मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने उत्तराधिकारी के लिए जस्टिस रंजन गोगोई का नाम केंद्र सरकार को भेज दिया है। ऐसे में अगर केंद्र सरकार जस्टिस गोगोई के नाम पर मुहर लगाती है तो वे देश के अलगे मुख्य न्यायाधीश के रूप में 3 अक्टूबर को शपथ ले सकते हैं। उनका कार्यकाल 17 नवंबर, 2019 तक रहेगा।
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असम से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ। उन्होंने 1978 में अपनी वकालत की शुरूआत की थी। जस्टिस गोगोई को 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाई कोर्ट का जज बनाया गया। इसके बाद 9 सितंबर 2010 को उनका ट्रांसफर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में हुआ। 12 फरवरी 2011 को वह पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। इसके बाद वह 23 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए।
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वहीं सुप्रीम कोर्ट में अगले 1 अक्टूबर तक अयोध्या विवाद मामला, साबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर रोक का मामला, व्यभिचार कानून में भेदभाव का मामला और एससी/एसटी के लिए प्रोन्नति में आरक्षण समेत कई महत्वपूर्ण मसलों पर फैसले सुनाए जाएंगे।
एक अन्य महत्वपूर्ण आदेश राजनेताओं के आपराधिक मामले में आ सकता है, जिसमें यह तय होगा कि आपराधिक मामलों में राजनेता को किस स्तर पर चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जाएगा। इस फैसले से आपराधिक रिकार्ड वाले राजनेताओं को दूर रखकर विधायिका को स्वच्छ बनाया जाएगा।
इन सभी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के फैसले का इंतजार है। प्रधान न्यायाधीश मिश्रा का सर्वोच्च न्यायालय में अंतिम कार्यदिवस एक अक्टूबर 2018 होगा, क्योंकि वह दो अक्टूबर 2018 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं और इस दिन महात्मा गांधी की जयंती होने के कारण अवकाश है।
इस बीच दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना की परंपरा को चुनौती देने वाली याचिका पर भी सुनवाई पूरी होगी। इसके साथ ही पारसी महिला से संबंधित मामले पर भी सुनवाई पूरी होगी, जिसमें यह तय होगा कि क्या गैर-पारसी से शादी करने पर पिता के अंतिम संस्कार समेत समुदाय के धार्मिक गतिविधियों में महिला को वंचित किया जाना चाहिए।
बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना करने की पंरपरा पर केंद्र सरकार ने कहा है कि यह शारीरिक पूर्णता भंग करने वाला कृत्य है, जोकि निजता और सम्मान के अधिकार का हिस्सा है।
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वहीं अयोध्या मामले में सवाल यह है कि 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी या इससे बड़ी पीठ। मुस्लिम वादियों की ओर से दलील दी गई है कि सुनवाई बड़ी पीठ द्वारा की जानी चाहिए।
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