दिल्ली और मध्य प्रदेश के खरगोन के बीच की दूरी लगभग 1,000 किलोमीटर है। लेकिन दोनों ही जगह हुई सांप्रदायिक हिंसा और उसके बाद अवैध निर्माण को बुलडोजर से हटाने की कार्रवाई लगभग समान है। मध्य प्रदेश में लगभग 18 साल से बीजेपी का शासन है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का राज तीसरी बार हुआ है, लेकिन यहां सभी नगर निगमों में बीजेपी सत्ता में है। दोनों ही शहरों में जो कुछ हुआ और दिल्ली के जहांगीरपुरी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में जिस तरह देर की गई, उसके संकेत साफ हैं।
दिल्ली में सिर्फ जहांगीरपुरी को निशाना बनाया गया जबकि दिल्ली को अवैध कॉलोनियों का शहर कहा जा सकता है। केन्द्र सरकार के मातहत चलने वाले दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने दिल्ली में 1,731 अवैध कॉलोनियों की पहचान की है। लेकिन हाल ही में बुलडोजर चला मुस्लिम बहुल आबादी वाले जहांगीरपुरी में जहां छोटी-छोटी ‘अवैध’ दुकानों को ढहा दिया गया।
एक अनुमान के मुताबिक, 60 फीसद दिल्ली अवैध है। यहां तक कि लाजपत नगर, सैनिक फॉर्म जैसे दक्षिणी दिल्ली के इलाकों में भी अवैध निर्माणों की भरमार है। दिल्ली में 30 लाख से ज्यादा कारें हैं और रात में इनमें से ज्यादातर सरकारी जमीन पर ही पार्क की जाती हैं। कहते हैं कि लुटियन दिल्ली के बाहर की ज्यादातर सरकारी इमारतें तक बिल्डिंग बाईलॉज को ताक पर रखकर बनाई गईं। वैसे ही अनुमान है कि ज्यादातर कमर्शियल बिल्डिंग खाली जगह और पार्किंग की व्यवस्था करने के मामले में नियम- कायदों को धता बताकर खड़ी की गईं।
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जहांगीरपुरी में अवैध निर्माणों को ढहाए जाने के सिलसिले में दिल्ली के एक पुराने बाशिंदे ने कहा, ‘आप मुझे दिल्ली के किसी भी कोने में ले चलें, मैं दिखाऊंगा कि किस तरह सरकारी जमीन को कब्जा किया गया है और ये दशकों से अपनी जगह खड़े हैं। पूसा रोड पर प्रसिद्ध हनुमान प्रतिमा इसका जीता-जागता उदाहरण है।’ एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि अगर निर्माण से संबंधित कागजात मांग लें तो 80 फीसद दिल्ली अवैध निकलेगी।
हालांकि दिल्ली की तमाम सरकारों ने अवैध निर्माणों के खिलाफ अभियान चलाया है लेकिन इस तरह के ज्यादातर अभियान गरीबों के ऊपर ही चलाए गए। दिल्ली में तीन निगमों पर पिछले 15 साल से बीजेपी का राज है और आठ साल से यहां अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार है। कोई इस बात का जवाब देगा कि आखिर इन लोगों ने इतने सालों तक अवैध निर्माणों को रहने क्यों दिया?
