कोरोना वायरस के चलते समूचे पंजाब में लागू कर्फ्यू और लॉकडाउन ने इस कृषि प्रधान सूबे के किसानों की सांसें अटका दी हैं। यहां 37 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती इस बार की गई है और अब फसल पककर लगभग तैयार है। लेकिन किसान खौफजदा हैं कि हालात नहीं सुधरे तो वे पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।
देशव्यापी लॉकडाउन के चलते परिवहन व्यवस्था अनिश्चित काल के लिए स्थगित है। इस वजह से तय है कि इस बार बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा से आने वाले प्रवासी खेत-मजदूर कतई पंजाब का रुख नहीं करेंगे। राज्य के हर छोटे-बड़े किसान की सबसे बड़ी चिंता यही है कि फसल पककर लगभग तैयार है और थोड़े दिनों बाद कटाई का वक्त शुरू हो जाएगा, जिसे ज्यादा दिन तक नहीं टाला जा सकता। गांवों में कर्फ्यू का माहौल है, जिससे फसल की रखवाली में भी दुश्वारियां आ रही हैं। किसान आशंकित हैं कि गेहूं की कटाई से लेकर मंडियों तक ढुलाई ऐसे आलम में कैसे संभव होगी।
तिस पर शुक्रवार सुबह से तेज हवाओं के साथ हो रही जोरदार बारिश भी फसलों पर तेजाबी कहर बनकर टूट रही है। पंजाब में गेहूं के अलावा पूरी तरह तैयार आलू, मटर और शिमला मिर्च की फसल किसानों ने काट ली है, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन में मंडियों तक नहीं पहुंचने के चलते वह सड़ने लगी हैं। पंजाब के सभी जिलों से ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं।
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स्थानीय किसान यह कटाई मशीनों के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों के जरिए करते हैं। मार्च के दूसरे पखवाड़े में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और उड़ीसा से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर यहां आना शुरू कर देते हैं। इनकी तादाद लाखों में होती है। फसल कटाई के वक्त ज्यादातर खेत इन्हीं के हाथों में रहते हैं। तथ्य है कि पंजाब का किसान प्रवासी मजदूरों के बगैर अधूरा है। कुछ साल पहले मनरेगा के चलते प्रवासी मजदूरों की आमद में कमी आई तो पंजाबी किसानों ने मजदूरी के रेट बढ़ा दिए। इससे प्रवासी मजदूर फिर बड़ी तादाद में पंजाब का रुख करने लगे। आज कारोना वायरस ने फिर से यह रफ्तार रोक दी है तो किसान खुद को फंसा महसूस कर रहे हैं।
जालंधर जिले के गांव गीदड़पिंडी में 53 एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती करने वाले सतनाम सिंह कंबोज बताते हैं कि कंबाइन के बावजूद उन्हें अपने खेतों के लिए कम से कम 30 मजदूरों की जरूरत पड़ती है और इसके लिए वह प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं। स्थानीय खेत मजदूरों की पहले से कमी है और हालात साफ संकेत कर रहे हैं कि इस बार पंजाब में प्रवासी मजदूर नहीं आएंगे। वह पूछते हैं, "क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा!"
