महज 12 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हिमाचल प्रदेश में हुए चार उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन से खाली हुई अर्की के साथ जुब्बल कोटखाई और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के किले मंडी को भी कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने ध्वस्त कर दिया है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा के राज्य हिमाचल प्रदेश में हुई बीजेपी की इस हार की गूंज बहुत दूर तलक जाने वाली है। सेमीफाइनल की लड़ाई (जयराम ठाकुर जैसा चुनाव प्रचार में कह रहे थे) में बुरी तरह चित हुई बीजेपी फाइनल (2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव) में खतरे को भांप दहशत में आ गई है। शायद यही वजह है कि महंगाई के नाम पर विपक्ष का मजाक उड़ाने वाले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अब कह रहे हैं कि महंगाई की वजह से वह हारे हैं।
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सीएम के गृह जिले मंडी के संसदीय उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी खुशाल ठाकुर की कांग्रेस की प्रतिभा सिंह के हाथों हुई हार कोई सामान्य हार नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी राम स्वरूप शर्मा ने चार लाख से अधिक मतों से यहां जीत हासिल कर रिकार्ड बनाया था। उसके महज दो साल बाद ही बीजेपी को मिली मात के मायने हैं। बीजेपी को यह झटका तब लगा है जब मंडी लोकसभा क्षेत्र में आते 17 विधानसभा क्षेत्रों में से 14 में बीजेपी के विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के महज तीन ही विधायक हैं।
दरअसल, यह बीजेपी के दंभ की हार है। मंडी में आम जनता के बीच वह सारे मुद्दे थे, जो बीजेपी नकार रही थी। कोरोना की त्रासदी का दर्द, महंगाई की आह जनता के बीच समायी हुई थी। बात करते-करते करते लोगों का दर्द उनके आंसुओं में छलक रहा था। बावजूद इसके मतदाता खामोश था, लेकिन अंडर करंट साफ था। मतदान से पहले मंडी शहर के बीचों-बीच मुख्यमंत्री की एक सभा में छाई उदासी के बीच खाली पड़ी कुर्सियां इस बात का संकेत थीं कि झटका लगने वाला है।
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मंडी संसदीय क्षेत्र की गली-गली में खाक छानना भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को अपने गृह जिले में नहीं बचा पाया। यहां तक कि तीन दर्जन से ज्यादा सभाएं तो जयराम ठाकुर ने अपने विधानसभा क्षेत्र मंडी के सराज में की थीं। जयराम ठाकुर पर तमगा ही यही था कि वह सिराज के सीएम बनकर रह गए हैं। हर सभा में वह इसी बात की दुहाई देते हुए कह रहे थे कि मंडी उनकी थी, उनकी है और उनकी ही रहेगी। मंडी में हार-जीत को हिमाचल में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में फतह के लिए पहली सीढ़ी माना जा रहा था। जाहिर है इस हार से भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व भी सवालों के घेरे में है।
बतौर सीएम चार साल से हिमाचल में सरकार चला रहे जयराम की कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रेमकुमार धूमल के हारने के बाद संयोग से मिली कुर्सी के चलते उन्हें मिला एक्सीडेंटल सीएम का तमगा भी वह धो नहीं पाए हैं।
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बीजेपी का सैनिक कार्ड भी मंडी में काम नहीं आया। कारगिल युद्ध के हीरो कहे जाते रहे ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह को मैदान में उसने इसीलिए उतारा था। मंडी संसदीय हलके में पूर्व सैनिकों के अच्छे-खासे वोट हैं, लेकिन यह दांव भी फेल रहा। तीन विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी का यही हाल रहा। जुब्बल कोटखाई में कांग्रेस के रोहित ठाकुर ने 6293 मतों से बाजी मार ली तो कांगड़ा जिला की फतेहपुर सीट पर कांग्रेस के भवानी सिंह पठानिया ने कब्जा जमा लिया है। भवानी पठानिया को 24449 व बीजेपी के बलदेव ठाकुर को 18660 मत मिले।
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन से खाली हुई अर्की में कांग्रेस प्रत्याशी संजय अवस्थी ने 3277 मतों के अंतर से जीत हासिल की है।
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