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वास्तविक घरेलू आय में आई अभूतपूर्व गिरावट, अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी चुनौती के प्रति सरकार ने बंद की आंखें: कांग्रेस

जराम रमेश ने कहा कि केंद्रीय बजट आया और चला गया, लेकिन शुतुरमुर्ग वाली कहावत की तरह नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनकी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष खड़ी सबसे बुनियादी चुनौती के प्रति आंखें बंद किए हुए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कांग्रेस ने रविवार को दावा किया कि धीमी वेतन वृद्धि और ‘‘कमरतोड़’’ महंगाई के कारण वास्तविक घरेलू आय में अभूतपूर्व गिरावट आई है। ‘‘शुतुरमुर्ग वाली कहावत’’ की तरह सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष खड़ी सबसे बुनियादी चुनौती के प्रति आंखें बंद किए हुए है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि एक जानी-मानी ब्रोकरेज कंपनी की नयी रिपोर्ट ने एक बार फिर उस सच्चाई को सामने ला दिया है जिसे केंद्र सरकार लगातार नकारती रही है : भारत में वास्तविक घरेलू आय में लगातार गिरावट आ रही है।

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उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘धीमी वेतन वृद्धि और कमरतोड़ महंगाई के कारण वास्तविक मजदूरी (महंगाई के हिसाब से समायोजित वेतन) या कहें कि आय में अभूतपूर्व गिरावट आयी है।’’

रमेश ने कहा कि कई सर्वेक्षण और डेटा, जिनमें अपंजीकृत उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसयूएसई), भारतीय रिजर्व बैंक के केएलईएमएस डेटा और घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) शामिल हैं, ने कामकाजी भारतीयों के बीच वित्तीय संकट को दर्शाया है।

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उन्होंने कहा कि सरकार के अपने आधिकारिक आंकड़ों सहित डेटा के कई स्रोतों ने इस बात के स्पष्ट प्रमाण भी दिखाए हैं कि श्रमिकों की क्रय शक्ति (खरीदारी करने की क्षमता) 10 साल पहले की तुलना में आज कम हो गयी है।

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘श्रम ब्यूरो का वेतन दर सूचकांक (सरकारी डेटा) : श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी 2014-2023 के बीच स्थिर रही और 2019-2024 के बीच इसमें गिरावट आयी है। कृषि मंत्रालय की कृषि सांख्यिकी (सरकारी डेटा) : डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी हर साल 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी में हर साल शून्य से नीचे 1.3 प्रतिशत की गिरावट आयी।’’

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जयराम रमेश ने आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण सीरीज (सरकारी डेटा) के हवाले से कहा कि समय के साथ औसत वास्तविक कमाई 2017 और 2022 के बीच सभी प्रकार के रोजगारों - वेतनभोगी श्रमिकों, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और स्व-रोजगार श्रमिकों में स्थिर हो गयी है।

उन्होंने श्रम अनुसंधान एवं कार्रवाई केंद्र के हवाले से कहा कि 2014 और 2022 के बीच ईंट भट्ठा श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी या तो स्थिर हो गयी है या घट गयी है।

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उन्होंने कहा कि ईंट भट्ठों में भारी श्रम लगता है और यह भारत के सबसे गरीब लोगों के लिए कम वेतन वाला अंतिम विकल्प होता है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘आठ अगस्त 2024 को राज्यसभा में वित्त विधेयक पर अपने हस्तक्षेप में, मैंने नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों से अर्थव्यवस्था की स्थिति पर सीधे चार सवाल पूछे थे।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री ने अभी तक इन पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है, इसलिए इन्हें दोहराना उचित होगा : निजी निवेश सुस्त क्यों बना हुआ है? ओवरऑल निवेश में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी चार वर्षों में सबसे निचले स्तर पर क्यों गिर गई है?’’

उन्होंने पूछा, ‘‘उपभोग वृद्धि इतनी कमजोर क्यों है? और निजी अंतिम उपभोग व्यय- जीडीपी का सबसे बड़ा घटक- वित्त वर्ष 2014 में केवल चार प्रतिशत के आसपास क्यों बढ़ा? वास्तविक मजदूरी और आय स्थिर क्यों या इसमें गिरावट क्यों आ रही है?"

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कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘जीडीपी के प्रतिशत के रूप में विनिर्माण संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कार्यकाल में 16.5 प्रतिशत से अब गिरकर 14.5 प्रतिशत क्यों हो गया है? कपड़ा जैसे श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र में यह गिरावट विशेष रूप से तेज क्यों रही है? भारत का कपड़ा निर्यात 2013-14 में 15 अरब डॉलर से गिरकर 2023-24 में 14.5 अरब डॉलर क्यों हो गया है?’’

जराम रमेश ने कहा, ‘‘केंद्रीय बजट आया और चला गया, लेकिन शुतुरमुर्ग वाली कहावत की तरह नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनकी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष खड़ी सबसे बुनियादी चुनौती के प्रति आंखें बंद किए हुए हैं।’’

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