केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को भी किसानों की ताकत के सामने अंतत: झुकना पड़ा। दिल्ली में दाखिल होने से किसानों को रोकने के लिए सरकार ने सड़कें खोद डालीं, शीतलहर में भी किसानों पर जल तोपों के प्रहार किए, दंगाइयों की तरह उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए, बड़े-बड़े ट्रक, डंपर, क्रेन, पत्थर, कंटीले तार और न जाने क्या-क्या बाधाएं रास्ते में खड़ी की गईं, लेकिन लाखों किसानों के संकल्प के सामने सत्ता तंत्र बौना साबित होता नजर आया। दिल्ली की सीमा में दाखिल होने की किसानों की पहली मांग सरकार को माननी पड़ी। हालांकि, किसान मंजिल मिलने तक यानी तीनों कृषि कानून वापस होने तक पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।
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केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ 26 और 27 नवंबर के किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के लिए सरकार ने सारी हदें पार कर दीं। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने 25 नवंबर को ही बार्डर सील करने का फरमान जारी कर दिया। मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि हर हालत में हम किसानों का 'दिल्ली चलो' रोकेंगे। हम इसकी इजाजत नहीं देंगे। सीएम के इस बयान ने भी आग में घी का काम किया। किसानों ने भी मंशा जाहिर कर दी कि हम किसी भी हालत में दिल्ली जाएंगे और सरकार को तीनों काले कानून वापस लेने ही होंगे।
लिहाजा, हरियाणा के किसान 25 नवंबर को ही दिल्ली कूच के लिए निकल पड़े। हरियाणा के किसानों ने पुलिस के सभी बेरिकेड तोड़ते हुए 25 नवंबर की रात में करनाल में डेरा डाल दिया। 26 नवंबर को पंजाब से निकले किसान भी पानीपत में हरियाणा के किसानों से मिल गए। 27 नवंबर को पानीपत में भी पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए भरसक प्रयास किए।
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करनाल और पानीपत की पुलिस ने वाटर कैनन वैन और वज्र वाहन के साथ मोर्चा संभाल रखा था। यहां भी पुलिस ने किसानों पर वाटर कैनन से पानी की बौछार की और आंसू गैस के गोले दागे। यह सिलसिला 12 बजें तक चलता रहा।
12 बजे पुलिस ने हाईवे पर भारी पत्थर रखवा दिए। ट्रकों को खड़ा कर दिया। सड़क के बराबर भी गड्ढा करने का प्रयास किया। किसानों से थोड़ी झड़प भी हुई। शीतलहर के बीच पानी के बौछारों से किसान पुलिस के हाथ जोड़कर रहम की गुहार भी लगाते नजर आए।
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इसके बाद हरियाणा-दिल्ली का सिंधू बार्डर जंग का मैदान बन गया। यहां तो पुलिस ने हद कर दी। तकरीबन पौन घंटे तक किसानों पर यहां भारी तादाद में आंसू गैस के गोले दागे गए, जिसमें तमाम किसान घायल हुए। इसके बावजूद किसानों का हौसला नहीं पस्त हुआ। पुलिस ने यहां बैरिकेडिंग ऐसी कर रखी थी कि कंटीले तार से लेकर ट्रक, पत्थर व मिट्टी की दीवार तक बना रखी थी। आखिर में वॉटर कैनन व्हीकल तैनात था। इतने इंतजाम भी किसानों को नहीं रोक पाए। दिल्ली बॉर्डर तक पुलिस ने आधा दर्जन से ज्यादा जगह बड़ी नाकेबंदी कर किसानों को रोकने की कोशिश की।
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अभी भी हालात ऐसे हैं कि बड़ी तादाद में किसान दिल्ली जाने के लिए पंजाब और हरियाणा के हाईवे पर हैं। देश की राजधानी में सरकार से अपनी बात कहने आए साथियों की मदद के लिए किसानों का बड़ा हुजूम दिल्ली की ओर बढ़ रहा है। किसानों का जज्बा ऐसा है कि आगे आ गए हरियाणा के किसानों ने कहा कि सिंघु बॉर्डर पर तैनात पुलिस हरियाणा के किसान नेताओं को जानती है। पंजाब से आए किसान भाई हमारे मेहमान हैं। इसलिए अगर नौबत आती है तो पुलिस की पहली लाठी हम खाएंगे।
स्थिति ऐसी बन गई है कि बीजेपी सरकार के पूरी ताकत झोक देने के बाद भी दिल्ली के चारो तरफ किसान ही किसान नजर आ रहे हैं। सैकड़ों ट्रैक्टर ट्रालियों की कतारें लग गई हैं। दिल्ली-गुरुग्राम, दिल्ली-झज्जर, दिल्ली-पलवल-फरीदाबाद और दिल्ली-पानीपत-सोनीपत की तरफ किसानों का रेला है।
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सरकार अगर झुक रही है तो यह ऐसे ही नहीं हुआ है। हालात ही ऐसे बन गए हैं। दिल्ली-बहादुरगढ़ हाईवे पर टिकरी बॉर्डर पर भी पुलिस और किसानों में टकराव हुआ। दिल्ली-हिसार हाईवे पर बवाल मचा रहा। सिरसा में पुलिस और किसानों का टकराव हुआ। दिल्ली-अंबाला हाईवे शुक्रवार को भी पूरी तरह से बंद रहा।
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कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसानों के सड़क पर आने के बाद हरियाणा सरकार बेहद दबाव में है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब बरौदा उप-चुनाव में सारी ताकत लगाने के बाद भी बीजेपी प्रत्याशी को 10 हजार से अधिक मतों से पटखनी मिली है। साफ है कि जाटों का साथ उसे नहीं मिला। दिल्ली जा रहे किसानों में भी अधिकतर किसान जाट समुदाय से ही आते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी 40 सीटों पर ही सिमट गई थी। तब भी यही माना गया था कि जाटों ने बीजेपी को नकार दिया है। यही वजह रही कि जाटों की पार्टी मानी जाने वाली दुष्यंत चौटाला की जन नायक जनता पार्टी के 10 विधायकों के सहयोग से उसे सरकार बनानी पड़ी। अब दुष्यंत चौटाला को भी यही भय सताने लगा है कि कहीं उनका जनाधार न साफ हो हजाए। लिहाजा, पहले तेवर दिखा रही सरकार अब दबाव में है।
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