मोदी सरकार के गुरुवार को पेश बजट को जो दावे किए जा रहे हैं, उनकी हवा इस बजट का गहराई से विश्लेषण करने पर निकल गई है। मोदी सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता कार्यक्रमों पर अब तक का सबसे ज्यादा पैसा देने के लंबे चौड़े दावे कर रही है, वह झूठे हैं। दावा किया गया है कि सरकार ने पिछले बजट के मुकाबले इस बार इन कार्यक्रमों में 13 फीसदी ज्यादा पैसा देने का प्रावधान किया है, लेकिन हकीकत यह है कि इन सभी योजनाओं में जो पैसा दिए जाने का प्रस्ताव है, वह पिछले साल के बजट यानी 2017-18 के बजट से कम है।
बजट डाटा का इंडियास्पेंड के फैक्टचैकर विश्लेषण से सामने आया है कि यह कथित ऐतिहासिक प्रावधान भी जुमला ही हैं। इस बजट में कुछ पुरानी योजनाओं का नया नामकरण कर दिया गया है, और कुछ योजनाएं तो ऐसी हैं जिनका नामकरण पिछले ही बजट में किया गया था, उन्हीं को एक बार फिर नया नाम दे दिया गया है।
गुरुवार को पेश बजट में वित्त मंत्री ने जो बड़े ऐलान किए और जिनका ढिंढोरा पीटा जा रहा है, उनमें कथित तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना, आईआईटी और आईआईएससी के 1000 डॉक्टरेट छात्रों को स्कॉलरशिप और 2019 तक करीब दो करोड़ शौचालय बनाना शामिल है। बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर 1.38 लाख करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है, जो मोटे तौर पर पिछले बजट के 1.22 लाख करोड़ से 13 फीसदी ज्यादा है। लेकिन इस आंकड़े का विश्लेषण करने पर जो बाते सामने आई हैं, वे हैं:
वित्त मंत्री ने नई स्वास्थ्य बीमा योजना का ऐलान करते हुए इसे ‘दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना’ की संज्ञा दी। उन्होंने घोषणा की कि इस योजना के तहत देश के 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपए प्रति वर्ष का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा। इसे ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ का नाम दिया गया। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि पहली फरवरी से पहले तक इस योजना का नाम ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ होता था। इस योजना में 7 करोड़ परिवार शामिल थे, जबकि नई योजना में सिर्फ 3 करोड़ नए परिवार जुड़ेंगे।
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इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए पूरे स्वास्थ्य क्षेत्र में मात्र 2.7 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर 53,198 से बढ़ाकर 54,667 करोड़ कर दिया गया है।
लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए फंड घटाकर कुल बजट का 2.1 फीसदी कर दिया गया है। पिछले बजट यानी 2017-18 में स्वास्थ्य मंत्रालय को कुल बजट का 2.4 फीसदी पैसा दिया गया था। यहां यह जानना लाजिमी है कि नेशनल हेल्थ पॉलिसी यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के मुताबिक स्वास्थ्य पर कुल बजट का कम से कम 2.5 फीसदी खर्च होना चाहिए।
इसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए फंड में 2.1 फीसदी की कमी की गई है। पिछले साल इस मद में 31,292 करोड़ रुपए दिए गए थे, जिसे घटाकर इस साल मात्र 30,634 करोड़ रूपए कर दिया गया है।
यह एक तथ्य है कि अपर्याप्त स्वच्छता व्यवस्था, मानव मल-मूत्र और सॉलिड वेस्ट आदि का प्रबंधन सही न होने से पैदा होने वाली बीमारियों, पेयजल के स्त्रोतों को नुकसान और पर्यटन क्षेत्र पर असर के चलते देश को हर साल करीब 2.4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने स्वच्छता अभियान के लिए होने वाले खर्च में 7 फीसदी की कमी कर दी। पिछले साल इस अभियान के लिए 19,248 करोड़ रुपए दिए गए थे, लेकिन इस वर्ष इस फंड को घटाकर 17,843 करोड़ रुपए कर दिया गया।
इसके अलावा स्वच्छता के लिए लोगों में जारुकता फैलाने के लिए किए जाने वाले खर्च में 6 फीसदी की कमी की गई है। पिछले साल स्वच्छता जागरुकता के लिए318 करोड़ रुपए दिए गए थे, जो इस साल घटकर 300 करोड़ रुपए रह गए हैं।
भले ही वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई हो, लेकिन शिक्षा के लिए जिम्मेदार मानव संसाधन विकास मंत्रालय का बजट इस बार बीते पांच साल में सबसे कम है। इस साल इस मद में 85,010 करोड़ रुपए दिए गए हैं, जो भले ही पिछले साल से ज्यादा नजर आए,लेकिन हकीकत यह है कि कुल बजट के अनुपात में इसमें 0.23 फीसदी की कमी की गई है, जो 2014-15 के बाद का सबसे कम प्रावधान है। इस साल यह बजट का 3.48 फीसदी है, जो कि 2014-15 में 3.71 फीसदी था।
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इस बार के बजट में शिक्षकों के प्रशिक्षण की बात तो की गई है, लेकिन सरकारी स्कूलों में खाली पड़े करीब एक करोड़ पदों को भरने के लिए कोई ऐलान नहीं किया गया।
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