राजस्थान विधानसभा चुनाव में ईसीआरपी यानी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना मुद्दा बना है। जहां बीजेपी ने इस बार अपने घोषणा पत्र में इस प्रोजेक्ट को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का वादा किया है, वहीं राज्य की मौजूदा कांग्रेस सरकार पहले ही इस प्रोजेक्ट के लिए अपने बजट में प्रावधान कर चुकी है।
पूर्वी राजस्थान के तमाम जिले काफी वर्षों से घरेलू और सिंचाई दोनों तरह की जरूरतों के लिए पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या के निदान के लिए मॉनसून के दौरान चंबल नदी में आने वाले अतिरिक्त पानी को पूर्व राजस्थान तक लाने केलिए ईआरसीपी (पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना) को शुरु करने का ऐलान किया गया था। लेकिन वर्षों से यह परियोजना सियासी रस्साकशी का शिकार है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में भी यह चुनावी मुद्दा बना हुआ है। बीजेपी राजस्थान की गहलोत सरकार पर इस परियोजना के नाम पर धोखा देने का आरोप लगा रही है। लेकिन अब कांग्रेस ने इस बाबत स्पष्ट रूप से तर्क और तथ्य सामने रखे हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सारी जानकारी सामने रखी।
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उन्होंने विस्तार से इस योजना के बारे में लिखा, “प्रधानमंत्री ईआरसीपी को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री पर बार-बार इल्ज़ाम लगाते हैं, लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है।“ जयराम रमेश ने इस मामले की क्रोनोलॉजी को समझाया। उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से बताया:
प्रधानमंत्री ने 7 जुलाई 2018 को जयपुर में और 6 अक्टूबर 2018 को अजमेर में ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्ज़ा देने का वादा किया था। इसका मतलब इस परियोजना के लिए 90% ख़र्च केंद्र सरकार को देना होता।
वर्ष 2018 के अंत में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री को 6 बार पत्र लिखकर ERCP को राष्ट्रीय परियोजना का दर्ज़ा देकर अपना वादा पूरा करने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने पहला ख़त 3 जुलाई, 2020 को लिखा, दूसरा 20 जुलाई 2020 को, तीसरा 26 अक्टूबर 2020 को, चौथा 27 जनवरी 2021 को, पांचवा 12 मार्च 2021 को और छठा एवं आख़री खत 25 जून 2021 को लिखा।
लेकिन प्रधानमंत्री ने न तो किसी पत्र का जवाब दिया और न ही अपना वादा पूरा किया।
अंत में तंग आकर इस परियोजना को राजस्थान सरकार ने अपने दम पर आगे बढ़ाना शुरू किया। इसके लिए वर्ष 2022-23 के बजट में करीब 9 हज़ार 600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। वर्ष 2023-24 के बजट में 13000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
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जयराम रमेश ने अपनी पोस्ट के अंत में लिखा कि, “यह प्रधानमंत्री झूठ योजना जल्द बंद होने वाली है।”
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इस परियोजना के इतिहास में जाएं तो पूर्व की बीजेपी सरकार ने पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में सिंचाई और पेयजल समस्या के स्थायी समाधान के लिए ईआरसीपी का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव का चुनावी लाभ उठाने के लिए बीजेपी ने इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का ऐलान किया था, और खुद प्रधानमंत्री ने 2018 में इसकी घोषणा की थी। लेकिन चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद केंद्र ने इस परियोजना से मुंह मोड़ लिया। हालांकि गहलोत सरकार लगातार केंद्र से इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग करती रही।
इस बार भी कांग्रेस ने अपने अभी अक्टूबर में ईआरसीपी पर केंद्र सरकार के विश्वासघात को जगजाहिर करने के लिए पूर्वी राजस्थान के बारां से अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने इस यात्रा के दौरान पूर्वी राजस्थान के अन्य जिलों का भी दौरा किया था।
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पिछले यानी 2018 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके के 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 49 सीट पर जीत दर्ज की जबकि बीजेपी के हिस्से में सिर्फ 25 सीटें ही हासिल हुई थीं। पर जीत मिली। 8 सीटें निर्दलीयों के हिस्से में आई थीं, जबकि एक सीट पर राष्ट्रीय लोक दल ने कामयाबी हासिल की थी।
ईआरसीपी परियोजना की अनुमानित लागत 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक है जिससे 13 जिलों की दो लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा मिलेगी। पूर्वी राजस्थान में झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, अजमेर, दौसा, करौली, अलवर, भरतपुर और धौलपुर जिले शामिल हैं।
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