अभी पिछले दिनों केरल हाईकोर्ट ने जन प्रतिनिधि कानून की धारा 123 के उल्लंघन के मामले में केरल के एक उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर दिया। इस उम्मीदवार ने चुनाव प्रचार के दौरान राजनीति में धर्म का तड़का लगाया था।
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि, “कोई भी उम्मीदवार मतदाताओं को यह नहीं बता सकता कि उसके राजनीतिक प्रतिद्वंदी धर्म के आधार पर लोगों का प्रतिनिधित्व करने लायक नहीं है....।”
गौरतलब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ इसी तरह राजनीति में धर्म का तड़का लगाया था। उन्होंने महाराष्ट्र के वर्धा में पहली अप्रैल को बीजेपी के प्रचार के दौरान अपने भाषण में हिंदू समेत कई इसी तरह के शब्दों का प्रयोग किया था। इस भाषण को छह दिन हो गए हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक इस मुद्दे पर पीएम को चेतावनी तक जारी नहीं की, जैसा कि आयोग ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ या फिर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के मामले में किया।
वर्धा में पीएम मोदी ने जो भाषण दिया था उसमें कहा था:
प्रधानमंत्री ने इसके बाद इसी तरह का संदेश ट्वीट में भी दिया। पीएम को इस बयान की चौतरफा निंदा भी हुई क्योंकि प्रधानमंत्री तो पूरे देश का होता है, और पीएम के मुंह से ऐसा बयान आना निंदनीय है, लेकिन विडंबना है कि देश के पीएम वक्त वक्त पर ऐसे भाषण देते रहे हैं कि “उन लोगों के लिए देश में कोई जगह नहीं होनी चाहिए जो राजनीतिक स्वार्थ के लिए धर्म का दुरुपयोग करते हैं और अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं।”
जन प्रतिनिधि कानून में प्रावधा है कि धार्मिक आधार पर अगर समाज को या व्यक्तियों को बांटने की कोशिश की जाती है तो इसे भ्रष्ट आचरण माना जाएगा और उम्मीदवार का नामांकन या उम्मीदवारी खारिज कर दी जाएगी।
गौरतलब है कि श्रीमती इंदिरा गांधी की सदस्यता इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दी थी क्योंकि उनके चुनाव एजेंट ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा तो दे दिया था, लेकिन कार्यमुक्त होने से पहले ही उनके चुनाव एजेंट के रूप में काम करना शुरु कर दिया था।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का अपराध तो कहीं बड़ा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि अगर चुनाव आयोग इस मामले में कोई संज्ञान लेकर कार्रवाई नहीं करता है तो पीएम मोदी के चुनाव जीतने के बाद भी उनकी लोकसभा सदस्यता को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में दिए एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था, “धर्म, रंग, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर कोई अपील करना जन प्रतिनिधि कानून 1951 के तहत अपराध है और अगर किसी चुने हुए प्रतिनिधि के खिलाफ इस आधार पर शिकायत होती है तो उसकी सदस्यता जा सकती है....”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी अपील को भ्रष्ट आचरण माना जाएगा भले ही यह उम्मीदवार के अपने धर्म या उसके चुनाव एजेंट के धर्म या फिर अपने विरोधी या वोटरों को धर्म के बारे में हो।
लेकिन इस मामले में पीएम मोदी के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत को चुनाव आयोग ने अभी रिकॉर्ड तक में नहीं लिया है। शनिवार दोपहर तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर इस शिकायत को अपलोड नहीं किया गया था।
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गौरतलब है कि शुक्रवार को कांग्रेस ने चुनाव आयोग से इस बारे में शिकायत करते हुए कहा था कि, “…यह उम्मीदवार ऐसा नहीं है कि उसे मात्र चेतावनी दी जाएगी और वह चुप हो जाएगा...”
कांग्रेस ने अपील की थी कि ऐसे उम्मीदवार को रोकने का एक ही तरीका है कि ऐसे किसी भी उम्मीदवार के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी जाए जो देश के नागरिकों को बांटने की कोशिश करे।
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