वैश्विक महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरा देश लॉकडाउन है। इस बीच घरों में नजरबंद लोगों के मनोरंजन के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने सरकारी चैनल दूरदर्शन पर चर्चित पुराने धार्मिक सीरियल 'रामायण' और 'महाभारत' का पुन: प्रसारण शुरू कर दिया है और उसका जमकर प्रचार-प्रसार भी कर रही है।
लेकिन ये सब खबरों और तस्वीरों में सुनने-देखने में तो काफी अच्छा लगता है, लेकिन धरातल पर सच्चाई कोई और ही रुख दिखा रही है। दरअसल लॉकडाउन की वजह से देश भर के महानगरों में रोजी-रोटी और तमाम रोजगार के साधन बंद होने के बाद हजारों-हजार की संख्या में श्रमिकों को भूखे-प्यासे पैदल ही सैकड़ों किमी दूर अपने गांवों की ओर लौटना पड़ रहा है। ऐसे में उनके लिए सड़क पर किसी तरह एक वक्त की 'रोटी' हासिल करना महाभारत बनता जा रहा है।
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पिछले पांच दिनों में देश की सड़कों से कई ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जो किसी के भी दिल को दहला देती हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए 25 मार्च से पूरा देश लॉकडाउन है, लिहाजा महानगरों के सभी सरकारी, गैर सरकारी ऑफिसों के साथ ही तमाम कंपनियां और फैक्टरियां बंद हो गईं और उनमें काम करने वाले लाखों मजदूर बेकार हो गए। लॉकडाउन में वाहनों के बंद होने की वजह से कोई एक हजार तो कोई पांच सौ किलोमीटर का सफर कर पैदल अपने घर लौट रहा है।
ऐसे अफरा-तफरी के माहौल में उन महानगरों से ज्यादा लोग लौट रहे हैं, जहां संक्रमित मरीज पाए जा रहे हैं। इस बीच सड़कों पर मेला लगा हुआ है और लोग भूख से बिलबिला रहे हैं। लॉकडाउन का पालन कराने की जिम्मेदारी संभाल रहे पुलिसकर्मी कहीं लाठी बरसा रहे हैं तो कहीं इंसानों को मेंढक जैसे रेंगने के लिए मजबूर कर रहे हैं। सबसे ज्यादा भयावह तस्वीर बरेली से आई है, जहां सरकारी मुलाजिम महिलाओं और बच्चों के ऊपर रसायन छिड़क कर सैनिटाइज करते देखे गए हैं।
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इन सभी पहलुओं के बीच केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण विभाग ने छोटे पर्दे (टीवी) पर धार्मिक सीरियल 'रामायण' और 'महाभारत' का पुनः प्रसारण शुरू कर दिया है, ताकि अपने घरों में नजरबंद लोग आराम से मनोरंजन कर सकें। लेकिन, शायद ही सरकार को पता रहा हो कि जिस समय कुछ लोग अपने घरों में आराम से बैठकर रामायण सीरियल देख रहे होते हैं, ठीक उसी समय समाज का एक बड़ा तबका (मजदूर वर्ग) सड़कों पर 'भूख' और 'जलालत' का महाभारत देख रहा होता है।
वहीं, अगर देश के पिछड़े इलाके बुंदेलखंड की बात की जाए तो यहां के करीब दस से पन्द्रह लाख कामगार महानगरों में रहकर बसर कर रहे हैं, जिनकी अब घर वापसी हो रही है। गैर सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो पिछले चार दिनों में करीब एक लाख से ज्यादा मजदूरों की वापसी हो चुकी है और इनमें से बहुत कम ही लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग हुई है। इस बीच बांदा के अपर जिलाधिकारी संतोष बहादुर सिंह ने आदेश दिया है कि “गांवों में बड़ी संख्या में बाहर से लोग आए हैं, इनकी ग्रामवार सूची बनाई जाए और उन्हें विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों में क्वारंटीन किया जाए।”
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इस पत्र से जाहिर है कि रोजी-रोटी की जुगाड़ में दूसरे प्रदेश गए दिहाड़ी मजदूर अगर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का सफर पैदल कर किसी तरह अपने घर पहुंच भी जा रहे हैं, तो न तो वहां उनकीजांच हो रही है और न ही उनके साथ ढंग का व्यवहार हो रहा है। बांदा के बुजुर्ग अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान कहते हैं, “लॉकडाउन की घोषणा से पहले सरकार को कम से कम तीन दिन की मोहलत उन लोगों की घर वापसी के लिए देना चाहिए था, जो परदेश में मजदूरी कर रहे थे। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय से लॉकडाउन का कोई अर्थ नहीं निकला।” बकौल चौहान, “घरों में 'रामायण' हो रही है और मजदूर वर्ग सड़क पर 'रोटी' का 'महाभारत' देख रहा है। ऊपर से उन्हें पुलिस की लाठियां ब्याज में मिल रही हैं।”
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