हाल ही में जब जहांगीरपुरी में बुलडोजर दिखा तो दिल्ली के लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। लिहाजा, वे नहीं घबराए। बुलडोजरों को आते और कुछ किए बिना लौटते देखने की दिल्ली वालों को आदत रही है। लेकिन इस बार नजारा कुछ और होने वाला था। 200 से ज्यादा वेंडर हटाए जाने वाले थे, उनके ठेले-खोमचों को तोड़ा जाने वाला था और 200 से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी खत्म होने वाली थी। जबकि इनमें से ज्यादातर के पास सर्टिफिकेट ऑफ वेंडिंग थी और लोग 10-10 साल से काम-धंधा कर रहे थे। एक वेंडर ने तो दावा किया कि वह 30 साल से भी अधिक समय से वहां काम कर रहा है और कभी किसी ने सवाल नहीं किया।
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इस ‘सफाई’ अभियान के एक दिन पहले ही बीजेपी नेताओं ने मांग की थी कि इस इलाके में बांग्लादेशियों द्वारा किए गए अवैध निर्माण को ढहाया जाना चाहिए। उनकी दलील थी कि जहांगीरपुरी में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशियों ने 16 अप्रैल को हनुमान जयंती शोभा यात्रा पर पथराव किया था इसलिए उनके घर-दुकानों को ढहा दिया जाना चाहिए।
19 अप्रैल को उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) ने अगले दिन ड्राइव चलाने के लिए 400 पुलिसकर्मियों की मांग की और दिल्ली पुलिस ने तत्काल उसे पूरा भी कर दिया। वही दिल्ली पुलिस जो 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में शांति बनाए रखने के लिए 400 पुलिसकर्मियों को तैनात नहीं कर सकी थी, उसे 20 अप्रैल को पुलिसकर्मी उपलब्ध कराने में कोई दिक्कत नहीं हुई। बीजेपी के मेयर राजा इकबाल सिंह का कहना है कि यह एक ‘रूटीन’ अभियान था। उन्होंने यह भी दावा किया कि नियमों के तहत एनएमडीसी अवैध संरचनाओं को गिराने से पहले नोटिस देने के लिए बाध्य नहीं है।
टीवी चैनलों और समाचार पोर्टलों ने 19 तारीख की शाम और अखबारों ने 20 अप्रैल की सुबह ही बता दिया था कि निर्माणों को गिराने की धमकी के खिलाफ 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। लेकिन बुलडोजर तो सुबह-सुबह ही इलाके में आ धमके और 9 बजे तो तोड़फोड़ शुरू भी हो गई जो अगले चार घंटों तक बदस्तूर जारी रही।
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रमजान के महीने में गरीब मुसलमानों को बेघर करना क्रूर था जब वे दिन भर का उपवास करते हैं। अगर यह सब करने में नियम-कानून का पालन किया जाता, उन्हें पहले नोटिस दिया गया होता तो कोई आसमान नहीं टूट जाता।
अतिक्रमण हटाने के इस ‘रूटीन’ अभियान के समय पर गौर कीजिए। उस इलाके ने महज चार दिन पहले दो समुदायों के बीच झड़प को देखा था और जरूरत इस बात की थी कि अमन और लोगों का भरोसा बहाल होने दिया जाता। सोचने वाली बात यह है कि जहांगीरपुरी की मस्जिद का बाहरी हिस्सा तो ढहा दिया गया लेकिन पास ही के मंदिर के वैसे ही हिस्से को कुछ नहीं किया गया।
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सबसे पहले तो उसने अवैध निर्माण होने कैसे दिया और ये अतिक्रमण कब से थे (कुछ के बारे में कहा जाता है कि वे 40-40 साल पुराने थे)
पिछले सालों के दौरान कितने अतिक्रमणों को हटाया गया, कितनों को नोटिस दिया गया और कितने को नियमित किया गया?
किसने तय किया कि तोड़फोड़ कहां और कब शुरू होगी और किन लोगों को बख्श दिया जाएगा?
क्या एनडीएमसी इसी तरह बिना किसी सूचना के बड़े व्यावसायिक इमारतों के खिलाफ भी अभियान चलाएगी?
नगर निगम ने बीते सालों के दौरान कितने अतिक्रमणों की पहचान की?