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पंजाब के बहुततेरे किसानों की यही चिंता है और दूसरी बड़ी चिंता कोरोना-कर्फ्यू और लॉकडाउन का लंबा खिंचना है। लोक मोर्चा पंजाब के संयोजक अमोलक सिंह कहते हैं कि यह किसानों की नीयति है कि हर साल कोई न कोई आफत-आपदा किसानों पर टूटती है। इस बार इसका नाम कोरोना वायरस है। कपूरथला के गांव जैनपुर में 60 एकड़ जमीन पर गेहूं की फसल उगाने वाले हरनेक सिंह के मुताबिक, "खेतों में फसल पक कर तैयार है और हमारी सांसें डर से अटकी हुई हैं। रातों को नींद नहीं आ रही और दिन में चैन नदारद है। समझ नहीं आ रहा कि कैसे बावक्त फसल कटेगी और कैसे बिकेगी। सूबे की किसानी पर पहले ही कर्ज़ का भारी बोझ है।"
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) के निदेशक सरकुलेशन और एजुकेशन डॉ जसकरण सिंह कहते हैं, "किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है। पीएयू ने पंजाब के किसानों की फसलों की हिफाजत के लिए पूरा खाका तैयार कर लिया है। यथाशीघ्र इस बाबत दिशानिर्देश जारी कर दिए जाएंगे। पीएयू विशेषज्ञों की टीम राज्य के किसानों से संपर्क करके कटाई से लेकर आगे तक की कार्रवाई के लिए समय-समय पर सारी हिदायतें जारी करेगी। कोरोना वायरस सरीखा चैलेंज पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सामने भी पहली बार आया है। हमारे विशेषज्ञ अपने तौर पर गहन शोध कर रहे हैं।"
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इसी तरह राज्य के सिविल सप्लाई विभाग के मंत्री भारत भूषण आशू बताते हैं कि, "मंडी में अप्रैल के पहले हफ्ते गेहूं की फसल आना शुरू हो जाती है। कोरोना वायरस के चलते परेशानी आ सकती है। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री के साथ विशेष चर्चा की जाएगी और केंद्र सरकार के समक्ष भी पूरी योजना तैयार करके मामला उठाया जाएगा ताकि किसानों को मुश्किलें न आएं।"
पंजाब के जिन हिस्सों में किसानों ने अपने खेतों में मटर, आलू और अन्य ऐसी फसलों की खेती की थी जो मार्च के अंत तक मंडियों में पहुंचती हैं, वहां बर्बादी का आलम है। मसलन फिरोजपुर जिला स्थित हुसैनीवाला बॉर्डर से सटे खेतों में यही फसलें उगाई जाती हैं। जिला फिरोजपुर के गांव बारेके के किसान बताते हैं कि इस पूरे इलाके की 700 एकड़ खेतिहर जमीन की मौसमी फसलें अब सड़ रही हैं। कर्फ्यू और लॉकडाउन के चलते उन्हें कहीं भेजना अथवा बेच पाना संभव नहीं है। पहले व्यापारी खुद आकर ले जाते थे लेकिन अब लॉकडाउन ने सारी व्यवस्था तहस-नहस कर दी है।
शिमला मिर्च को बोरियों में भरकर नहीं रखा जा सकता और मटर ज्यादा वक्त तक स्टोर नहीं किए जा सकते। इन्हें तुरंत बेचना जरूरी होता है। यहां तक कि दिल्ली की आजाद मार्केट सब्जी मंडी में भी यहां की मटर और शिमला मिर्च जाती हैं। ट्रांसपोर्ट पूरी तरह बंद है और ऐसे में किसान अपनी फसलों को सड़ते हुए देखने को विवश हैं। विवशता का एक पहलू यह भी है कि इस सड़ी हुई या सड़ती हुई फसलों का वे करें क्या? ज्यादा देर रखने से अन्य किस्म की बीमारियां फैलने का खतरा है।
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कोरोना वायरस की मार तो है ही, बेमौसमी बरसाती तूफान भी फसलों की तबाही का बड़ा सबब बन रहा है। शुक्रवार सुबह से पंजाब में तेज हवा के साथ बारिश हो रही है जो कई फसलों के लिए नुकसानदेह है। एक तरफ कई इलाकों के किसानों की सब्जीनुमा फसलें सड़ रही हैं और दूसरी तरफ सब्जियों की कालाबाजारी जोरों पर है।
इन सबके बावजूद दुनिया भर में फैली इस आपदा कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर देशभर में जारी लॉकडाउन के दौरान पंजाब ने बड़ी पहल करते हुए अन्य राज्यों के लिए आवश्यक अनाज भेजने की खास पहल की है। राज्य के विभिन्न गोदामों से 20 विशेष मालगाड़ियों के जरिये 50 हजार टन गेंहू और चावल अन्य राज्यों के लिए रवाना किया गया है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दोहराया है कि दिहाड़ीदारों और श्रमिकों के घर राशन के 10 लाख पैकेट तुरंत बांटे जा रहे हैं। बता दें कि पंजाब में हर साल लगभग 190 लाख टन गेहूं की पैदावार होती है। इसमें से 80 फ़ीसदी गेहूं केंद्रीय एजेंसियों के जरिए देश के बाकी हिस्सों में भेजा जाता है और 20 फ़ीसदी की खपत सूबे में होती है।
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