देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कानून के इस्तेमाल पर अहम बातें कहीं। जिसे समझने और उस पर आज के दौर में गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह आश्वस्त करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि कानून दमन का जरिया न बने, बल्कि न्याय का साधन बना रहे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों को अपेक्षा रखना अच्छी बात है, लेकिन इनसके बीच हमें सीमाओं के साथ संस्थानों के रूप में अदालतों की क्षमता को भी समझने की जरूरत है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में कही।
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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि औपनिवेशिक काल में वही कानून जैसा कि आज कानून की किताबों में मौजूद है, दमन के एक साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। हम नागरिकों के रूप में यह कैसे आश्वस्त करें कि कानून न्याय का साधन बने और कानून उत्पीड़न का साधन न बने?
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक बेहतर न्यायाधीश को परिभाषित करते हुए कहा कि जब आपके पास अपने सिस्टम में अनसुनी आवाजों को सुनने की क्षमता है, सिस्टम में अनदेखे चेहरे को देखने की कुवत है और फिर देखें कि कानून और इंसाफ के बीच संतुलन कहां है, तो आप वास्तव में एक न्यायाधीश के रूप में अपना मिशन पूरा कर सकते हैं।
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उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक को पेश किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक न्यायाधीश द्वारा अदालत में कहे जाने वाले हर छोटे शब्द की रीयल-टाइम रिपोर्टिंग होती है और एक न्यायाधीश के रूप में आपका लगातार मूल्यांकन किया जाता है।
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उन्होंने कहा कि हम इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में हैं। मेरा मानना है कि हमें फैशन, री-इंजीनियरिंग, नए समाधान खोजने, फिर से प्रशिक्षित करने, फिर से तैयार करने, यह समझने की कोशिश में अपनी भूमिका पर दोबारा विचार करने की जरूरत है कि हम जिस उम्र में रह रहे हैं, उसकी चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।
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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मुझे लगता है कि कानून को संभालने में फैसला लोग लेने वाले सभी लोगों को शामिल होना चाहिए, न कि सिर्फ न्यायाधीश को। सीजेआई ने कहा कि लंबे समय तक जो चीज न्यायिक संस्थानों को बनाए रखती है, वह करुणा की भावना, सहानुभूति की भावना और नागरिकों के रोने का जवाब देने की क्षमता है।
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