भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक- कैग या सीएजी की एक ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 और 2020-21 के बीच देश भर में हुई 217 रेल दुर्घटनाओं में से तीन चौथाई यानी हर चार में से लगभग तीन का कारण रेल का पटरी से उतरना था।
परफार्मेंस ऑडिट एंड डिरेलमेंट इन इंडियन रेलवे (भारतीय रेल में पटरी से उतरने की घटनाओं का क्षमता परीक्षण) शीर्षक से इस रिपोर्ट को दिसंबर 2022 में संसद में पेश किया गया था। रिपोर्ट से सामने आया था कि ट्रेनों के पटरी से उतरने के मुख्य कारणों में से एक पटरियों का सही रखरखाव न होना है। साथ ही कहा गया कि पटरियों को नवीनीकरण यानी उन्हें बदलने के लिए उपलब्ध कराए जाने पर फंड में हाल के वर्षों में कमी की गई है और जो पैसा दिया भी गया है उसे पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है।
कैग रिपोर्ट में 217 रेल दुर्घटनाओं की जांच का जिक्र है। इसमें से 163 दुर्घटनाओं का कारण रेल का पटरियों से उतरना है, यानी करीब 75 फीसदी दुर्घटनाएं इसी कारण से हुई है। इसके अलावा अन्य दुर्घटनाओं में 20 हादसे आग लगने, 13 हादसे मानवरहित लेवल क्रॉसिंग पर, 11 दुर्घटनाएं टक्कर से और 2 अन्य कारणों से हुईं।
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रिपोर्ट बताती है कि रेलवे बोर्ड ने दुर्घटनाओं को दो श्रेणियों में बांटा है। परिणामगत रेल दुर्घटनाएं और अन्य रेल दुर्घटनाएं। परिणागत रेल दुर्घटनाओं में ऐसी दुर्घटनाएं शामिल हैं जिनमें या तो एक या अधिक व्यक्तियों की जान गई, लोगों को चोट लगी, रेलवे संपत्ति का नुकसान हुआ और रेलवे ट्रैफिक पर असर पड़ा।
बाकी दुर्घटनाओं को परिणागत दुर्घटनाओं की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अन्य दुर्घटनाओं की श्रेणी में आने वाले हादसों की संख्या कहीं अधिक है। इसके तहत 1800 दुर्घटनाएं हुई। यानी 2017-18 से 2020-21 के बीच कुल 1,392 दुर्घटनाएं दर्ज हुईं। रिपोर्ट में बताया गया कि अधिकतम दुर्घटनाएं पटरी से उतरने की श्रेणी में हुई हैं, ऐसे में ऑडिट का मुख्य फोकस इसी बिंदु पर रहा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 1392 दुर्घटनाओं में से रेलवे द्वारा की गई 1129 घटनाओं की जांच में बताया गया है कि इन दुर्घटनाओं में करीब 33.67 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
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ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि पटरी से उतरने की घटनाओं का मुख्य कारण पटरियों का रखरखाव न होना है। साथ ही कई मामलों में पटरियों को तय मानकों से इतर बदला गया है। इसके अलावा ओवर स्पीडिंग के कारण भी दुर्घटनाएं हुई हैं।
कैग ने राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के प्रदर्शन की भी जांच क है। इस कोष को 2017-18 में स्थापित किया गया था और इसमें शुरुआती पांच साल के लिए एक लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। यानी इसमें हर साल 20,000 करोड़ रुपए रखे गए थे। इन 20,000 करोड़ में से 15,000 करोड़ रुपए बजटीय प्रावधानों के तहत और 5,000 करोड़ रुपए रेलवे के आंतरिक संसाधनों से जुटाए जाने थे। कैग रिपोर्ट बताती है कि बजटीय प्रावधान के 15,000 करोड़ रुपए तो इस कोष में आए, लेकिन इन चार साल के दौरान हर साल दिए जाने वाला रेलवे का हिस्सा नहीं आया।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे द्वारा अपने आंतरिक संसाधनों से 15,775 करोड़ रुपए न दिए दिए का असर रेलवे की संरक्षा यानी सुरक्षा पर पड़ा।
इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रेलवे पटरियों के नवीनीकरण या नई पटरियां बिछाए जाने के लिए दिए जाने वाले फंड में 2018-19 के 9,607.65 करोड़ के मुकाबले 2019-20 में कमी आई और यह कम होकर 7,417 करोड़ रुपए रहा। रिपोर्ट बताती है कि इसी दौरान रेलवे पटरियों के लिए दिए गए पैसे का पूरी तरह इस्तेमाल भी नहीं हुआ।
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