महज कुछ दिन बाद ही यूपी, पंजाब समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें देवभूमि उत्तराखंड भी शामिल है। उत्तराखंड में जैसे जैसे चुनाव की तारीख पास आ रही है, वैसे वैसे ही ये सियासी लड़ाई रोमांचक होती जा रही है। राज्य में बीजेपी कांग्रेस की सियासी लड़ाई के बीच इस बार आम आमदी पार्टी ने भी एंट्री की है। हालांकि कितना असर आप का उत्तराखंड में रहेगा ये एक अलग विषय है।
फिलहाल देवभूमि के लोग दो ही पार्टी के बीच असल लड़ाई देख रहे हैं। हालांकि कांग्रेस इस समय बीजेपी पर पूरी तरह से भारी पड़ती दिख रही है। फिर चाहें तमाम न्यूज चैनल के ओपिनियन पोल हों या जनता की राय। ज्यादातर लोग राज्य में बदलाव की ही बात कह रहे हैं। इन सबके बीच दोनों पार्टियां ही सरकार बनाने का दावा कर रही है, लेकिन बीजेपी में साफ दिख रहा है कि इस समय वो कई तरह के 'दर्द' से गुजर रही है, जिससे उसका मनोबल डामाडोल होने लगा है। फिर चाहे हाल ही में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के पार्टी से जाने की बात हो या फिर आपसी गुटबाजी। कुल मिलाकर बीजेपी अभी ऐसी राह पर चल रही है जहां कांटे ही कांटें हैं।
इस राह में एक नया कांटा तीर्थ पुरोहितों द्वारा लगाया गया है, दरअसल, कुछ महीनों पहले सरकार और तीर्थ पुरोहितों के बीच जो गहमागहमी हुई थी उसे अभी तक पुरोहितों ने भुलाया नहीं है। यही वजह है कि अब तीर्थ पुरोहित भी चाहते हैं कि वो भी राजनीति में कूदें और जनता की आवाज बनकर खुद को और मजबूत करें। केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों ने बीजेपी से चारधामों में दो सीटों पर पुरोहितों को टिकट देने की मांग की है। दरअसल, उन्होंने सााफ लहजे में कहा है कि सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को भंग कर बद्री-केदार मंदिर समिति में अपना कार्यकर्ता अध्यक्ष बना दिया है। ऐसे में तीर्थ पुरोहितों को भी विधानसभा का टिकट मिलना चाहिए। तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि वर्षों से तीर्थ पुरोहित देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करने के साथ ही बीजेपी के कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। ऐसे में उन्हें टिकट दिया जाना चाहिए।
अब इसे आदेश समझे या मांग ये खुद धामी सरकार नहीं समझ पा रही है। क्योंकि तीर्थ पुरोहितों ने बिना कहे ही एक तरह से ये चेतावनी भी दे डाली है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो तीर्थ पुरोहित बीजेपी का घोर विरोध करने के लिए मजबूर हो जायेंगे। यानी टिकट नहीं मिला तो वो बीजेपी के खिलाफ प्रचार करेंगे और बीजेपी को उत्तराखंड की गद्दी से हटाने में पूरी ताकत झोंक देंगे।
गौरतलब है कि हाल ही में देवस्थानम बोर्ड मामले में सरकार और तीर्थ पुरोहितों का कई बार आमना सामना हो चुका है। दरअसल उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड बनने के बाद से ही तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। कई बार तीर्थ पुरोहित देवस्थानम बोर्ड भंग करने की मांग को लेकर धरने पर भी बैठे। कई बार पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को उलटे पैर पहाड़ों से भी लौटाया, लेकिन फिर भी सरकार इनकी मांगों को हलके में लेती रही, आखिर में सरकार को इनकी ताकत का अंदाजा तब समझ में आया जब पीएम मोदी के केदारनाथ दौरे के दौरान तीर्थ पुरोहितों ने विरोध प्रदर्शन किया और चुनाव में सबक सिखाने की बात कहीं। बता दें, मार्च 2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की एक बड़ी वजह भी देवस्थानम बोर्ड ही थी। तब कहीं जाकर धामी सरकार ने डैमेज कंट्रोल करते हुए इनकी मांगों को मानकर खुदकी सरकार द्वारा गठित देवस्थानम बोर्ड को भंग किया।
देवस्थानम बोर्ड बनने के बाद चारों धाम और उत्तराखंड के मंदिरों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ने लगा था। बोर्ड बनने के बाद कई ऐसे बदलाव हुए जिससे आर्थिक नियंत्रण उत्तराखंड सरकार के पास चला गया। जैसे- मंदिर होने वाली आय का एक हिस्सा मंदिर की व्यवस्था संभालने वाले लोगों तक पहुंचता था, वो उन तक पहुंचना बंद हो गया। इसके अलावा चार धाम और मंदिरों में आने वाला चढ़ावा सरकार के नियंत्रण में चला गया। बोर्ड इन पैसों का इस्तेमाल राज्य में पार्क, स्कूल और भवन जैसे निर्माण कार्य में करने लगा। यही साधु-संतों और पुराहितों की नाराजगी की वजह है।
इस बोर्ड का गठन करने का फैसला बीजेपी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का था, जिसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पलट दिया है। बोर्ड बनने के बाद से ही राज्य के संत और पुजारी इसका विरोध कर रहे थे। हालांकि उत्तराखंड सरकार ने यह तर्क दिया इस बोर्ड की मदद से चारधाम करने वाले सैलानियों को बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी और पुरोहितों का हक बरकरार रहेंगे इनमें कोई बदलाव नहीं होगा, पर ऐसा हुआ नहीं।
फिलहाल उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। भाजपा सरकार चुनाव के मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस्तीफा लेकर भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन एक बार फिर वही तीर्थ पुरोहित सरकार के गले की फांस बनती दिख रही है।
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