एक बार फिर हरियाणा की मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरकार के वित्तीय कु-प्रबंधन और अक्षमताओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं, जिसकी वजह से सरकार को एक हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। चिकित्सा विभाग से लेकर खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले, खेल और युवा कार्यक्रम, नगर और ग्राम आयोजना, राज्य औद्योगिक और मूलभूत संरचना विकास और हरियाणा कृषि उद्योग निगम तक हर विभाग में हुई वित्तीय कु-प्रबंधन एक लंबी फेहरिस्त है। उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम में तो और गंभीर अनियमितताएं उजागर हुई हैं।
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भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की वर्ष 2021 की विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में राज्य सरकार के वित्तीय अनुशासन पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। राज्य सरकार के विद्युत क्षेत्र के प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम की 'म्हारा गांव जगमग गांव' योजना के कार्यान्वयन के सभी चरणों में अक्षमताओं के कारण योजना का कार्यान्वयन बेहद धीमा रहा। इसके आरंभ ( जुलाई 2015) के पांच साल से अधिक बीत जाने के बाद भी 972 ग्रामीण घरेलू आपूर्ति फीडरों में से 295 अभी तक (जनवरी 2021) पूर्ण नहीं हुए थे। कार्यों के पूरा न होने और विलंब के कारण कंपनी को 786.54 करोड़ का संभावित राजस्व छोड़ना पड़ा। यह प्रसारण और वितरण हानियों के निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करके प्राप्त किया जा सकता था।
इसके साथ ही हरियाणा विद्युत क्रय केंद्र के गलत मेरिट आदेश तैयार करने और निजी उत्पादकों से महंगी बिजली खरीदने के कारण 209.33 करोड़ का अतिरिक्त व्यय हुआ, जिससे राज्य के उपभोक्ताओं पर अधिक भार पड़ा। हरियाणा विद्युत क्रय केंद्र अक्षय उर्जा खरीद दायित्व लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका। 18.64 और 90.55 प्रतिशत के मध्य कमी रही। इससे वहनीय, टिकाउ और आधुनिक उर्जा सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका है। बिजली की खरीद के प्रति भुगतानों के संबंध में आंतरिक नियंत्रण भी त्रुटिपूर्ण थे।
हरियाणा कृषि उद्योग निगम लिमिटेड में मिल मालिकों के पास रखे धान के स्टॉक के नियमित भौतिक सत्यापन के लिए राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया। इसके परिणामस्वरूप मिलर द्वारा धान की हेराफेरी की गई। बाद में कंपनी ने चेक का नकदीकरण न करके मिलर का पक्ष लिया और अपनी बकाया राशि की वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई करने में देरी की। इसके परिणामस्वरूप 6.64 करोड़ की हानि हुई। कैग की यह टिप्पणी प्रदेश में सुर्खियां बटोरने वाले धान खरीद घोटाले पर शक को और गहरा करती है, जिसकी जांच अभी तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है। यही नहीं गेहूं स्टॉक के रखरखाव की स्थिति ठीक न होने के कारण हरियाणा राज्य भंडारण निगम को 1.29 करोड़ का नुकसान हुआ।
खरीफ सीजन के दिशा-निर्देशों और शर्तों का पालन न करने और चूककर्ता मिलर से शेष राशि की वसूली के लिए समय पर प्रयास न करने से 6.75 करोड़ का नुकसान हुआ। हरियाणा चिकित्सा सेवा निगम में खराब वित्तीय प्रबंधन के कारण अपनी अधिशेष निधियों पर 4.48 करोड़ का ब्याज अर्जित करने का अवसर खो दिया गया।