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तमाम सरकारों ने अवैध कॉलोनियों को नियमित किया और यह एक जानी हुई बात है कि इस तरह के अवैध निर्माण सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से ही होते हैं। इमारतों में निर्माण से जुड़ी ज्यादातर गतिविधियों से किसी-न-किसी नियम-कानून का उल्लंघन होता है लेकिन नगर निगम आंखें मूंदे रहता है और निगम के अधिकारी तब तक उंघते रहना पसंद करते हैं जब तक उनकी जेबें गर्म रहें।
अब 16 अप्रैल की बात। उस दिन जहांगीरपुरी के उस इलाके से निकलने वाली वह तीसरी शोभा यात्रा थी। इससे पहले की दो यात्राओं के उलट यह जुलूस मस्जिद के सामने रुक गया। वह वक्त शाम की नमाज का भी था। जुलूस में बच्चे और कम उम्र के नौजवान जिनमें ज्यादातर बेरोजगार दिख रहे थे, तेज संगीत पर नाच रहे थे। एक मुस्लिम बहुल इलाके में मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगाए गए। तलवारें लहराईं गईं और वीडियो क्लिप बताते हैं कि उस समय कुछ लोगों के हाथमें देसी कट्टे थे। कुछ के हाथ में हॉकी स्टिक और बेसबॉल के बल्ले थे। जरा सोचिए, जहांगीरपुरी में भला कौन बेसबॉल और हॉकी खेलता है? कुछ युवाओं ने मस्जिद के गेट पर भगवा झंडे बांधने की कोशिश की। दिल्ली पुलिस भी मानती है कि यह शोभा यात्रा अवैध थी क्योंकि इसके लिए किसी तरह की परमिशन नहीं ली गई थी। क्या यह सवाल नहीं उठता कि आखिर बिना परमिशन शोभा यात्रा निकालने क्यों दी गई? साथ-साथ पुलिस चलती रही और डीसीपी दीपेंद्र पाठक पुलिस की तैनाती का यह कहकर बचाव करते हैं कि ऐसा ऐहतियातन किया गया।
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उसके बाद जो हुआ, सबके सामने है। 23 उपद्रवियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उनमें से ज्यादातर मुस्लिम हैं। कथित मास्टरमाइंड मोहम्मद अंसार को बांग्लादेशी बताया गया जबकि वह असम का है और उसके खिलाफ नेशनल सिक्योरिटी ऐक्ट लगा दिया गया। अंसार से जुड़े दो वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत कुछ साफ कर देते हैं। एक वीडियो में अंसार एक डरे-सहमे लड़के को समझा रहा होता है कि वह बिल्कुल नहीं डरे, उसे कुछ नहीं होगा। दूसरे वीडियो में उसकी पड़ोसी कमलेश गुप्ता अंसार के साफ-सुथरे व्यवहार के बारे में कह रही होती हैं कि ‘वह बड़ा ही मददगार है...अगर वह कभी मुझे रात में देख लेता तो यह पूछे बिना नहीं रहता कि कहीं मुझे किसी चीज की जरूरत तो नहीं?’ इसके साथ ही कमलेश ने यह भी दावा किया कि जिस समय हिंसा भड़की, वह घर में ही था। कमलेश कहती हैं कि हो-हंगामा होने पर अंसार घर से निकला और यह कहते हुए उस तरफ बढ़ा कि‘भाभी, लगता है कि लड़के लड़ रहे हैं। जाकर देखता हूं और बीच-बचाव करता हूं।’
जाहिर है, दिल्ली पुलिस ने इन वीडियो को देखने की जहमत नहीं उठाई। क्या यह भी सोचने का मजबूर नहीं करता कि दिल्ली पुलिस सबसे पहले ट्वीट करती है कि विहिप कार्यकर्ता प्रेम शर्मा को बिना परमिशन जुलूस निकालने पर गिरफ्तार किया गया है और फिर वह दावा करती है कि चूंकि यह एक जमानती अपराध है, लिहाजा उसे जमानत दे दिया गया है? और फिर वही शख्स जांच में सहयोग भी करने लगता है? दाल में काला नहीं, यहां तो पूरी दाल ही काली है।
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