हालात

बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कश्मीर का इस्तेमाल कर रही है: फारुक अब्दुल्ला

बीजेपी चुनाव जीतने के लिए कश्मीर का इस्तेमाल कर रही है और कश्मीर समस्या सैन्य हल नहीं हो सकता, बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। यह कहना है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूक अब्दुल्ला का। डॉ अब्दुल्ला से नवजीवन के लिए हारून रेशी ने बातचीत की।

Photo by Raj K Raj/Hindustan Times via Getty Images
Photo by Raj K Raj/Hindustan Times via Getty Images 

पुलवामा हमले के बाद जम्मू शहर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले और हिंसा की घटनाएं लगातार हुई हैं। क्याआपको लगता है कि हालात सांप्रदायिक हिंसा की तरफ बढ़ रहे हैं?

अभी जम्मू में हालात काबू में हैं। लेकिन इसकी वजह कर्फ्यू है। यह देखना होगा कि कर्फ्यू हटाए जाने और स्कूल-कॉलेज और दूसरे संस्थान खुलने के बाद हालात कैसे रहते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय में खौफ है, जिसे खत्म होने में वक्त लगेगा। मैं उम्मीद करता हूं कि हालात और न बिगड़ें। साथ ही सरकार से उम्मीद है कि वह हालात को काबू में रखना सुनिश्चित करेगी।

काफी लोगों को लगता है कि सांप्रदायिक हिंसा राजनीतिक फायदे के लिए फैलाई जा रही है। आप इस बात से सहमत हैं?

हां। मुझे लगता है कि इस तरह के हालात बनाए जा रहे हैं और इसमें कोई शक ही नहीं है। बीजेपी किसी भी कीमत पर लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है इसके लिए वह सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने समेत सभी तरह की कोशिश कर रही है। ये लोग कई मुद्दों पर हिंदुओं और मुसलमानों में दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं। साफ संकेत हैं कि ये लोग देश में सांप्रदायिक सद्भाव नहीं चाहते।

ऐसे हालात से कैसे निपटा जाए, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

मुझे उम्मीद है कि इस तरह के हालात से निपटने के लिए समझदार भारतीय लोग और नेतृत्व दोनों हैं। वर्ना तो देश पर जबरदस्त खतरा है। मुझे लगता है, भारत को बाहर से नहीं, अंदर से ही गंभीर खतरा है।

पाकिस्तान ने पुलवामा हमले में अपना हाथ होने से इनकार किया है। उसका कहना है कि भारत बिना सुबूत आरोप लगा रहा है। इस पर आपकी राय?

जहां तक पाकिस्तान सरकार का सवाल है, मैं सचमुच कुछ नहीं कह सकता कि वो चाहती क्या है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी यहां सक्रिय हैं और पुलवामा जैसे हमले कर रहे हैं। दरअसल यह लोग (जैश-ए-मोहम्मद) आने वाले चुनावों में बीजेपी को मजबूत करने का काम कर रहे हैं।

कश्मीर समस्या का क्या राजनीतिक समाधान हो सकता है?

देखिए, किसी भी समस्या का राजनीतिक समाधान तब तक नहीं हो सकता है जब तक हम बात नहीं करेंगे। हम सभी मुद्दों पर आपस में बात करें, तभी समाधान निकल सकता है। हम यह नहीं कह सकते कि ये सही समाधान है या कोई और गलत समाधान है। हल तभी निकलेगा जब दिल से बात होगी। लेकिन अगर केंद्र बात ही नहीं करना चाहता और सिर्फ चुनाव जीतना चाहता है, तो कुछ भी नहीं बदलेगा।

सेना ने आतंकवादियों के खिलाफ 2017 में ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ शुरु किया था। क्या इससे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो सकता है?

जो लोग समझते हैं कि इससे आंतवाद खत्म हो सकता है, वे भुलावे में जी रहे हैं। मैंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बुलाई गई संसदीय समिति की बैठक में भी यह बात कही थी। मैंने कहा था कि ऐसा सोचना मूर्खता है कि आतंकवाद खत्म हो गया और अब कभी सिर नहीं उठाएगा। कश्मीर में आतंकवाद तभी खत्म हो सकता है जब समस्या का राजनीतिक समाधान निकाला जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी गई है। आपको क्या लगता है कि इसका क्या असर होगा?

वे (मोदी) ऐसी बातें इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि वे खुद कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए वह सुरक्षा बलों को खुली छूट देने की बातें कर रहे हैं।

क्या इससे घाटी और अलग-थलग होगी?

आप क्या समझते हैं, कि केंद्र को इसकी फिक्र है। उन्हें इसकी जरा भी परवाह नहीं है। वे सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाना जानते हैं ताकि सत्ता में बने रहें।

आप हमेशा बातचीत की वकालत करते हैं। आपको लगता है कि हुर्रियत से बात करने से कश्मीर समस्या का हल निकलेगा?

मैंने कभी नहीं कहा कि सिर्फ हुर्रियत नेताओं से बात की जाए। सभी से बात होना जरूरी है। मेरा सीधा सवाल है कि जम्मू-कश्मीर के वार्ताकारों की रिपोर्ट को क्यों अनदेखा किया जा रहा है। उन्होंने सबसे बात की थी। उन्होंने निश्चित रूप से कुछ सुझाव दिए होंगे। वे इन सुझावों को क्यों नहीं देखते? वे स्वायत्ता क्यों नहीं देते? हमारी स्वायत्ता संविधान से बाहर नहीं है।

धारा 35 ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। अगर सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिले विशेष अधिकार खत्म कर देता है तो इसके क्या प्रभाव होंगे?

मेरा मानना है कि जम्मू-कश्मीर के लोग किस त्रासदी से दो-चार हैं इसकी समझ सुप्रीम कोर्ट को है। मुझे उम्मीद है कि समझदारी भरा फैसला ही होगा। मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं। सुप्रीम कोर्ट की अपनी मर्यादा है। मैं उम्मीद करता हूं कि माननीय न्यायाधीशों इस बात को समझते हैं कि धारा 35 हटाने से क्या असर पड़ेगा।

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