कैग ने सिलसिलेवार अपनी रिपोर्ट में कई विभागों में खट्टर सरकार के खराब वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठाए हैं। उसने कहा है कि खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग में अधिकारियों ने भारतीय खाद्य निगम से 161.10 करोड़ के ब्याज प्रभारों के दावों को 199 से 921 दिनों तक विलंबित किया, जिसके परिणामस्वरूप कैश क्रेडिट पर ब्याज के कारण 13.15 करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ा। इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा किए गए संशोधनों की गलत व्याख्या के कारण 30.68 करोड़ के कम दावे किए गए। जिला खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले नियंत्रक करनाल ने विभागीय मानकों से अधिक संख्या में निगरानी स्टाफ की तैनाती की, जिसके कारण 1.99 करोड़ का अनियमित व्यय हुआ।
खेलों में देश को सबसे अधिक मेडल दिलाने वाले राज्य के खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग पर भी कैग ने सवाल उठाए हैं। कैग रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने सात जिला खेल परिषदों और एक नवगठित खेल एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्राधिकरण को मार्च 2016 से जनवरी 2018 के मध्य तत्काल आवश्यकता के बिना 10.09 करोड़ जारी कर दिए, जिसके परिणामस्वरूप चार साल से अधिक समय तक निधियों को सरकारी खातों के बाहर रखा गया और राज्य को 3.38 करोड़ के ब्याज की हानि हुई।
श्रम कल्याण बोर्ड को 1.54 करोड़ का नुकसान इसलिए हो गया कि 1057 नियोक्ताओं द्वारा जमा किए गए चेक बैंकों ने अस्वीकृत कर दिए। राशि को न तो भू-राजस्व के बकाया के रूप में दंडात्मक ब्याज सहित वसूल किया गया और न ही नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत चूककर्ताओं को दंडित करवाने के लिए समय पर कार्रवाई की गई। शहरी स्थानीय निकाय विभाग के महानिदेशक ने कर्मियों के प्रतिस्थापन आदि पर 1.15 करोड़ का अधिक भुगतान कर दिया। जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में राज्य सरकार की भूमि क्रय नीति का उल्लंघन कर भू-स्वामियों को भुगतान किए गए वास्तविक मूल्य पर विचार किए बिना एग्रीगेटर को एकमुश्त भुगतान कर भूमि की खरीद पर 1.04 करोड़ का अतिरिक्त व्यय किया गया। हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं मूलभूत संरचना विकास निगम में पर्याप्त निगरानी और अध्ययन के बिना प्रशिक्षण कार्यक्रम के अनुपयुक्त संचालन के कारण 3.62 करोड़ का व्यय करने के बाद भी रोजगार देने के परिकल्पित लाभ प्राप्त नहीं किए जा सके। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण प्रदाता को 2.96 करोड़ का अधिक भुगतान किया गया।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान राज्य का कुल व्यय 79,394 करोड़ से 31 प्रतिशत बढ़कर 1,03,823 करोड़ हो गया, जबकि राजस्व व्यय इसी अवधि के दौरान 59,236 करोड़ से 43 प्रतिशत बढ़कर 84,848 करोड़ हो गया। 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान कुल व्यय में राजस्व व्यय का भाग 75 से 86 प्रतिशत के मध्य रहा, जबकि पूंजीगत व्यय नौ से 17 प्रतिशत के बीच रहा।
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कैग ने यह भी लिखा है कि चिकित्सा विभाग के मार्च 2020 के अंत तक विभिन्न कार्यालयों से संबंधित निरीक्षण प्रतिवेदनों की समीक्षा के दौरान पाया गया कि अगस्त 2020 के अंत तक 484.08 करोड़ की राशि वाले 306 निरीक्षण प्रतिवेदनों के 754 अनुच्छेद लंबित थे। कैग ने कहा है कि सरकार के वित्तीय प्रबंधन में खामियों के चलते राज्य के खजाने को 1,125.46 करोड़ का चूना लगा है। यह पहली बार नहीं है कि कैग ने खट्टर सरकार की वित्तीय कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। लेकिन हर बार सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया न देना इस बात की तस्दीक होती है कि वह कैग रिपोर्ट को कितनी गंभीरता से लेती है।
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