कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि जैसा कि आप जानते हैं कि कई महीनों से मोदी सरकार की ओर से हमारे देश के पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ मानहानि और चरित्र हनन का एक निरंतर अभियान चलाया गया है। उन्होंने आगे कहा कि आईएनएक्स मीडिया से संबंधित मामले में जांच एजेंसियों ने एक भी तथ्य पेश नहीं किया है, जो इस केस में बहुत महत्व रखता है।
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उन्होंने आगे कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, साल 1991 में एफआईपीबी का गठन हुआ, कुछ परिवर्तन कुछ साल बाद आए, पर जब कोई एफडीआई का प्रस्ताव आता है, उसकी समीक्षा पहले एफआईपीबी में होती है। एफआईपीबी में 6 सचिव, सदस्य हैं और इस बोर्ड की अध्य़क्षता वित्त सचिव करते हैं। तो पहले प्रस्ताव एफआईपीबी को जाता है, वहां समीक्षा होती है, 6 सचिव उस प्रस्ताव पर अपना मन लगाते हैं, किसी भी प्रस्ताव पर और बाद में अपनी सिफारिशें देते हैं। इसके बाद एफआईपीबी की सिफारिश वित्त मंत्रालय को जाती हैं और वित्त मंत्रालय में 5 ऑफिसर, एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार नहीं बल्कि 5 ऑफिसर उसकी समीक्षा करते हैं। एक अंडर सेक्रेटरी, दो डिप्टी सेक्रेटरी या डॉयरेक्टर, तीसरा ज्योइंट सेक्रेटरी, चौथा एडिशनल सेक्रेटरी और पांचवा सचिव, यानि की वित्त सचिव दो बार देखते हैं।”
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उन्होंने आगे बताया, “आईएनएक्स मीडिया की फाइल वित्त मंत्री को गई और उस फाइल में करीब 24 और प्रस्ताव थे, यानि कि जब फाइल ऊपर जाती है, 24-25 या 30 प्रस्ताव इकट्ठे होकर वित्त मंत्री के सामने पेश होते हैं, उनके हस्ताक्षर के लिए, उनकी अनुमति के लिए या खारिज करने के लिए, अंतिम निर्णय वित्त मंत्री लेते हैं। आईएनएक्स मीडिया की फाइल एफआईपीबी को गई, उसके बाद वित्त मंत्रालय को गई। इसके बाद उन्होंने 28 मई, 2007 को उस फाइल पर हस्ताक्षर किए। पर उसी फाइल पर 11 और हस्ताक्षर थे, उसी फाइल पर 6 एफआईपीबी के सदस्यों के हस्ताक्षर थे। किसी भी ऑफिसर ने फाइल में कोई आपत्ति नहीं जताई, किसी भी ऑफिसर ने कोई टिप्पणी नहीं की। लेकिन उसके बावजूद पूछताछ सिर्फ चिदंबरम से क्यों? आज वो कस्टड़ी में हैं। जांच एसेंसियों ने कुछ ऑफिसरों से बातचीत की है, सवाल-जवाब हुआ है, पर कभी भी जांच एजेंसियों ने ऑफिसरों के खिलाफ कोई सवाल नहीं उठाया। जांच एजेंसियों ने कहीं नहीं कहा है कि ऑफिसरों ने अपराध किया या कोई अपराध हुआ है।”
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उन्होंने आगे कहा, “अगर उस समय के अधिकारियों क अनुमति देने की कोई मंशा नहीं होती तो वहां कुछ टिप्पणी की गई होगी। तो सवाल ये उठता है कि अगर जांच एजेंसियां ये मान कर चल रही हैं कि ऑफिसरों ने कोई गलत काम नहीं किया, कोई अपराध नहीं हुआ है और उनका फाइल में हस्ताक्षर है तो 12 वां व्यक्ति कैसे अपराधी बनता है?”
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जयराम नरेश ने आगे कहा, “तो इस तथ्य से ये बिल्कुल साफ हो जाता है कि साजिश सरकार की और से है, साजिश पूर्व वित्त मंत्री की नहीं थी। अगर आपको किंग पिन ढूंढना है, तो किंग पिन सरकार में आज मौजूद है। जो कस्टडी में है, वो किंग पिन नहीं है, किंग पिन वही है, जो ये मानहानि का, चरित्र हनन का निरंतर अभियान चला रहे हैं और ये जो तथ्य हैं, आईएनएक्स मीडिया के बारे में, जांच ऐजेंसियों ने इसको सामने आने नहीं दिया है।”
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