ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी के सीएसआईआरओ के शोधकर्ताओं ने सार्स कोव-2 के जीवित रहने को लेकर अंधेरे में तीन अलग-अलग तापमान में परीक्षण किया और पाया कि तापमान के बढ़ने के साथ वायरस के जीवित रहने के दरों में गिरावट आई। वैज्ञानिकों ने पाया कि 20 डिग्री सेल्सियस में सार्स कोव-2 मुलायम सतह पर जैसे कि मोबाइल फोन की स्क्रीन, स्टील, कांच और प्लास्टिक के बैंक नोट की सतह पर "बेहद मजबूत" बना हुआ था और 28 दिनों तक जिंदा रहा।
30 डिग्री सेल्सियस तापमान में वायरस के जीवित रहने की दर घटकर 7 दिन हो गई और 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में वायरस 24 घंटे के भीतर तक जिंदा रह सकता है। वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिए तीन अलग-अलग तापमान पर परीक्षण किए. शोधकर्ताओं का कहना है कि कॉटन जैसी खुदरा सतहों पर सबसे कम तापमान पर 14 दिनों तक वायरस जीवित रहा।
ऑस्ट्रेलिया के सेंटर फॉर डिजीज के निदेशक ट्रेवर ड्रिवू के मुताबिक इस शोध में अलग-अलग सामग्रियों पर वायरस के सूखे नमूनों को शामिल करने से पहले परीक्षण किया गया जिसमें अत्यंत संवेदनशील प्रणाली का इस्तेमाल किया गया, जिसमें जीवित वायरस के निशान पाए गए, जो कोशिकाओं को संक्रमित करने में सक्षम थे। ड्रिवू के मुताबिक, "इसको कहने का मतलब यह नहीं है कि वायरस की मात्रा किसी को संक्रमित करने में सक्षम होगी।" साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति इन चीजों को लेकर लापरवाही करता है और उसे छूता है और फिर मुंह या आंख छूता है तो हो सकता है वह संक्रमित हो जाए।
सीएसआईआरओ के मुताबिक यह शोध जिन परिस्थितियों में किया गया वह वायरस के अनुकूल थे, जैसे कि अंधेरा कमरा, स्थिर तापमान और नम हवा। लेकिन असल जिंदगी में वायरस को अपने अनुकूल वातावरण कम ही मिलता है। सीएसआईआरओ के मुताबिक वायरस मुख्य रूप से हवा के माध्यम से फैलता है, लेकिन सतहों के माध्यम से वायरस के प्रसार में और अधिक जानकारी के लिए ज्यादा शोध की जरूरत है।
सीएसआईआरओ की डेबी ईगल्स कहती हैं, "हालांकि सतह के जरिए सटीक प्रसार की भूमिका, सतह के संपर्क तापमान और संक्रमण के लिए जरूरी वायरस की मात्रा अभी तक निर्धारित नहीं हो पाई है, यह साबित करने के लिए कि वायरस सतहों पर कितनी देर तक जिंदा रह सकता है। उच्च संपर्क क्षेत्रों में जोखिम को कम करने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है."
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