शहर सपने दिखाते हैं। जितना बड़ा शहर उतना बड़ा सपना। सपना विकास, समृद्घि और बेहतर संभावनाओं का। यही सपना यहां के लोगों को बड़े शहरों तक खींच ले जाता है। लोग अपने घर-परिवार, नाते-रिश्ते से दूर अपने सपनों के शहर में पहुंच जाते हैं। कठिन परिस्थितियों में रहकर वहां की समृद्घि और विकास में अपनी पूरी जिंदगी खपा देते हैं। इतने त्याग और योगदान के बाद जब कोरोना संकट आया तो करोड़ों लोगों को सपनों के शहरों ने नाउम्मीद किया। वह भी बुरी तरह से।
Published: 22 May 2020, 2:59 PM IST
अपने-अपने सपनों के शहर से लौट रहे लोग अब यही कह रहे हैं कि वहां कभी नहीं जाना है। उनका कहना है कि अब बाकी का समय अपनों को देंगे। जो भी अपना हुनर है उसके जरिए प्रदेश की खुशहाली में योगदान देंगे। अलग-अलग प्रदेशों से आने वाले कुछ ऐसे ही प्रवासी श्रमिकों और कामगारों से गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो कहा कि ट्रेन की यात्रा में कोई दिक्कत नही हुई। यहां से सरकार हमको हमारे घर तक भी छोड़ेगी। कमोबेश यही बात लुधियाना से आने वाली बड़हलगंज निवासी युक्ति, गुंटूर से आए आजमगढ़ निवासी हरेंद्र ने भी कही।
Published: 22 May 2020, 2:59 PM IST
महराजगंज के रामदीन लुधियाना में कपड़े का काम करते है। उनका कहना है, “महामारी काल में समझ आया कि अपने गांव अपनी माटी की अहमियत क्या होती है। बाहर रहने पर बहुत परेशानियां है। यहां आने पर पता चला कि सरकार रोजगार की भी व्यवस्था करेगी। अब ठीक है सबकुछ धीरे-धीरे रम जाएगा।”
Published: 22 May 2020, 2:59 PM IST
बहुत सारा पैसा कमाने गए राहुल भी यही सोचते हैं कि दो पैसे कम मिले, लेकिन अपने गांव में रहकर जो छोटा-मोटा रोजगार होगा, उसी से पेट भर लेंगे। बाहरी राज्यों में वह अपनत्व नहीं है, जो यहां है। महामारी के समय में सब देखने को मिल गया है।
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(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
Published: 22 May 2020, 2:59 PM IST
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Published: 22 May 2020, 2:59 PM IST