कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चीन के साथ हुए ताजा समझौते की घोषणा को लेकर कई सवाल उठाए है। एक अधिकारिक बयान में जयराम रमेश ने कहा है कि “मोदी सरकार की इस घोषणा को लेकर कई सवाल अभी भी बने हुए हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पेट्रोलिंग की व्यवस्था को लेकर चीन के साथ समझौता हो गया है।“ बयान में कहा गया है कि विदेश सचिव ने कहा है कि इस समझौते से "सैनिकों की वापसी हो रही है और अंततः 2020 में इन इलाकों में पैदा हुए गतिरोध का समाधान हो रहा है। जयराम रमेशन कहा कि उम्मीद है कि इस मोर्चे पर भारत की विदेश नीति को लगे इस झटके का सम्मानजनक हल निकाला जा रहा है। उन्होंने यह भी उम्मीद जती कि नए समझौते के बाद “सैनिकों की वापसी से पहले जैसी स्थिति बहाल होगी, जैसी मार्च 2020 में थी।“
कांग्रेस ने याद दिलाया कि पूरी कहानी चीन को लेकर “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नासमझी और भोलेपन का नतीजा है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, मोदी जी की चीन ने तीन बार भव्य मेज़बानी की थी। प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने चीन की पांच आधिकारिक यात्राएं कीं और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ 18 बैठकें कीं। इसमें उनके 64वें जन्मदिन पर साबरमती के तट पर बेहद दोस्ताने अंदाज में झूला झूलना भी शामिल है।“
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जयराम रमेश ने कहा कि उस समय भारत का पक्ष सबसे कमजोर तब साबित हुआ था जब प्रधानमंत्री ने चीन को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि, "न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है"। यह बयान गलवान में हुई झड़प के चार दिन बाद ही दिया गया था, जिसमें हमारे 20 बहादुर सैनिकों ने बलिदान दिया था। उनका यह बयान न सिर्फ़ हमारे शहीद सैनिकों का घोर अपमान था बल्कि इसने चीन की आक्रामकता को भी वैध ठहरा दिया। इसके कारण ही LAC पर गतिरोध के समय समाधान में बाधा उत्पन्न हुई।“
बयान में कहा गया है कि इस बारे में संसद में कोई बहस या चर्चा नहीं कराई गई। जयराम रमेश ने कहा कि चीन की घुसपैठ के पर मोदी सरकार के रवैये का विदेश मंत्री के बयान से साफ अनुमान लगाया जा सकता है, जिसमें कहा गया था कि, “हमें ये समझना होगा कि वे हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। इसका मतलब ये है, हमें ऐसे में क्या करना चाहिए? एक छोटी इकॉनमी होते हुए..क्या हम आगे बढ़कर अपने से बड़ी इकॉनमी से लड़ाई कर लें?”
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आर्थिक स्थिति और अर्थव्यवस्था की बात करते हुए जयराम रमेश ने कहा है कि, चीनी आक्रामकता के बीच भारत की "बड़ी अर्थव्यवस्था" पर आर्थिक निर्भरता बढ़ गई है। भारत में चीनी निर्यात 2018-19 के 70 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2023-24 में रिकॉर्ड 101 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि चीन को भारतीय निर्यात 16 बिलियन डॉलर पर स्थिर रहा। चीन इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और कपड़ा जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में शीर्ष आपूर्तिकर्ता है। भारत के MSMEs ताबड़तोड़ सस्ते चीनी आयात से पीड़ित हैं।
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जयराम रमेश ने ताजा समझौते को लेकर सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं और सरकार को लोगों को विश्वास में लेने का आग्रह किया है। जो अहम सवाल पूछे हैं वे इस तरह हैं:
● क्या भारतीय सैनिक डेपसांग में हमारी दावे वाली लाइन से लेकर बॉटलनेक जंक्शन से आगे के पांच पेट्रोलिंग पॉइंट्स तक पेट्रोलिंग कर सकेंगे जैसाकि वे पहले करते थे?
● क्या हमारे सैनिक डेमचोक में उन तीन पेट्रोलिंग पॉइंट्स तक जा पाएंगे जो चार साल से अधिक समय से हमारी पहुंच से बाहर हैं?
● क्या हमारे सैनिक पैंगोंग त्सो में फिंगर 3 तक ही सीमित रहेंगे जबकि पहले वे फिंगर 8 तक जा सकते थे?
● क्या हमारी पेट्रोलिंग टीम को गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में उन तीन पेट्रोलिंग पॉइंट्स तक जाने की छूट है, जहां वे पहले जा सकते थे?
● क्या भारतीय चरवाहों को एक बार फिर चुशुल में हेलमेट टॉप, मुक्पा रे, रेजांग ला, रिनचेन ला, टेबल टॉप और गुरुंग हिल में पारंपरिक चरागाहों तक जाने का अधिकार दिया जाएगा?
● क्या वे "बफर जोन" जो हमारी सरकार ने चीनियों को सौंप दिए थे, जिसमें रेजांग ला में युद्ध नायक और मरणोपरांत परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह का स्मारक स्थल भी शामिल था, अब अतीत की बात हो गए हैं?
जयराम रमेश द्वारा जारी पूरा बयान इस एक्स लिंक में पढ़ा जा सकता है:
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