हालात

उत्तर प्रदेश में कोरोना बना प्रधानी चुनाव के लिए वरदान, योगी के गढ़ में भी पीड़ित बन गए मोहरा

कोरोना संकट उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में पंचायत चुनाव के लिए वरदान बन गया है। नेताओं के लिए यहां के शेल्टर होम और आइसोलनेशन सेंटर सियासी अखाड़ा बन गए हैं। फोटो खींचवाने के लिए खानापूर्ती तो हो रही है, लेकिन इन सेंटरों में बुनियादी सुविधाएं तक गायब हैं।

फोटोः पूर्णिमा श्रीवास्तव
फोटोः पूर्णिमा श्रीवास्तव 

कोरोना संकट के इस भयावह काल में प्रधानी के चुनाव की चर्चा आपको अखर रही होगी। लेकिन यह कहने की वजह है। दरअसल उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों से लेकर मदरसों में बने क्वारंटाइन सेंटरों में सरकारी इंतजाम में दुर्व्यवस्था के साथ ही गंवई राजनीति की तस्वीर दिख रही है। एक तरफ स्कूलों से भाग रहे लोगों पर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, कई जगहों पर लोग गंदा पानी पीकर 14 दिन गुजारने को अभिशप्त हैं तो कई सेंटरों पर आए दिन हंगामा हो रहा है, तो कई जगहों पर मुर्गे की दावतें भी हो रही हैं।

दरअसल इसी साल दिसंबर में उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधानों का कार्यकाल पूरा हो रहा है। सो, जो प्रधान हैं, उन्हें साबित करना है कि उनका कार्यकाल कितना अच्छा है, जबकि जो उन्हें चुनौती दे सकते हैं, उन्हें समाजसेवा के अपने गुणों का उदाहरण पेश करना है। सो, चुनाव की तैयारियों में वर्तमान के साथ ही संभावित चेहरे अभी से जुटे हैं। ऐसे में, गांवों में बने क्वारंटाइन सेंटर में परदेसियों की बेहतर आवभगत में सब अपना भविष्य देख रहे हैं।

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इसी कड़ी में 5 अप्रैल को देवरिया के हरपुर गांव में प्रधानी चुनाव की तैयारियों को लेकर जो कुछ हुआ, उससे स्थिति समझी जा सकती है। एक अन्य घटना में बीते दिनों गौरीबाजार तहसील के हरपुर गांव में प्रधान और प्रधानी की तैयारी कर रहा एक शख्स मुर्गे की दावत को लेकर भिड़ गए। प्रधान की शिकायत पर गांव पहुंचे थानेदार के सामने दूसरे पक्ष ने दलील रखी- ‘कोरोना में मुर्गा खाना मना है क्या?’

यही हाल सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर का है। यहां के चैरीचैरा तहसील में भी पंचायत चुनाव की तैयारियों का असर दिख रहा है। यहां के शिवपुर गांव के प्राथमिक स्कूल में दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद से आए 9 लोगों को हेल्थ चेकअप के बाद ठहराया गया है। लेकिन ग्राम प्रधान पद के चुनाव की तैयारी कर रहे दीनानाथ नाम के एक नेता ने इसके समानांतर पंचायत भवन में 17 लोगों के ठहरने की वीआईपी व्यवस्था करा दी। हंगामे के बाद प्रशानिक अधिकारियों ने स्कूल में बने सेंटर में सभी को भेजा।

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106 लोगों के लिए एक शौचालय

जी नहीं, ऐसा नहीं है कि प्रदेश के सभी क्वारंटाइन सेंटरों में बल्ले-बल्ले ही है। प्रदेश सरकार ने सभी तहसीलों को इसके लिए 70-70 लाख रुपये जारी करने की घोषणा जरूर की है, लेकिन यह मदद अफसरशाही में फंसी दिखती है। इस फंड से टीवी और मच्छरदानी आदि की व्यवस्था तो जरूर ही हो सकती है, लेकिन हर तरफ दुर्व्यवस्था साफ दिखती है।

हाल ही में सुल्तानपुर जिले के राही ब्लाॅक के खागीपुर सड़वा स्थित भारतीय शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज में एक साथ रखे गए 18 गांवों के 140 लोग मूलभूत सुविधाओं को लेकर हंगामा करने को मजबूर हो गए। प्रधान गोवर्धन उर्फ पप्पू कहते हैं कि अपने संसाधन से वह कितना इंतजाम करें। इसी तरह अमावां क्षेत्र के इस्लामिया इंटर कॉलेज के क्वारंटाइन सेंटर में रखे गए लोग मेक इन इंडिया मार्का हैंडपंप से आ रहा गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। सुल्तानपुर के ही सरेनी क्षेत्र के लाल बहादुर शास्त्री शहीद इंटर कॉलेज में बने क्वारंटाइन सेंटर में 106 लोग सिर्फ एक शौचालय पर निर्भर हैं।

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इसी तरह गोरखपुर के भटहट ब्लॉक के चिलबिलवा प्राथमिक स्कूल में बने क्वारंटाइन सेंटर में दिल्ली से आए 11 लोगों का भोजन परिवार वाले पहुंचा रहे हैं। यहां ठहरे राजेश बताते हैं कि चार में से तीन शौचालय जाम हैं। सिर्फ एक शौचालय है, वह भी काफी गंदा है। हैंडपाइप से बालू मिश्रित पानी आ रहा है। कोई दूसरा हैंडपंप छूने नहीं दे रहा है। जिस कमरे में चार लोग ठहरे हैं, उसमें पंखा भी नहीं है। प्रधान प्रतिनिधि रामनरेश राजभर का कहना है कि जो व्यवस्था है, उसी में काम चलाना है। बस्ती जिले के परसा लंगड़ा गांव के प्राथमिक स्कूल में ठहरे 11 लोगों की रात मच्छर मारते हुए गुजर रही है।

लगभग यही हाल कमोबेश प्रदेश के हर सरकारी क्वारंटाइन का है। लगभग सभी जगह बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं। गांव के ही बाहर से आए लोगों के साथ अछूत जैसा आचरण हो रहा है। गांव-समाज के लोग जब ऐसा कर रहे हैं, तो प्रशासन तो खैर इन गरीबों को क्या ही समझेगा। ज्यादातर जगहों पर प्रशासन ने बाहर से आए लोगों को चार दिवारों से घिरे और एक छत से ढंके कमरे में बस जानवरों की तरह ठूंसकर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लिया है। ऐसे में कुछ जगहों पर पंचायत चुनाव की वजह से स्थानीय नेताओं की तरफ से अवभगत की व्यवस्था संकट की इस घड़ी में कुछ पीड़तों को किस्मत वाला बना रही है। हालांकि साफ है कि पंचायत चुनाव नहीं होता तो ये नेता भी इतने दिल वाले नहीं होते।

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