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RTI संशोधन: सोनिया गांधी का केंद्र पर हमला, बोलीं- निरंकुश एजेंडा लागू करने के लिए मोदी सरकार ने किया बदलाव

सोनिया गांधी ने कहा कि सूचना आयुक्तों के पद का कार्यकाल केंद्र सरकार के फैसले के अधीनकरते हुए पांच से घटाकर तीन साल कर दिया गया है। 2005 के कानून के तहत उनका कार्यकाल पूरे पांच साल के लिए निर्धारित था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर किए जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है। इस मुद्दे पर उन्होंने एक बयान जारी किया है। सोनिया गांधी ने बयान जारी करते हुए कहा, “कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की सबसे गौरवशाली उपलब्धियों में से एक 2005 में ‘सूचना का अधिकार कानून’ बनाना था। इस ऐतिहासिक कानून ने सूचना आयोग जैसी संस्था को जन्म दिया, जिसने पिछले 13 सालों में प्रजातंत्र के मायने बदलकर शासन और प्रशासन में पारदर्शिता लाने और सरकारों की आम जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का काम किया। यूपीए के आरटीआई कानून को विश्व के सर्वश्रेष्ठ जन सापेक्ष कानूनों में से एक माना गया।”

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सोनिया गांधी ने अपने बयान में कहा, “आरटीआई कानून ने सरकार और नागरिकों के बीच उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी का सीधा संबंध स्थापित किया। इसके साथ ही भ्रष्टाचारी आचरण पर निर्णायक प्रहार भी किया। पूरे देश के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने भ्रष्टाचार के उन्मूलन, सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता के आकलन और नोटबंदी और चुनाव जैसी प्रक्रियाओं की कमियों को उजागर करने के लिए इस कानून का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया।”

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यह कानून जवाबदेही मांगता है और बीजेपी सरकार किसी भी तरह के जवाब देने से साफ-साफ गुरेज करती आई है। इसीलिए बीजेपी सरकार के पहले कार्यकाल में एक एजेंडा के तहत केंद्र और राज्यों में बड़ी संख्या में सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े रहे। यहां तक कि केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी 10 महीने तक खाली रहा। यह सब करके मोदी सरकार का लक्ष्य सिर्फ आरटीआई कानून को प्रभावहीन और दंतविहीन करना था।”

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आरटीआई कानून में संशोधन करने पर सोनिया गांधी ने कहा, “बीजेपी सरकार ने अब आरटीआई कानून पर अपना निर्णायक प्रहार भी कर दिया है। इस कानून की प्रभावशीलता को और कमजोर करने के लिए मोदी सरकार ने ऐसे संशोधन पारित किए हैं, जो सूचना आयुक्तों की शक्तियों को संस्थागत तरीके से कमजोर करके उन्हें सरकार की अनुकंपा के अधीन कर देंगे। लक्ष्य साफ है, सूचना आयुक्त सरकारी अधिकारियों की तरह काम करके सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित न कर पाएं।”

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उन्होंने अपने बयान में कहा, “सूचना आयुक्तों के पद का कार्यकाल केंद्र सरकार के फैसले के अधीन करते हुए पांच से घटाकर तीन साल कर दिया गया है। 2005 के कानून के तहत उनका कार्यकाल पूरे पांच साल के लिए निर्धारित था, ताकि वो सरकार और प्रशासन के हस्तक्षेप और दबाव से पूरी तरह मुक्त रहें। लेकिन संशोधित कानून में पूरी तरह उनकी आजादी की बलि दे दी गई है। सरकार के खिलाफ सूचना जारी करने वाले किसी भी सूचना अधिकारी को अब तत्काल हटाया जा सकता है या फिर पद से बर्खास्त किया जा सकता है। इससे केंद्र और राज्य के सभी सूचना आयुक्तों का अपने कर्तव्य का निर्वहन करने और सरकार को जवाबदेह बनाने का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा।”

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सोनिया गांधी ने कहा, आरटीआई में जो दूसरा दूसरा संशोधन है, केंद्रीय सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्तों और शर्तों के नियम, जो चुनाव आयुक्तों के बराबर थे। अब केंद्र सरकार द्वारा नए सिरे से तय किए जाएंगे। दूसरे शब्दों में कहें, तो उनके वेतन और भत्तों को मोदी सरकार की इच्छानुसार कम और ज्यादा किया जा सकेगा। इन महत्वपूर्ण पदों के कार्यकाल और भत्तों को कम करने का अधिकार अपने हाथ में लेकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित कर दिया है कि कोई भी वरिष्ठ स्वाभिमानी अधिकारी इस तरह के तनावपूर्ण और निगरानी भरे वातावरण में काम करना स्वीकार ही नहीं करेगा। इन संशोधनों के बाद कोई भी सूचना आयुक्त मोदी सरकार के हस्तक्षेप और निर्देशों से बचा नहीं रह सकेगा।”

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कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “आरटीआई में संशोधन के जरिए मोदी सरकार अपने इशारों पर काम करने वाले अधिकारियों को जब तक चाहे, जैसे चाहे नियुक्त कर सकेगी। वे मजबूरी में सरकार की चापलूसी के लिए काम करेंगे और जिन प्रश्नों के उत्तर सरकार नहीं देना चाहेगी, उन पर मौन साध लेंगे।”

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सोनिया गांधी ने कहा, “हमने संसद में इन संशोधनों का विरोध किया है और आगे भी इनके खिलाफ लड़ते रहेंगे। हम अपने लोकतांत्रिक संस्थानों पर इस षड्यंत्रकारी हमले की कड़ी निंदा करते हैं और देश के कल्याण के विपरीत लिए जा रहे बीजेपी सरकार के फैसले और निरंकुश एवं तानाशाही गतिविधियों का निरंतर विरोध करते रहेंगे। जय हिंद!”

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