का कारोबार करने वाले इस क्षेत्र की भारतीय कंपनियां मुख्यतः चीन से अपनी सप्लाई मंगाती हैं। दवाओं के लिए 70 फीसदी कच्चा माल और कुछ-कुछ मोबाइल सेट के तो 90 फीसदी तक कल-पुर्जे चीन से मंगाए जाते हैं। ऐप्पल ने जिस तरह अपना बिक्री अनुमान घटा दिया है, उसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना वायरस का कितना असर पड़ने जा रहा है। वाहन उद्योग पर खास तौर पर दुनिया भर में खासा बुरा असर पड़ा है और जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक इससे प्रभावित हैं। फिएट क्रिसलर ने हाल ही में कहा है कि यूरोप में इसके संयंत्रों में से एक में तो हालत इतनी बुरी है कि कुछ ही हफ्तों में इसे बंद कर देने की नौबत आ जाएगी। तमाम फैक्टरियों ने उत्पादन को धीमा कर दिया है ताकि बंदी की नौबत न आए लेकिन अगर चीन में उत्पादन जल्दी ही पूरी क्षमता पर शुरू नहीं हुआ तो जल्द ही उन्हें काम बंद कर देना पड़ेगा।
चीन के बाहर तमाम देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण का वैश्विक जीडीपी पर काफी बुरा असर पड़ने का अनुमान है। इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ‘ब्लैक स्वान’ कहा जा रहा है जिसका मतलब है कि जिसके असर का ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगाया जा सके। फिर भी, ब्रिटेन की रिसर्च फर्म ऑक्सफोर्ड इकॉनोमिक्स का मानना है कि अगर कोरोना का असर छह माह तक बना रहा तो वैश्विक जीडीपी में कम से कम 1.1 खरब डॉलर यानी 1.3 फीसदी की गिरावट आ सकती है। कंपनी ने सार्स और स्वाइन फ्लू के पिछले संक्रमणों के कारण हुए असर के आधार पर यह गणना की है।
विमानन कंपनियों का अंदाजा है कि इससे मांग में इस साल 4.7 फीसदी की कमी आएगी और इससे उन्हें 29 अरब डॉलर का नुकसान होगा। वर्ष 2008 के बाद यह पहली बार होगा जब पूरी दुनिया में हवाई यात्रा में गिरावट दर्ज की जाएगी। सप्लाई चेन एनालिटिक्स फर्म ट्रेंड फोर्स का मानना है कि स्मार्ट फोन और नोटबुक के उत्पादन में इस तिमाही 12 फीसदी की गिरावट रहेगी और पिछले पांच साल में इस क्षेत्र का यह सबसे खराब प्रदर्शन होगा। वीडियो गेम के उत्पादन में 10 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। वुहान, जहां से कोरोना वायरस फैला, में ऑप्टिकल फाइबर की तमाम कंपनियां हैं और आलम यह है कि विश्व का 24 फीसदी उत्पादन यहीं होता है। इसका एक असर यह भी होगा कि दुनिया भर में जहां-जहां 5जी सेवा शुरू होने जा रही थी, उसमें अब देरी हो जाएगी।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोरोना वायरस का संक्रमण कब तक बना रहेगा क्योंकि मूडीज़ का मानना है कि अगर जल्दी ही इस वायरस पर अंकुश नहीं लगा तो विश्व के आर्थिक मंदी की गिरफ्त में आ जाने की पूरी-पूरी आशंका है।
दुनिया भर में उन कंपनियों के हाथों के तोते उड़े हुए हैं जिनकी कच्चे माल अथवा कल-पुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता काफी अधिक है। इसका असर यह होगा कि आने वाले समय में ये कंपनियां चीन पर निर्भरता घटाने को मजबूर हो जाएंगी, जो कि पहले ही व्यापार युद्ध के कारण आंशिक रूप से शुरू हो चुका है। यहीं पर भारत के लिए अवसर है। अगर हमारे नीति निर्धारकों ने आनन-फानन काम किया और इसका फायदा उठाया तो भारत वैश्विक सप्लाई चेन का एक कहीं अधिक सक्रिय हिस्सा बन सकता है। लेकिन यह तो है दीर्घकालिक फायदा। दिक्कत की बात यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले से ही बुरे दौर से गुजर रही है और कोरोना के कारण उसके लिए और मुसीबतें पैदा होने जा रही हैं और सवाल उनसे जूझने का है।
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