अभी विस्फोट भले ही न हुआ हो, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही गंभीर संकट से दो चार है। आर्थिक विकास की दर 6 साल के निचले स्तर पर पहुंचकर दूसरी तिमाही में 4.5 फीसदी रही है। लेकिन इससे भी बुरी और गंभीर बात यह है कि मोदी सरकार लगातार इसे मानने से इनकार कर रही है और उसे हवा नहीं है कि हालात कितने बदतर हो चुके हैं।
शुक्रवार को सरकार ने खुद ही ऐलान किया कि देश की तरक्की की रफ्तार थम चुकी है और अर्थव्यवस्था पटरी से उतरकर दूसरी तिमाही में 4.5 फीसदी पर पहुंच गई है। पिछली तिमाही में विकास दर 5 फीसदी रही थी। आज जारी आंकड़े विकास दर के साढ़े 6 साल के निचले स्तर को दर्शाते हैं। ध्यान रहे कि पिछले साल दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 7.2 फीसदी थी। इस तरह सिर्फ एक साल में ही करीब 3 फीसदी की गिरावट विकास दर में दर्ज की गई है। कौन सा सेक्टर में कितना लहुलुहान हुआ, इसकी विस्तृत आंकड़े अभी आने हैं, लेकिन हमें बिग पिक्चर देखना भी जरूरी है।
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देश की अर्थव्यवस्था के लिए शुक्रवार का दिन ब्लैक फ्राइडे साबित हुआ। न सिर्फ विकास दर 4.5 फीसदी पर पहुंच गई बल्कि अक्टूब में ही देश ने वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पार कर लिया। इतना ही नहीं अक्टूबर में 8 कोर सेक्टर उद्योगों की तरक्की में 5.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
आखिर इतनी बुरी हालत कैसे हो गई? सरकार दावा करती है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में देश की विकास दर औसतन 7.1 फीसदी रही। लेकिन एनएसएसओ के आंकड़े बताते हैं कि उपभोग में 3.7 फीसदी की कमी आई है। इन दोनों आंकड़ों को एक साथ देखें तो तस्वीर साफ हो जाती कि मौजूदा सरकार के दौर में देश की तरक्की की कहानी बिखर चुकी है। अब बात सिर्फ समय की रह गई है कि इसमें बड़ा विस्फोट हो और यह अर्थव्यवस्था की बुनियाद को ही हिला दे।
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सरकार ये सब मानने को तैयार नहीं है। एनएसएसओ के आंकड़े उसे भाते नहीं हैं। वित्तीय घाटे का लक्ष्य पार हो चुका है और आने वाले दिन मुसीबत भरे साबित हो सकते हैं। इन हालात में शुक्रवार आए आंकड़े चौंकाने वाले नहीं, चिंतित करने वाले हैं, क्योंकि बीते दिनों में सरकार ने एक भी ऐसा कदम नहीं उठाया जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती। ध्यान रहे जब तक लोगों के हाथ में खर्च करने को पैसा नहीं होगा, न तो मांग बढ़ेगी न उपभोग, ऐसे में विकास दर में उछाल असंभव ही प्रतीत होता है।
दरअसल अर्थव्यवस्था पर काले बादल लंबे समय से मंडरा रहे थे। लेकिन अब जो आंकड़े आए हैं उससे संकेत मिल रहे है कि हम वंबडर के बीच में फंस चुके हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री नहीं हो रही, उपभोक्ता मांग लगातार कम होती जा रही है और कोर सेक्टर अपने 14 साल के सबसे बुरे दौर में पहुंच चुका है। सितंबर में इसमें निगेविट ग्रोथ थी।
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हालांकि सरकार यही बोलेगी कि यह अस्थाई दौर है, जल्द ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी, लेकिन आंकड़े डरावनी तस्वीर दिखा रहे हैं। बेरोजगारी 45 साल के उच्चर स्तर पर है, ग्रामीण इलाकों में संकट है, जहां उपभोग 40 साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। इन सबसे लगता है कि आर्थिक मोर्चे पर इस सरकार में नीतिगत दिक्कत है।
अर्थव्यवस्था की दिक्कत काफी समय से सबसे सामने है, लेकिन सरकार इस बीमारी का इलाज तो दूर, उसे पहचानना तक नहीं चाहती, क्योंकि राजनीतिक तौर पर उसे इससे कोई फायदा नहीं मिलता। और तो और हल्ला मचने पर उसने बिना बीमारी समझे इलाज करना शुरु किया जिससे हालात और बिगड़ गए। सरकार के इस कदम का असर है कि कर संग्रह में कमी आ गई और डायरेक्टटैक्स कलेक्शन में पिछले साल 82,000 करोड़ की कमी दर्ज की गई। सरकार ने इस साल कार्पोरेट टैक्स में कटौती का ऐलान किया, जिससे कर संग्रह में कम से कम 1.45 लाख करोड़ की कमी होगी। आरबीआई से मिले 1.76 लाख करोड़ पर चलने वाली सरकार द्वारा टैक्स में कटौती का अर्थ यही है कि या सरकार कर्ज लेगी या फिर खर्च कम करेगी। ये दोनों ही कदम अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होंगे।
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