कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को बिना बुरे प्रभावों का पता लगाए जबरन फोर्टिफाइड चावल खिलाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सवाल किया कि पीडीएस के तहत फोर्टिफाइड चावल बांटने की योजना को लागू करने की इतनी जल्दी क्या थी। उन्होंने पूछा कि आखिर नीदरलैंड की कंपनी रॉयल डीएसएम के साथ सरकार का क्या संबंध है, जिसे देश में चावल वितरित करने के लिए एक बड़ा अनुबंध मिला है। उन्होंने जानना चाहा कि क्या इसमें कोई लेन-देन शामिल था।
फोर्टिफाइड चावल के मुद्दे पर गुरुवार को प्रेस कांफ्रेस कर पवन खेड़ा ने कहा कि 15 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री ने लाल किले पर खड़े होकर घोषणा कर दी कि जिनको आयरन डेफिशियेंसी होती है, उनको वो फोर्टिफाइड राइस खिलाएंगे। फोर्टिफाइड राइस, ऐसा चावल हुआ, जिसके अंदर एक प्रक्रिया करके आयरन डाल दिया जाता है। पवन खेड़ा ने कहा कि अब साहब ने कह दिया कि जितनी सरकारी योजनाओं में चावल बंटता है, उसमें अब फोर्टिफाइड राइस मिलेगा, तो दूसरे ही दिन सबने शुरू कर दिया।
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पवन खेड़ा ने कहा कि आखिर क्या रिसर्च हुई है? करोड़ों भारतीयों को आप जबरदस्ती फोर्टिफाइड राइस खिला रहे हो, बिना ये जाने कि वो फोर्टिफाइड राइस उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं हैं। खेड़ा ने कहा कि कुछ दशक पहले नमक को फोर्टिफाइड किया गया था। इसके तहत नमक में आयोडीन मिलाकर लोगों को दिया गया था, क्योंकि गोइटर नाम की एक बीमारी बहुत ज्यादा प्रचलित थी उस वक्त। आयोडीन की एक विशेषता होती है कि अगर आपके शरीर में ज्यादा मात्रा में हो तो वो टायलेट के जरिए निकल जाता है। लेकिन आयरन अगर शरीर में ज्यादा हो गया तो वो नुकसान देगा, लेकिन साहब ने तय कर लिया कि फोर्टिफाइड राइस अब इस देश को खाना है तो खाना पड़ेगा।
पवन खेड़ा ने कहा कि 2021 से लेकर आज 2023 तक, 138 लाख टन फोर्टिफाइड राइस बंट चुका है। कोई रिसर्च नहीं, कोई कसंल्टेशन नहीं, कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि सरकार ने इतना बड़ा निर्णय बिना किसी कंसल्टेशन के उन कंसल्टेंट के कहने पर ले लिया, जिनका एनजीओ उसी कंपनी के पैसे से चल रहा है, जिसे देश में फोर्टिफाइड चावल बांटने का ठेका मिला है। खेड़ा ने कहा कि ये कंसलटेंट इस देश की नीति तय कर रहे हैं कि इस देश द्वारा फोर्टिफाइड राइस खाया जाएगा।
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कांग्रेस नेता ने कहा कि अभी पिछले दिनों रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक रिपोर्ट छापी है। इसके अनुसार नीदरलैंड की एक कंपनी है रॉयल डीएसएम, जिसे फोर्टीफाइड राइस का ठेका मिला है। क्योंकि हिन्दुस्तान के राजा ने घोषित कर दिया कि फोर्टिफाइड राइस चलेगा तो इस कंपनी ने तुरंत हैदराबाद के पास एक प्लांट भी लगा लिया। दरअसल फोर्टिफाइड राइस का बिजनेस 1,800 करोड़ का है। अब रॉयल डीएसएम भारत सरकार के नीति निर्धारकों तक कैसे पहुंचा, ये बड़ा रोचक तथ्य है। दरअसल ये कंसल्टेंस्ट के रास्ते यहां तक पहुंचा।
ये कंसल्टेंट या एनजीओ वे हैं जो रॉयल डीएसएम से या तो फंड प्राप्त करते हैं या उसकी साझेदार हैं। ऐसी 6 संस्थाओं को मिलाकर मोदी सरकार में पीयूष गोयल जी के मंत्रालय के भीतर एक रिसोर्स सेंटर बनाया गया। इस रिसोर्स सेंटर के भीतर बैठकर ये नीति तय की गई कि फोर्टिफाइड राइस इस देश में अब मैंडेटरी होगा, वही बंटेगा, वही बिकेगा। तो ये है हमारा अमृत काल। इस अमृत काल में बच्चों को, गरीबों को, 80 करोड़ लोगों को विष दिया जा रहा है और इसको अमृत काल बताया जाता है।
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पवन खेड़ा ने कहा कि झारखंड का एक जिला है जिसमें थैलेसीमिया नाम की बीमारी बहुत ज्यादा है। वहां ये चावल पहुंच गया। चावल के बैग पर कहीं कोई वॉर्निंग नहीं लिखी हुई कि जिनको थैलेसीमिया है वो ये चावल नहीं खा सकते। लगभग 1 साल तक झारखंड के इस जिले ये चावल खाया गया, जहां थैलेसीमिया बहुत ज्यादा है। इस चावल को खाने से थैलेसीमिया के जो मरीज हैं उनको और ज्यादा नुकसान हो सकता है।
नीति आयोग के रिसर्चर्स ने फाइल पर लिखा है कि हाइपरटेंशन और डायबिटीज के मरीजों के लिए फोर्टिफाइड राइस नुकसानदायक हैं। एक्सपर्टस की सलाह है कि आयरन डेफीशियेंसी दूर करने के लिए गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर की सुपरविजन में आयरन दिया जाता है, आप एक बोरी चावल भेज देते हैं बिना कोई गाईड लाइन्स देते हुए कि कौन ले सकता है और कौन नहीं ले सकता है। खेड़ा ने कहा कि वैज्ञानिक रिसर्च के माध्यम से ये निर्णय नहीं लिया गया, ये हम दावे के साथ कह सकते हैं। ये हम दावे के साथ कह सकते हैं कि लोगों के स्वास्थ्य के साथ खेला गया।
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अंत में पवन खेड़ा ने कहा कि आखिर किसकी सलाह थी, किसका दबाव था जो देश को फोर्टिफाइड चावल खिलाने का फैसला लिया गया। जो सामने दिख रहा है वो ये है कि मोदी सरकार को इसकी सलाह देने वाले 6 एनजीओ और उन सभी की निर्भरता रॉयल डीएसएम कंपनी पर, जो इस देश को फोर्टिफाइड राइस खिला रहा है। इसको जस्टिफाई करने के लिए जो शब्द लिखे गए उसको वो भी उन्हीं एनजीओज ने लिखे, उन्हीं कंसलटेंट ने लिखे जो रॉयल डीएसएम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनके लिए लॉबिंग कर रहे हैं। ये साफ केस है। लेकिन आजकल पिछले 9 साल से सीएजी को पता नहीं कौन सी नींद की गोली दी गई है कि जागते ही नहीं हैं।
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