असम में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के खिलाफ एक ओर लोगों को विरोध प्रदर्शन जारी है तो दूसरी ओर बीजेपी की कभी सहयोगी पार्टी रही शिवसेना ने मोदी सरकार पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है। सबसे पहले बात करते है नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ लोगों के प्रदर्शन की। त्रिपुरा के अगरतला में सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल के विरोध में लोगों का प्रदर्शन जारी है।
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वहीं नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में कई संगठनों ने बंद बुलाया है। इसका व्यापक असर गुवाहाटी में दिखने को मिल रहा है, जहां आज दुकानें नहीं खुली हैं।
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दूसरी ओर यूपी के शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर नागरिकता संशोधन विधेयक में शिया समुदाय को भी शामिल करने की अपील की है। वसीम रिजवी ने अपने पत्र में कहा है कि शिया समाज पर तमाम देशों में जुल्म हो रहा है। समाज को ज्यादती से बचाने के लिए केंद्र सरकार ये कदम उठाए। वसीम रिजवी ने कहा, “शिया समाज का शोषण कई सौ सालों से लगातार मुस्लिम बहुसंख्यक सुन्नी समाज द्वारा पूरी दुनिया में किया जाता रहा है और आज भी किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि नागरिकता संशोधन विधेयक में मुसलमानों के शिया वर्ग को भी शामिल करने की कृपा करें।”
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वहीं नागरिकता संशोधन विधेयक पर एआईयूडीएफ नेता बदरुद्दीन अजमल ने कहा, “यह बिल संविधान और हिंदू मुस्लिम एकता के खिलाफ है। हम इसे रिजेक्ट करते हैं, विपक्ष हमारे साथ है। हम इस बिल को पास नहीं होने देंगे।”
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वहीं शिवसेना ने सामान के माध्यम से मोदी सरकार पर सवाल उठाए कि क्या हिंदू अवैध शरणार्थियों की चुनिंदा स्वीकृति देश में धार्मिक युद्ध छेड़ने का काम नहीं करेगी और उसने केंद्र पर विधेयक को लेकर हिंदुओं और मुस्लिमों का अदृश्य विभाजन करने का आरोप लगाया। शिवसेना ने कहा कि विधेयक की आड़ में बीजेपी वोट बैंक की राजनीति कर रही है, जो देश के हित में नहीं है।
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पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में शिवसेना ने विधेयक के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि भारत में अभी दिक्कतों की कमी नहीं है लेकिन फिर भी हम नयी परेशानियों को बुलावा दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि केंद्र ने विधेयक को लेकर हिंदुओं और मुस्लिमों का अदृश्य विभाजन किया है। साथ ही शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ पड़ोसी देशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की अपील की।
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नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसम्बर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इसमें मुस्लिम वर्ग का जिक्र नहीं है
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