देश की राजधानी दिल्ली में 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए दिल्ली पुलिस, आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय जिम्मेदार है। यह निष्कर्ष है दंगों की जांच करने वाली कमेटी का। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर की अगुवाई में बनी कमेटी ने अपनी 170 पन्नों की रिपोर्ट में दिल्ली दंगों के लिए सरकारी मशीनरी के संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में नाकाम होने की बात कही है।
कमेटी ने रिपोर्ट में कुछ मुख्य बिंदुओं को सामने रखा है:
एक सोची-समझी नीति के तहत मुस्लिम विरोधी नैरेटिव को फैलाया गया जिससे हिंसा भड़क उठी। इससे संकेत मिलता है कि सार्वजनिक विमर्श में नफरत भरे संदेशों का हिंसा से सीधा संबंध है। ऐसा लगता है कि नफरत से भरे संदेशों आदि जैसी सामग्री के प्रसार को रोकने या इन्हें फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए संस्थागत इच्छाशक्ति की भारी कमी है।
नफरत भरे नैरेटिव और संदेशों के प्रचार में मीडिया ने भी अहम भूमिका निभाई। हमारे समय में सोशल मीडिया पर खतरनाक सामग्री को नियंत्रित या नियमित करने, साथ ही स्वतंत्र विचारों को जगह देना एक चुनौती है।
उत्तर दिल्ली (नॉर्थ दिल्ली) में सीएए के खिलाफ धरने प्रदर्शन को खत्म कराए जाने को एक अलग घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता। प्रदर्शनकारों को खामोश करने के लिए हिंसा का इस्तेमला और जांच के दौरान यूएपीए जैसे कानूनों का इस्तेमाल बेहद खतरनाक है। ऐसी स्थितियां देश के लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौतियां है।
दिल्ली दंगों पर रिपोर्ट के इन निष्कर्षों से साफ होता है कि किस तरह संवैधानिक संस्थाओं की नाकामी, हिंसा भड़काने में मीडिया की भूमिका, सीएए विरोधी प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा यूएपीए जैसे कानूनों के इस्तेमाल ने चिंताजनक स्थितियां बना दी हैं।
कमेटी की रिपोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा कार्यवाही करने में देरी और दिल्ली की आप सरकार द्वारा हालात को काबू करने के लिए किए गए प्रयासों की नाकामी ने एक न्याय के लिए अनिश्चितता पैदा कर दी। रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस की भी इस बात के लिए आलोचना की गई है कि उसने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा हेट स्पीच देने के मामलों का समय रहते संज्ञान लेकर कार्रवाई नहीं की।
रिपोर्ट में फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों को भड़काने में बीजेपी नेताओं द्वारा हेट स्पीच को बहुत हद तक जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, “दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बलों पर पूर्ण नियंत्रण के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए।” साथ ही दिल्ली सरकार को भी इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया गया कि उसने दोनों समुदायों के बीच सुलह कराने की कोई प्रभावी पहल या कोशिश नहीं की। इतना ही नहीं कमेटी ने कहा है कि दिल्ली सरकार ने बाद की स्थितियों में भी समय रहते लोगों को राहत और मुआवजा देने में कोताही बरती है।
दिल्ली पुलिस के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही 24 और 25 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने लगातार यह आश्वासन दिया था कि हालात काबू में हैं, लेकिन जिस पैमाने पर हिंसा हुई उससे साफ है कि इन दावों में कोई सच्चाई नहीं थी।
कमेटी ने इस मामले में एक आयोग से जांच कराने की मांग उठाते हुए कहा है कि ऐसी स्थितियों को भविष्य में न दोहराया जाए इसके लिए पर्याप्त प्रयास करने होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है, “23 फरवरी से 24 फरवरी के बीच का अहम समय वह था जब हिंसा बेकाबू थी और इस दौरान सोशल मीडिया आदि पर दो दिनों तक लगातार बीजेपी और अन्य हिंदू संगठनों के नेता मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने वाले संदेश पोस्ट कर रहे थे।”
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