केंद्र सरकार ने केरल के भूस्खलन प्रभावित वायनाड के 13 गांवों समेत छह राज्यों में फैले पश्चिमी घाट के 56,800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) घोषित करने के लिए पांचवीं मसौदा अधिसूचना जारी की है तथा 60 दिन के भीतर सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की हैं। यह अधिसूचना 31 जुलाई को जारी की गई थी।
केरल और अन्य जगहों के वैज्ञानिक इस आपदा के लिए वन क्षेत्र में कमी, पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में खनन और जलवायु परिवर्तन के घातक मिश्रण को जिम्मेदार मानते हैं।
मसौदा अधिसूचना में केरल के 9,993.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित करने का प्रस्ताव है, जिसमें भूस्खलन प्रभावित जिले की दो तालुकाओं के 13 गांव शामिल हैं। ये गांव हैं-मनंतावडी तालुका में पेरिया, थिरुनेल्ली, थोंडरनाड, थ्रिसिलरी, किदंगनाड और नूलपुझा, और व्यथिरी तालुका में अचूरनम, चुंडेल, कोट्टापडी, कुन्नाथिदवका, पोझुथाना, थारियोड और वेल्लारीमाला।
30 जुलाई को हुए भूस्खलन ने व्यथिरी तालुका के मुंडक्कई, चूरलमाला और अट्टामाला गांवों को प्रभावित किया, लेकिन ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में इन गांवों का जिक्र नहीं है।
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अधिसूचना में कुल मिलाकर 56,825.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित करने का प्रस्ताव है, जिसमें गुजरात में 449 वर्ग किमी, महाराष्ट्र में 17,340 वर्ग किमी, गोवा में 1,461 वर्ग किमी, कर्नाटक में 20,668 वर्ग किमी, तमिलनाडु में 6,914 वर्ग किमी और केरल में 9,993.7 वर्ग किमी क्षेत्र शामिल है।
इस संबंध में एक अधिकारी ने बताया कि नवीनतम मसौदा बहुत अधिक विस्तृत है और ‘कुल क्षेत्रफल के संदर्भ में कोई बड़ा बदलाव नहीं है’। उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि इसे अंततः अधिसूचित कर दिया जाएगा।’’
पर्यावरण मंत्रालय ने 10 मार्च 2014 से अब तक छह मसौदा अधिसूचनाएं जारी की हैं, जिनमें 31 जुलाई को जारी की गई अधिसूचना भी शामिल है, लेकिन राज्यों की आपत्तियों के कारण अंतिम अधिसूचना लंबित है।
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ताज़ा मसौदा अधिसूचना के अनुसार, अप्रैल 2022 में समाधान खोजने के लिए गठित एक विशेषज्ञ समिति ने जुलाई 2022 से नौ बैठकें की हैं, ‘‘जिसमें राज्यों से विभिन्न आपत्तियां, टिप्पणियां और सुझाव प्राप्त हुए’’।
मसौदा अधिसूचना में रेत खनन समेत सभी तरह की खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया है।
इसमें कहा गया है कि मौजूदा खदानों को ‘‘अंतिम अधिसूचना जारी होने की तारीख से पांच वर्षों के भीतर या मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर, जो भी पहले हो’’ चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया जाएगा।’’
इसमें नयी ताप विद्युत परियोजनाओं पर भी रोक लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि मौजूदा परियोजनाएं चालू रह सकती हैं, लेकिन विस्तार की अनुमति नहीं होगी।
मौजूदा इमारतों की मरम्मत को छोड़कर बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं और ‘टाउनशिप’ पर भी रोक लगाने का प्रस्ताव है।
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अधिसूचना में कहा गया है, ‘‘20,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक के निर्मित क्षेत्र के साथ भवन और निर्माण की सभी नयी और विस्तारित परियोजनाएं और 50 हेक्टेयर और उससे अधिक क्षेत्र या 1,50,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक के निर्मित क्षेत्र के साथ सभी नयी और विस्तारित टाउनशिप और क्षेत्र विकास परियोजनाएं प्रतिबंधित होंगी।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में मौजूदा आवासीय मकानों की मरम्मत, विस्तार या नवीनीकरण पर मौजूदा कानूनों और विनियमों के अनुसार कोई प्रतिबंध नहीं होगा।’’
वर्ष 2010 में, केंद्र ने पारिस्थितिकी विज्ञानी माधव गाडगिल के नेतृत्व में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, ताकि पश्चिमी घाट पर जनसंख्या दबाव, जलवायु परिवर्तन और विकास गतिविधियों के प्रभाव का अध्ययन किया जा सके।
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समिति ने 2011 में सिफारिश की थी कि पूरी पर्वत श्रृंखला को ईएसए घोषित किया जाए और उनकी पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के आधार पर तीन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसजेड) में विभाजित किया जाए।
वर्ष 2013 में, केंद्र ने पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक संरक्षण और सतत विकास के लिए उपायों का अध्ययन करने और सिफारिश करने के लिए रॉकेट वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय कार्य समूह का गठन किया था। इस समूह ने पश्चिमी घाट के 37 प्रतिशत हिस्से, जो 59,940 वर्ग किलोमीटर में फैला है, को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील बताया था।
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