एक लंबे वक्त बाद हरियाणा और पंजाब की सरकारों में कमाल का सामंजस्य देखने को मिला है। किसी भी हालत में प्रदर्शनकारी किसानों को चंडीगढ़ पहुंचने से रोकने के लिए दोनों राज्यों की सरकार ने चंडीगढ़ के बार्डर पर इतनी भारी संख्या में अपने पुलिस बलों को उतार दिया कि मानो यह भारत-पाकिस्तान का बार्डर हो। इस अंदाज में और इतनी संख्या में पुलिस फोर्स उतार दी गई कि एक बार फिर किसान आंदोलन की यादें जेहन में ताजा हो गईं।
फर्क सिर्फ इतना था कि उस वक्त सीमाएं दिल्ली की थीं और इस बार पंजाब-हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ की थीं। चारों तरफ से चंडीगढ़ की सीमाएं छावनी में तब्दील कर दी गईं। हजारों जवान उतार दिए गए। यहां तक कि किसानों को रोकने के लिए सड़क पर बड़े-बड़े ट्रक खड़े कर दिए गए। कई वाटर कैनन तैनात थीं। यह देखकर लोग आश्चर्य में हैं। लोगों का कहना है कि किसान बाढ़ में तबाह हुई फसलों का मुआवजा ही तो मांग रहे हैं। अपनी बात कहने ही तो वह चंडीगढ़ आना चाह रहे थे।
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22 अगस्त एक बार फिर किसान आंदोलन के इतिहास में वह तारीख बन गई जब सरकारें किसानों को रोकने के लिए इस हद तक उतर आईं। एक किसान की मौत हो गई। एक किसान ने अपनी टांगें गवा दीं। 16 किसान संगठनों के चंडीगढ़ मार्च को रोकने के लिए पुलिस एक दिन पहले से ही एक्शन पर थी। हर छोटी बात को तूल देकर सियासी बवाल खड़ा करने वाली हरियाणा की बीजेपी सरकार और पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के बीच यह भाईचारा देखकर लोग हैरान हैं। केंद्र शासित प्रदेश यानि कि बीजेपी शासित चंडीगढ़ भी इस भाईचारे में शामिल था।
तीन प्रदेशों की पुलिस के बीच ऐसा समन्वय तो शायद ही कभी दिखा हो। मकसद, सिर्फ किसानों को रोकना था। लोग कह रहे हैं कि काश, इन सरकारों के बीच अहम मसलों पर भी इसी तरह का भाईचारा हो जाए तो जनता की सुनने का भी इन्हें वक्त मिल जाए। चंडीगढ़ आ रही बसों, कारों और यहां तक कि दोपहिया वाहनों में भी किसानों को ढूंढा जा रहा था। चंडीगढ़ के मोहाली और पंचकूला बॉर्डर सील कर दिए गए थे। चंडीगढ़ की तरफ आने वाले तकरीबन 27 रास्तों पर बैरिकेडिंग के साथ चंडीगढ़ पुलिस के चार हजार से अधिक जवान वाटर कैनन के साथ तैनात थे। पैरामिलिट्री और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को भी लगाया गया था। मोहाली पुलिस के तकरीबन डेढ़ हजार जवान भी दोनों शहरों के बॉर्डर पर तैनात थे।
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धारा 144 तो पहले से ही लगा रखी थी। चंडीगढ़ आने वालों से आईकार्ड के साथ आने के लिए कहा गया था। कहा तो यह भी जा रहा है कि हर थाना इंचार्ज को किसानों को रोकने के लिए छह टिप्पर लाने का जिम्मा दिया गया था, लेकिन सभी एसएचओ ने इंकार कर दिया था। किसानों ने ऐलान कर रखा था कि चंडीगढ़ के सेक्टोर-17 परेड ग्राउंड में वह पक्का मोर्चा लगाएंगे। यदि पुलिस उन्हें रोकती है तो वहीं वह धरने पर बैठ जाएंगे। लेकिन पुलिस एक दिन पहले ही एक्शन में आ चुकी थी। 21 अगस्त को सुबह से ही पुलिस ने पंजाब और हरियाणा में किसान नेताओं को उठाना शुरू कर दिया। चंडीगढ़ पहुंचने से रोकने के लिए दोनों राज्यों के तकरीबन सौ किसानों को हिरासत में लिया गया।
इस दौरान कई जगह पुलिस से किसानों का टकराव हुआ। पंजाब के संगरूर के लौंगोवाल में पुलिस और भारतीय किसान यूनियन (आजाद) के नेताओं के बीच झड़प में वहां फैली अफरातफरी में एक किसान ट्रैक्टर के नीचे आ गया। बुरी तरह घायल पटियाला के रहने वाले इस किसान प्रीतम सिंह की अस्पताल में मौत हो गई। अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने किसान की मौत पर सीएम भगवंत मान के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने की मांग की है। संगरूर भगवंत मान का गृह जिला भी है।
