यूपी में योगी सरकार के 2 साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी सरकार की कई उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने अपने प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि हमारी सरकार में राज्य के अंदर एक भी दंगा नहीं हुआ। उन्होंने प्रदेश में पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर को अपनी उपलब्धि बताया। लेकिन इस दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ यह भूल गए कि जिस एनकाउंटर को लेकर पीठ थपथपा रहे हैं उस एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठ चुकी है। इतना ही योगी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसी घटनाएं हुई जिसको लेकर सीएम योगी की किरकिरी भी हुई। जानते हैं वो कौन-कौन से मामले हैं।
योगी सरकार में एनकाउंटर की ज्यादातर घटनाएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई हैं। कई एनकाउंटर को लेकर सवाल उठ चुके हैं। उनमें 5 अक्टूबर, 2018 को ग्रेटर नोएडा में सुमित गुर्जर का एनकाउंटर भी शामिल है। इस मामले में यूपी पुलिस पर आरोप लगे थे कि ये एनकाउंटर नहीं था बल्कि सुमित की हत्या की गई थी। सुमित के ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं दर्ज था और उनके परिवार वालों ने पुलिस पर आरोप लगाए थे किसी और सुमित गुर्जर के शक में पुलिस ने उसकी हत्या कर दी थी।
एक और मामले में योगी की यूपी पुलिस घिर चुकी है। नोएडा में एक दारोगा ने फर्जी एनकाउंटर दिखाते हुए 25 साल के एक युवक को गोली मार दी थी। ये युवक नोएडा में ही जिम चलाता था। मीडिया में इसकी चर्चा होने के बाद पता चला कि ये हमला व्यक्तिगत दुश्मनी में किया गया था।
10 अगस्त, 2017 को बागपत के बड़ौत इलाके के 40 साल के फल विक्रेता इकराम की मौत शामली में पुलिस की गोली लगने से हुई थी। पुलिस का दावा था कि लूट के सामान के साथ इकराम के भागने की उसे सूचना मिली थी और जब इकराम को रोकने की कोशिश की गई तो उसने पुलिस पर गोलियां चलाईं थी। जिसके बाद पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी और इकराम की मौत हो गई थी। इस एनकाउंटर पर भी सवाल उठे थे। इकराम के परिवार वालों का कहना था कि उसे मोटरसाइकिल चलानी ही नहीं आती थी और गोलियों के अलावा इकराम के शरीर पर गंभीर चोट के निशान भी मिले थे।
यूपी पुलिस की ओर जारी एनकाउंटर पर विपक्ष और मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिवारवालों से सवाल उठाया था। मामला उस समय और गरम हो गया, जब यूपी पुलिस ने अलीगढ़ में दो एनकाउंटर किए थे। जिनके लिए मीडिया को मौके पर बुलाकर शूटिंग करवाई गई थी। उनमें से एक एनकाउंटर में मारे गए नौशाद की मां ने इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था।
लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर विस्तार में यूपी पुलिस के कॉन्स्टेबल प्रशांत चौधरी ने एप्पल के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी को गोली मार दी। जिसके चलते उनकी मौत हो गई। इस मामले में मृतक का परिवार लगातार पुलिस पर सवाल उठाता रहा। जिसके बाद लखनऊ के गोमतीनगर थाने में आरोपी पुलिसकर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इस मामले को लेकर भी योगी सरकार की पुलिस की काफी किरकिरी हुई थी।
3 दिसंबर, 2018 को बुलंदशहर के गांव महाव में गोकशी की सूचना मिलने के बाद पहुंची पुलिस पर हमला कर दिया गया था। स्याना थाने के प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार सिंह कई पुलिसकर्मियो के साथ मौके पर पहुंचे थे। जहां पर गोकशी के शक में जमा भीड़ का नेतृत्व बजरंग दल का जिला संयोजक योगेश राज कर रहा था। योगेश राज और उसके साथ मौजूद लोगों ने गोकशी के विरोध में रास्ता को जाम कर रखा था। रास्ता खुलवाने और लोगों को समझाने के लिए इंस्पेक्टर सुबोध मौके पर पहुंचे तो उनपर जानलेवा हमला कर दिया गया। पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी। इस दौरान इंस्पेक्टर सुबोध की पिस्टल और मोबाइल लूट लिया गया। फिर उन्हें गोली मार दी गई। जिससे उनकी मौत हो गई।
2017 में अंबेडकर की प्रतिमा का अपमान किए जाने के बाद दलित और क्षत्रिय आपस में भिड़ गए थे। उस हिंसा में आशीष नामक युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी। पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था। इस हिंसा को लेकर यूपी पुलिस और सरकार को लेकर कई सवाल उठे थे।
26 जनवरी पर तिरंगा यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश का कासगंज जल उठा था। मामला साल 2018 का है। जब गणतंत्र दिवस के दिन झंडा यात्रा में गीत बजाने और नारेबाजी के बाद दो गुटों के बीच हिंसा भड़क गई थी। इस दौरान उपद्रवियों की गोली से एक युवक की मौत हो गई थी। इस मामले में सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस मामले में पुलिस पर एक वर्ग विशेष के लोगों को एक तरफा मदद करने और दूसरे के खिलाफ कार्रवाई करने का आरोप भी लगे थे।
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