वैसे तो केरल समेत देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस को लेकर सतर्कता बरती जा रही है लेकिन नगालैंड पर इन दिनों खास ध्यान रखने की अपनी वजह है। नगालैंड के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री एस पंगु फोम का कहना है कि राज्य में कोरोना वायरस के किसी मामले की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सात लोगों को घरों में अलग-थलग (आइसोलेशन में) रखते हुए उनकी निगरानी की जा रही है।
उनका यह भी कहना है कि राज्य के किसी भी नमूने का परीक्षण नहीं किया गया है, क्योंकि निगरानी में रहने वालों में वायरस का कोई लक्षण अब तक नहीं मिला है। वैसे, फोम ने दावा किया कि नगालैंड स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ नोवेल कोरोना वायरस के लिए विशेष निगरानी प्रणाली पोर्टल पर रिपोर्ट करने वाला पहला राज्य था।
नगालैंड के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि चीन और अन्य प्रभावित देशों- थाईलैंड, सिंगापुर, हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया आदि, से नगालैंड पहुंचने वाले 42 व्यक्तियों की निगरानी की जा रही है। जिन सात लोगों को घरेलू निगरानी में रखा गया है, उनकी जांच मानक प्रोटोकॉल के अनुसार दिन में दो बार की जाती है। उन्होंने माना कि इन दिनों कोरोना वायरस के संबंध में बहुत अफवाह फैलाई जा रही है। वैसे, कोरोना वायरस के वैश्विक संक्रमण को देखते हुए राज्य ने म्यांमार के साथ सीमा-व्यापार केंद्र को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया है।
Published: undefined
दूसरी तरफ, सरकार ने नगालैंड में चमगादड़ों और उनका शिकार करने वाले लोगों पर किए गए एक अध्ययन की जांच का आदेश भी दिया है। जांच में यह पता लगाने का आदेश दिया गया है कि कैसे वैज्ञानिकों को बिना किसी अनुमति के चमगादड़ों और चमगादड़ के शिकारियों (इंसानों) के जीवित नमूनों का संग्रह करने की अनुमति दी गई थी। यह अध्ययन 2017 में ही किया गया था, जबकि जांच का आदेश हाल ही में दिया गया है, क्योंकि शोधकर्ताओं में से दो चीन में वुहान के वाइरस विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक थे, जहां से घातक कोरोना वायरस का व्यापक प्रकोप शुरू हुआ है।
नगालैंड में चमगादड़ों और उनका शिकार करने वाले लोगों में कोरोना और अन्य वायरसों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। ये क्षमता कैसे विकसित होती है, इसका अध्ययन 2017 में अमेरिका, चीन, सिंगापुर और भारत के शोधकर्ताओं ने किया था। 12 सदस्यों की शोध टीम ने नगालैंड के किफिरे जिला के मिमी गांव में चमगादड़ों और उनके शिकारियों के 85 सैंपल प्राप्त किए थे। इस शोध टीम में वुहान स्थित वाइरस विज्ञान संस्थान के नए रोग विभाग के भी दो वैज्ञानिक थे। इस शोध का खर्च अमेरिकी रक्षा विभाग ने दिया। इसमें टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च शामिल था।
Published: undefined
बता दें कि जैविक नमूने लेने के लिए विदेशी शोधकर्ताओं को सरकार से इजाजत लेना जरूरी है। ऐसी कोई इजाजत नहीं ली गई। यह शोध-रिपोर्ट ‘नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज’ जर्नल में अक्टूबर में छपी। यह पीएलओएस जर्नल बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के द्वारा स्थापित किया गया हैं। इस अनुसंधान कार्यक्रम को अमेरिका के रक्षा विभाग के अधीन रक्षा आशंका पराभव एजेंसी (डीटीआरए) ने वित्त पोषित किया था।
