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6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों का उपचुनाव : नतीजे देंगे संकेत कि विपक्ष में कितना है दम

छह राज्यों की 7 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए गुरुवार को मतदान संपन्न हो गया। इन चुनावों को नतीजे न सिर्फ यह साबित करेंगे कि क्षेत्रीय दल बीजेपी को मात दे सकते हैं या नहीं, बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर उनकी तैयारी भी सामने आ जाएगी।

प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो 

छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए आज (गुरुवार को) मतदान संपन्न हो गया। इन चुनावों को नतीजे न सिर्फ यह साबित करेंगे कि क्षेत्रीय दल बीजेपी को मात दे सकते हैं या नहीं, बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर उनकी तैयारी भी सामने आ जाएगी।

चुनाव आयोग ने गुरुवार को गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया। इससे पहले हिमाचल में चुनाव की गहमागहमी जारी है। वहां इसी महीने यानी नवंबर की 12 तारीख को मतदान होना है। इस बीच देश के 6 राज्यों में विधानसभा की 7 सीटों के लिए गुरुवार को मतदान हुआ। इन सीटों के नतीजे 6 नवंबर को आएंगे। इन नतीजों से काफी हद तय यह स्पष्ट हो सकता है कि क्षेत्रीय दल किस तरह की चुनावी तैयारियों में जुटे हैं और क्या वे 2024 में बीजेपी को एकजुट होकर मात दे सकेंगे। साथ ही इन नतीजों से यह भी सामने आ जाएगा कि बीजेपी की बढ़ती राजनीतिक ताकत उपचुनाव में कितना काम कर सकती है।

जिन 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ है उनमें से तीन सीटों पर पहले बीजेपी, दो पर कांग्रेस और एक एक सीट पर आरजेडी और शिवसेना का कब्जा था। आखिर इन सीटों को लेकर क्यों राजनीतिक गहमागहमी है। आइए बताते हं।

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उत्तर प्रदेश (गोला गोकर्णनाथ)

इस सीट से बीजेपी के विधायक अरविंद गिरी चुने गए थे। उनकी मृत्यु के बाद यह सीट खाली हो गई थी। इस सीट को समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई माना जा रहा है। इस सीट पर बीएसपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे, इसलिए सीधा मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के ही बीच रहा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि अगर यहां से समाजवादी पार्टी की जीत होती है तो इस बात द्योतक होगा कि बीजेपी जिले में कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर फेल हुई है और लोगों में उसे लेकर नाराजगी है। लेकिन बीजेपी जीत जाती है तो साफ होगा कि बीजेपी के हिंदुत्व को फिलहाल किसी किस्म की चुनौती नहीं है।

गोला गोकर्णनाथ सीट लखीमपुर खीरी जिले में है, जहां से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर किसानों को गाड़ी से कुचलने का आरोप है।

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बिहार (गोपालगंज)

इस सीट पर चुनाव बीजेपी के विधायक सुभाष सिंह की मौत के बाद हुआ है। गोपालगंज के चुनाव को पुरानी आरजेडी और नई आरजेडी के बीच लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। इस सीट से लालू यादव के साले और आरजेडी के सांसद रहे साधू यादव ने अपनी पत्नी को बीएसपी के टिकट पर मैदान में उतारा है। उनका सीधा मुकाबला आरजेडी के मोहन गुप्ता से है।

इस सीट पर यादव, मुस्लिम और कुर्मी वोटरों का वर्चस्व है। आरजेडी को उम्मीद है कि जाति के इस मिश्रण के आधार पर वह बीजेपी को हराने में कामयाब रहेगी। वहीं बीजेपी ने यहां से सिर्फ नाम के लिए मैदान में अपना उम्मीदवार उतारा है। रोचक है कि महागठबंधन के बावजूद के इस उपचुनाव से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को दूर ही रखा है।

बिहार (मोकामा)

बिहार की ही मोकामा सीट पर भी उपचुनाव हुआ है। इस सीट को आरजेडी के बाहुबलि अनंत सिंह का इलाका माना जाता है। हालांकि वह आर्म्स ऐक्ट में दोषी पाए गए हैं। उपचुनाव में यह पहला मौका है जब बीजेपी ने यहां से पना उम्मीदवार उतारा है। बीजेपी ने एक और बाहुबलि लल्लन सिंह की पत्नी को अनंत सिंह की पत्नी के खिलाफ खड़ा किया है।

अनंत सिंह और लल्लन सिंह दोनों ही बिहरा की ताकरतवर जाति भूमिहार तबके से हैं। बीजेपी की यहां से जीत के मायने हें कि उसे भूमिहारों की समर्थन हासिल है।

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हरियाणा (आदमपुर)

इस सीट से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई विधायक रहे हैं, जो इसी साल अगस्त में पाला बदलकर बीजेपी में चले गए हैं। हरियाणा में सत्तारूढ़ गठबंधन बीजेपी-जेजेपी ने यहां से बिश्नोई के बेटे भाव्या को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने जय प्रकाश को अपना उम्मीदवार बनाया है।

अगर इस चुनाव में बिश्नोई के बेटे हारते हैं तो बीजेपी को हरियाणा में जेजेपी की बैसाखी का सहारा लेना पड़ेगा। और अगर कांग्रेस जीतती है तो इससे हरियाणा के कद्दावर विपक्षी नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा का पलड़ा भारी हो जाएगा।

ध्यान रहे कि अक्टूबर 2019 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी-जेजेपी गठबंधन दो उपचुनाव हार चुका है। हालांकि इन दोनों बार उसने मजबूत चेहरों को मैदान में उतारा था।

महाराष्ट्र (अंधेरी ईस्ट – मुंबई)

महाराष्ट्र की सत्ता से महा विकास अघाड़ी सरकार के बेदखल होने के बाद यह पहला मौका है जब उद्धव ठाकरे की अगुवाईवाली शिवसेना सीधे जनता के बीच पहुंची है। यहां से यूं तो कोई अय मजबूत नेता मैदान में नहीं हैं क्योंकि बीजेपी ने आखिरी समय में एमएनएस और एनसीपी की अपील पर अपने उम्मीदवार मुरजी पटेल को मैदान से हटा लिया था। ऐसे में उद्धव की शिवसेना की उम्मीदवार ऋतुजा की जीत निश्चित मानी जा रही है। वैसे भी यह ऋतुजा के पति की मौते के बाद खाली हुई थी।

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तेलंगाना (मुनुगोडे)

तेलंगाना की इस सीट पर उपचुनाव कांग्रेस विधायक कोमिता रेड्डी के पाला बदलने और इस्तीफा देने के बाद हो रहा है। इस सीट पर असली लड़ाई टीआरएस और बीजेपी के बीच है क्योंकि दोनों ने इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है। बीजेपी दरअसल यह साबित करने की जुगत में है कि उसे दक्षिण भारत के इस हिस्से में भी समर्थन हासिल है।

ओडिशा (धामनगर)

धामनगर सीट पर उपचुनाव बीजेपी विधायक बिश्नू सेठी की मौत के बाद हो रहा है। इस चुनाव को बीजेपी और सत्तारूढ़ी बीजेडी ने नाक की लड़ाई बना लिया है। बीजेपी को उम्मीद है कि वह जीत हासिल कर सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखेगी लेकिन रोचक बात यह है कि बीते दिनों में हुए पांच उपचुनाव में से सभी में बीजेडी की ही जीत हुई है।

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