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वहीं अंबाला में एक युवा किसान 30 वर्षीय रविंद्र सिंह की ट्रैक्टर के टायर में फंस जाने से टांग कट गई। रविंद्र हरियाणा बार्डर के बिल्कुल करीब स्थित पंजाब के सरसिनी गांव का रहने वाला बताया जा रहा है। कहा यह जा रहा है कि गांव से चंडीगढ़ के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉलियां लेकर निकले किसानों के पीछे पुलिस ने अपनी गाड़ियां लगा दी थीं। इसी दौरान रास्ते में अचानक गड्ढा आ जाने के कारण ट्रैक्टर का बैलेंस बिगड़ने से रविंद्र की एक टांग ट्रैक्टर के टायर और लोहे की बॉडी के बीच फंस गई। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने इन घटनाओं के लिए भी किसानों के खिलाफ ही केस दर्ज कर दिया है।
पंजाब के मालवा, माझा और दोआबा से लेकर हरियाणा के अंबाला, कुरुक्षेत्र और भिवानी तक किसान यूनियन से जुड़े नेताओं को हिरासत में लिए जाने और चंडीगढ़ जाने से रोकने पर किसानों ने प्रदर्शन किया। भिवानी में अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर प्रदेश भर के किसानों ने कृषि मंत्री जेपी दलाल के आवास का घेराव किया। यहां संयुक्त किसान मोर्चा के नेता इन्द्रजीत सिंह ने कहा कि बाढ़ में आधे हरियाणा के जिलों की फसल बर्बाद हो गई। हजारों दुधारू पशु मर गए। अब राज्य के कई हिस्सों में सूखा पड़ने से खरीफ फसलें बर्बाद हो गईं। किसान राहत और मुआवजे के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन राज्य और केंद्र की सरकार किसानों की सुनने के लिए तैयार नहीं है। हरियाणा में पांच लाख एकड़ से अधिक फसलों की तबाही बाढ़ से हुई है। घग्गर नदी ने अंबाला, कैथल से लेकर फतेहाबाद और सिरसा तक तबाही मचाई है। वहीं, यमुना नदी ने यमुनानगर, पानीपत, सोनीपत, करनाल से लेकर पलवल तक फसलों को तबाह किया है। करीब डेढ़ हजार गांव इससे प्रभावित हैं।
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यमुना के किनारे खेतों में रेत जमा होने से फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। खेतों में जमा रेत को लेकर एक योजना लेकर आई सरकार से भी किसानों में भारी गुस्सा हैं। सरकार कह रही है कि जिन किसानों के खेतों में बाढ़ की वजह से भारी मात्रा में रेत जमा हो गयी है। वह किसान इस रेत को मार्केट में बेच सकेंगे। इससे किसानों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे से उन्हें कहीं अधिक फायदा होगा, लेकिन रेत बेचने की अनुमति उन्हीं किसानों को मिलेगी, जो मुआवजा राशि छोड़ने को तैयार होंगे। इसके लिए डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी ऑक्शन करवाएगी। जितना पैसा मिलेगा, उसका एक तिहाई किसान और दो तिहाई सरकार के पास आएगा। मतलब यदि एक लाख रुपये की रेत बिकती है तो किसानों को सिर्फ 33 हजार रुपये ही मिलेंगे। 67 हजार रुपये सरकार के खाते में जाएंगे।
दरअसल खट्टर सरकार का तर्क है कि किसानों को मुआवजा राशि 15 हजार प्रति एकड़ मिलती है, जिससे यह राशि दोगुने से भी अधिक होगी। डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला इससे किसान को ज्यादा फायदा बता रहे हैं। इसमें भी शर्त यह होगी कि किसानों को 10 लाख रुपये तक की राशि ही मिलेगी। किसान सरकार की इस योजना से भी गुस्से में हैं। उनका कहना है कि रेत किसान के खेत में हैं तो उस पर पूरा अधिकार भी किसान का है। सरकार कौन होती है किसान का हिस्सा खाने वाली। सरकार पहले तो हमारा मुआवजा 15 हजार रुपये प्रति एकड़ से बढ़ाकर 50 हजार रुपये प्रति एकड़ करे।
भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यएक्ष गुरुनाम सिंह चढ़ूनी का कहना है कि किसान अपना हक मांगेंगे तो क्या सरकार उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटेगी। क्या वह किसान की हत्या कर देगी। सरकार यह ठीक नहीं कर रही है। वहीं, बाढ़ प्रभावित किसानों के खेतों से रेत उठाने के सवाल पर चढ़ूनी ने सरकार को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि हम वहीं खेत पर जाएंगे। देखते हैं सरकार रेत कैसे उठाती है। जब रेत किसान के खेत में है तो सरकार उसे उठाने वाली कौन होती है। किसान 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा मांग रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने दो सितंबर को बैठक बुलाई है, जिसमें आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा।
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