रिपोर्ट छपने पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईएमसीआर) ने जांच बिठाई कि बिना इजाजत यह शोध कैसे किया गया। पांच सदस्यों की जांच समिति राज्य में जनवरी के तीसरे सप्ताह में आई थी। इसने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी है। फरवरी के दूसरे हफ्ते में इस रिपोर्ट को फाइल किए जाने तक नगालैंड सरकार इस जांच-समिति की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।
Published: undefined
चमगादड़ क्यों हैं खतरनाक
चमगादड़ों की तेरह सौ प्रजातियां हैं। ये सर्दी से लेकर जीका, इबोला, रैबीज, सार्स- जैसे सौ तरह के वायरसों से लैस हैं। खुद उन पर इन वायरस का कोई असर नहीं होता। द्वितीयक वाहकों में कुछ स्तनपायी हैं। जनसंख्या बढ़ने और विकास होने से पशुओं से मानव संपर्क बढ़ा है। इससे नए वायरस भी सामने आ रहे हैं। उनके प्रति सतर्कता भारत- जैसे देशों में नहीं है, क्योंकि यहां शोध और चिकित्सा के इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। अपने यहां इसके लिए सुविधाएं नहीं हैं, जबकि विकसित देशों में भारतीय वैज्ञानिक बड़े पैमाने पर इस तरह के शोध में शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने शोधपत्र में लिखा हैः ‘‘नगालैंड में कई समुदाय कम-से-कम सात पीढ़ियों से भोजन एवं पारंपरिक दवाओं के लिए चमगादड़ों का शिकार कर रहे हैं। ये शिकारी राउसेट्टस लेसचेनउल्टी और इयोनीकेटरिस स्पेलिया प्रजाति के चमगादड़ों के लार, खून और मल के संपर्क में आते हैं।’’ शोधपत्र में इन खास इलाकों में समुदाय आधारित बेहतर निगरानी की सिफारिश की गई है, ताकि भविष्य में संभावित महामारी को रोका जा सके।
Published: undefined
शोधकर्ताओं ने लिखाः ‘‘हमें चमगादड़ों के खून में फिलोवायरस (उदाहरण के लिए इबोला विषाणु, मारबर्ग विषाणु और डियानलो विषाणु) की मौजूदगी का पता चला है जो पूर्वोत्तर में इंसानों (चमगादड़ शिकारियों) और चमगादड़ों में सक्रिय हो सकते हैं। अभी तक इलाके में इबोला बीमारी का कोई इतिहास नहीं है।’’
शोधकर्ताओं ने कहा कि मीमी गांव के 85 लोगों के खून की जांच की गई और उनमें से पांच के शरीर में इन विषाणुओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता मिली। सह शोधकर्ता इयान मेंडेनहाल ने कहाः ‘‘हमें चमगादड़ों में प्रतिरक्षी मिले जो तीन अलग तरह के फिलो वायरस के सतह पर मौजूद प्रोटीन से प्रतिक्रिया करते हैं जो इन विषाणुओं को पनपने से रोकता है और इस प्रकार अधिकतर प्रतिरक्षी बनते हैं।’’
Published: undefined
उन्होंने कहाः ‘‘इनमें से एक संभवतः मेंगला विषाणु है, जिसे नगालैंड से 800 किलोमीटर दूर चीन में पाया गया था और यह शिकार किए गए चमगादड़ की प्रजातियों में मिलते हैं। दो अन्य तरह के फिलो वायरस अब भी अज्ञात हैं।’’ हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्हें पुख्ता तौर पर चमगादड़ों में फिलो वायरस होने के सबूत नहीं मिले हैं। कारण बताते हुए मेंडेन हाल ने कहा कि यह चमगादड़ों से लिए गए नमूने कम होने, सीरम में विषाणु की कमजोर मौजूदगी, विषाणुओं की आनुवंशिक विविधता की वजह से भी संभव है कि परीक्षण में इनकी पुष्टि नहीं हो सकी।
उन्होंने कहा कि हम इस बारे में अंजान हैं कि क्या ये विषाणु रोगकारी हैं या वे बिना किसी लक्षण चमगादड़ों में रहते हैं। हम लोगों की सेहत पर खतरे को विस्तार से समझने के लिए और अध्ययन कर रहे हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि पारिस्थितिक अवरोध सहित कुछ कारणों की वजह से यह बीमारी एशिया में नहीं फैली लेकिन चमगादड़-मानव के बीच संपर्क बढ़ने से इन बीमारियों के फैलने का खतरा है।
गौरतलब है कि इबोला और मारबर्ग विषाणु से संक्रमित होने पर तेज बुखार और रक्तस्राव होता है जिससे कई अंग और धमनियां प्रभावित होती हैं और 50 फीसदी मामलों में व्यक्ति की मौत हो जाती है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined