कई महीने पहले मैंने एक ट्वीट में कहा था कि रिजर्व बैंक बाजार में पर्याप्त नकदी नहीं दे रहा। मैंने यह भी कहा था कि हम जल्द ही नकदी संकट से दो-चार होने वाले हैं।
मेरा अनुमान पूरी तरह आरबीआई के आंकड़ों पर ही आधारित था, इसलिए यह हो ही नहीं सकता कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय को इसका अंदाज़ा न हो। और अंतत: हुआ यह कि इस हफ्ते मचे हाहाकार और आलोचना के बीच ना-नुकुर करते हुए भी सरकार ने माना कि नकदी का संकट है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने तो यहां तक कहा कि वे सिस्टम में अतिरिक्त 75,000 करोड़ रूपए डालने की तैयारी कर रहे हैं।
यहां सवाल यही खड़ा होता है कि जानते-बूझते वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ने नकदी का संकट क्यों पैदा होने दिया? ऐसा तो है नहीं कि ये सब रातों-रात हो गया। और सवाल यह भी है कि आखिर अब क्यों उन्होंने मान लिया कि हां संकट तो है और नई करेंसी की छपाई शुरु कर दी, जबकि पहले तो कहा था कि नकदी का कोई संकट ही नहीं है?
ऐसे मामलों में साजिश सूंघने वाले इमरजेंसी आधार पर करेंसी नोट छापने को कर्नाटक चुनाव से जोड़कर देख सकते हैं, क्योंकि नई करेंसी ऐन चुनाव की मौके पर उपलब्ध होगी।
और वह लोग, जो थोड़ा ज्यादा नाक घुसाते हैं किसी भी मामले में, वे कहेंगे कि रिजर्व बैंक नाकारा हो गया है, नकदी का संकट आरबीआई की नाकामी है, आरबीआई प्रोफेशनल फैसले नहीं ले रहा। लेकिन इन लोगों की राय उनके खुद के विशेषज्ञों से मिली जानकारी पर आधारित होगी। कुल मिलाकर है यह कि आरबीआई वित्त मंत्रालय के अफसरों के इशारों पर नाच रहा है।
इस संकट की एक और व्याख्या यह हो सकती है कि सरकार जानबूझकर इससे अनजान बनी रही, क्योंकि अगर वह इसे मानती तो उसे मानना पड़ता कि नोटबंदी एक ‘ऐतिहासिक’ भूल थी।
लेकिन इन सारी व्याख्याओं से यह पता नहीं चलता कि आखिर संकट हुआ क्यों?
यहां यह ध्यान रखना होगा कि रिजर्व बैंक ने सभी करेंसी चेस्ट्स (वह जगहें जहां रिजर्व बैंक अपने पैसे रखता है) के लिए यह जरूरी कर दिया है कि चेस्ट्स से हर रोज जाने वाले पैसे की जानकारी वे एक विशेष रूप से तैयार किए गए इंटीग्रेटेड कम्प्यूटराईज़्ड करेंसी ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम (आईककॉम्स) नाम के बेहद संवेदनशील सपोर्ट सिस्टम के जरिए आरबीआई को देंगे। इसके अलावा नोटबंदी से पहले तक रिजर्व बैंक देश भर फैले अपने 4000 से ज्यादा करेंसी चेस्ट्स के जरिए पैसे की आवाजाही कर ही रहा था। लेकिन, नोटबंदी के बाद से रिजर्व बैंक का करेंसी मैनेजमेंट यानी नकदी प्रबंधन गड़बड़ाया हुआ है।
क्या कहते हैं आंकड़ें?
मीडिया में यह खबरे प्रमुखता से उछाली गईं कि असामान्य तौर पर एटीएम से पैसा निकाला गया। यह गलत है, क्योंकि फरवरी 2018 तक के रिजर्व बैंक के आंकड़े ऐसा कुछ नहीं बताते। टीवी चैनलों पर बैठे ‘सरकारी’ विशेषज्ञ तो यह कहते नहीं थक रहे सिर्फ तीन सप्ताह में करीब 45,000 करोड़ रुपए निकाले गए जिसकी वजह से नकदी का संकट पैदा हुआ, लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़ों में ऐसा कुछ है ही नहीं। आंकड़ों की ही बात करें तो देश में हर महीने 2.4 लाख करोड़ से 2.5 लाख करोड़ के बीच नकदी लोग सिर्फ एटीएम से निकालते हैं। ऐसे में अगर तीन सप्ताह में 45,000 करोड़ रुपए निकल गए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा?
लोगों ने दिसंबर 2017 में डेबिट कार्ड का इस्तेमाल कर एटीएम से 2.64 लाख करोड़ रुपए निकाले। नोटबंदी से पहले वाले महीने यानी अक्टूबर 2016 में लोगों ने एटीएम से 2.55 लाख करोड़ निकाले थे। यानी हमारी व्यवस्था नोटबंदी से पहले वाले दौर की तरह ही नकदी पर निर्भर हो गई है।
अब इस बात पर भी आइए जिसमें कहा जा रहा है कि बैंक जमा में कमी आई है। असल में पिछले साल 31 मार्च से 14 अप्रैल के बीच बैंक डिपाजिट में 2.19 लाख करोड़ की कमी हुई थी। सितंबर-अक्टूबर में कुल डिपाजिट में 91,750 करोड़ की कमी देखने को मिली। ऐसे में अगर फरवरी के पहले पखवाड़े के दौरान बैंक डिपाजिट में 53,000 करोड़ की कमी आई तो क्या खास बात हो गई। ऐसे में एटीएम में पैसा क्यों खत्म हो गया?
Published: 20 Apr 2018, 3:09 PM IST
एक और कयास लगाया जा रहा है कि खास नीति के तहत नकद लेनदेन को उत्साहित न किया जाए ताकि डिजिटल लेनदेन को प्रोत्साहन मिले। लेकिन, 2016-17 में 53 फीसदी के चरम पर पहुंचने के बाद डिजिटल लेनदेन 2017-18 में गिरकर 36 फीसदी पर आ गया है। वैसे पिछले पांच साल में डिजिटल लेनदेन की ग्रोथ 44 फीसदी रही है। और हां, सर्कुलेशन में और ज्यादा नकदी नजर आएगी, यहां तक कि उससे भी ज्यादा जितनी नकदी नोटबंदी से पहले थी।
देश की जीडीपी और नकदी के प्रवाह का औसत तकरीबन 11 फीसदी रहा है और विशेषज्ञों का मानना है कि 11-12 फीसदी के आसपास का औसत ही अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है। ऐसे में अगर इसी औसत को मानें तो करीब 20.03 लाख करोड़ रुपए की नकदी सर्कुलेशन में चाहिए होगी। लेकिन आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि 6 अप्रैल, 2018 को देश में 18.425 लाख करोड़ नकदी सर्कुलेशन में थी।
दूसरे शब्दों में कहें तो देश में अभी भी करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए की नकदी की कमी है और इतना पैसा सिस्टम में लाकर ही नकदी के संकट से निपटा जा सकता है। लेकिन वित्त मंत्रालय और आरबीआई के अधिकारियों की समझ में सिर्फ 75,000 करोड़ रुपए की ही जरूरत है। आखिर क्यों? इसका जवाब सरकार के पास नहीं है।
Published: 20 Apr 2018, 3:09 PM IST
(लेखक एक ब्लॉगर हैं और आंकड़ों की पड़ताल करते हैं। यह लेख उनके द्वारा हाल के दिनों में किए गए ट्वीट पर आधारित है)
Published: 20 Apr 2018, 3:09 PM IST
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Published: 20 Apr 2018, 3:09 PM IST