मीडिया में शोर बहुत है कि बीजेपी बंगाल में कई सीटें जीत सकती हैं, लेकिन ऐसी कोई सीट फिलहाल दिख नहीं रही है। आखिरी चरण में जितनी सीटें हैं, उनमें दो को छोड़कर सभी सीटों पर बीजेपी पिछली बार तीसरे स्थान पर रही थी। अन्य दो में से एक सीट पर चौथे स्थान पर रही थी जबकिनसिर्फ एक पर मुकाबले में रही थी।
बीजेपी के संतोष के लिए उसी कोलकाता उत्तर सीट पर सबसे पहले बात की जाए जिस पर वह पिछली बार नंबर दो पर रही थी। पार्टी ने अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा को ही यहां उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला उन्हीं तृणमूल सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय से है जिनसे वह 2014 में हार गए थे। तब तृणमूल को बीजेपी से 10 प्रतिशत से भी ज्यादा अधिक मत मिले थे। बीजेपी की असली चुनौती है कि वह अपना पिछला मत प्रतिशत बनाए रखे।
जयनगर में बीजेपी 2014 में चौथे पायदान पर थी। इस बार उसने अपना उम्मीदवार बदल दिया है। लेकिन इससे उसके मत प्रतिशत में किस तरह बढ़ोतरी होगी, यह समझना मुश्किल ही है।
दमदम में पिछली बार बीजेपी तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के बाद तीसरे पायदान पर रही थी। इसी तरह बारासात में बीजेपी तृणमूल कांग्रेस और फॉरवर्ड ब्लॉक के बाद तीसरे पायदान पर रही थी। पिछली बार बीजेपी ने यहां प्रसिद्ध जादूगर पीसी सरकार के परिवार के जूनियर सरकार को टिकट दिया था, मगर उनका जादू विफल रहा था। इस बार उसने अपना उम्मीदवार बदल दिया है।
बसीरहाट में भी बीजेपी तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई के बाद तीसरे पायदान पर रही थी। यहां भी इस बार बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है। मथुरापुर में बीजेपी 5 फीसदी मत के साथ तीसरे पायदान पर रही थी। यहां भी बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है। डायमंड हार्बर में भी बीजेपी तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के बाद तीसरे पायदान पर रही थी। यहां भी बीजेपी ने इस बार अपना उम्मीदवार बदला है।
यही हाल जादवपुर का है। यहां भी बीजेपी पिछली बार तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के बाद तीसरे पायदान पर रही थी। यहां भी उसने उम्मीदवार बदला है। कोलकाता दक्षिण में पिछली बार बीजेपी ने तथागत रॉय को उम्मीदवार बनाया था। चुनाव हारने के बाद उन्हें राज्यपाल बना दिया गया। इस बार बीजेपी ने चंद्र कुमार बोस को अपना उम्मीदवार बनाया है।
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आखिरी चरण में झारखंड की तीन सीटों पर वोटिंग है, जिनमें से दो पर बीजेपी पिछला चुनाव भी हार गई थी। इनमें से राजमहल में बीजेपी ने उसी प्रत्याशी पर अपना दांव लगाया है जिनकी पिछली बार हुई थी। दुमका में तो बीजेपी अपनी बेहतरी सोच भी नहीं सकती। यहां से झारखंड मुक्तिमोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन उम्मीदवार हैं। पिछली बार उनके सामने रहे झारखंड विकास मोर्चा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का इस बार सोरेन को समर्थन है। ऐसे में, बीजेपी के लिए यहां स्पेस ही नहीं है।
गोड्डा में बीजेपी के निशिकांत दुबे पिछली बार जीत गए थे, क्योंकि झारखंड विकास मोर्चा, जेएमएम और कांग्रेस में वोटों का बंटवारा हो गया था। इस बार तीनों मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इस स्थिति में इस सीट पर नतीजे का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
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बिहार को लेकर बीजेपी और एनडीए में इस बार वैसे भी असमंजस है। उन्हें अपनी परफार्मेन्सको लेकर संदेह है। ऐसा होने की वजह भी है। जैसे, पटना साहिब ऐसी सीट है जो बीजेपी के लिए अब तक सुरक्षित मानी जाती थी। यहां से फिल्म कलाकार पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा सांसद थे। मगर नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने उन्हें पूरे पांच साल साइडलाइन किए रखा और इस बार टिकट नहीं दिया। इससे आजिज आकर उन्हें कीर्ति आजाद और नवजोत सिंह सिद्धू की तरह कांग्रेस ज्वाइन करना पड़ा और वह इस सीट पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को चुनौती दे रहे हैं। प्रसाद की खासियत रही है कि उन्हें किसी प्रत्यक्ष चुनाव में जीत का अनुभव नहीं है। वह सब दिन राज्यसभा में रहे हैं।
बगल की पाटलिपुत्र सीट पर केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव बीजेपी उम्मीदवार हैं। वह कभी लालू प्रसाद यादव-राबड़ी देवी परिवार के विश्वासपात्र थे। पिछली बार उन्होंने पाला बदला था और इसीलिए पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था। मगर इस बार लालू की बेटी राज्यसभा सदस्य मीसा भारती उन्हें तगड़ी चुनौती दे रही हैं। 2014 में मीसा बहुत कम अंतर से रामकृपाल यादव से चुनाव हारी थीं।
कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने आरा सीट सीपीआई (माले) को दी है। बीजेपी यह सीट पिछली बार 44 फीसदी से भी कम मत लेकर जीत गई थी। मगर इस बार बीजेपी विरोधी मतों की गोलबंदी से बीजेपी परेशान है। बक्सर में भी बीजेपी के अश्विनी चैबे मतों के विभाजन के कारण जीत गए थे। मगर इस बार जगदानंद सिंह महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर खड़े हैं।
कुछ दिनों पहले तक उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने यहां उदय नारायण राय को अपना उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी के लिए यह एक कांटे की तरह है।
काराकाट में स्थिति दूसरी है। पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ थे, इस बार बिहार में गठबंधन के साथ हैं। इसलिए एनडीए उम्मीदवार के लिए इस बार मुश्किल हो रही है। ध्यान रहे, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने 2014 में बिहार में एनडीए की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।
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प्रधानमंत्री मोदी ने छठे फेज की वोटिंग आते-आते स्वर्गीय राजीव गांधी पर बेवजह के आरोप सिर्फ इसलिए लगाए ताकि बीजेपी दिल्ली-पंजाब में मुंह दिखाने की स्थिति में आ जाए। लेकिन इसका फायदा न तो दिल्ली में मिलता दिखा, न यह मंशा पंजाब में पूरी होती दिख रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जिस वजह से बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के लिए अब स्पेस और कम हो गए हैं। इसी वजह से गुरदासपुर में भी उसकी हालत अच्छी नहीं है।
फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना ने बीजेपी के लिए यह सीट 2014 में 1.36 लाख के बड़े अंतर से जीती थी। मगर उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने करीब दो लाख वोटों के अंतर से यह सीट जीत ली। बीजेपी ने इस बार फिल्म अभिनेता सनी देओल को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन उनकी हालत इससे ही समझी जा सकती है कि सनी के पिता बुजुर्ग फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र ने प्रचार के लिए यहां पहुंचने पर कहा कि अगर उन्हें पता होता कि स्वर्गीय बलराम जाखड़ के बेटे सुनील जाखड़ यहां से कांग्रेस उम्मीदवार हैं, तो वह सनी को चुनाव नहीं लड़ने को कहते।
अमृतसर सीट तो, वैसे ही, बीजेपी के लिए मुश्किल है। 2014 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अरुण जेटली को यहां शिकस्त दी थी। यह बात दूसरी है कि वकील जेटली को मोदी रक्षा, वित्त-जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय देते रहे। खैर..जब अमरिंदर मुख्यमंत्री बने और यहां उपचुनाव हुए तो बीजेपी को 2014 की अपेक्षा 80,000 कम मत मिले जबकि आम आदमी पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा।
खडूर साहिब सीट पर शिरोमणि अकाली दल के रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा पिछली बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मतों में विभाजन के कारण चुनाव जीत गए थे। मगर इस बार शिरोमणि अकाली दल ने ब्रह्मपुरा का टिकट काटकर जागीर कौर को उम्मीदवार बनाया है।
जालंधर सीट पर एनडीए 2014 में भी बड़े मतों के अंतर से हार गई थी। लुधियाना में पिछली बार एनडीए मुख्य लड़ाई में भी नहीं थी। यहां कांग्रेस जीती थी जबकि आम आदमी पार्टी दूसरे पायदान पर रही थी। होशियारपुर में बीजेपी पिछली बार कांग्रेस से काफी कम 1.5 प्रतिशत मत के अंतर से जीत गई थी। इस बार मुश्किल देखकर बीजेपी ने उम्मीदवार बदल दिया है।
आनंदपुर साहिब में पिछली बार शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस को काफी कम लगभग 2 फीसदी मतों के अंतर से हराया था। मगर इस बार कांग्रेस के मनीष तिवारी यहां बहुत अच्छी स्थिति में दिख रहे हैं। फतेहगढ़ साहिब और फरीदकोट में 2014 में आम आदमी पार्टी जीती थी, मगर इस बार दोनों ही जगह कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है।
फिरोजपुर में पिछली बार शिरोमणि अकाली दल काफी कम मतों के अंतर से जीत गई थी। मगर इस बार शिरोमणि अकाली दल के सांसद शेर सिंह घुबाया कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। बठिंडा सीट भी पिछली बार शिरोमणि अकाली दल ने काफी कम 2 प्रतिशत मतों के अंतर से जीती थी।
संगरूर में आप पार्टी के भगवंत मान और कांग्रेस के केवल सिंह ढिल्लों के बीच ही लड़ाई है। पटियाला में भी कांग्रेस की परनीत कौर काफी मजबूत हालत में हैं। वहीं केंद्र शासित चंडीगढ़ में फिल्म अभिनेत्री सांसद किरण खेर इस बार मुश्किल में हैं क्योंकि पिछले पांच साल के दौरान उन्होंने क्षेत्रीय विकास के लिए कम ही काम किया। इस वजह से 2004 और 2009 में यहां से जीते कांग्रेस उम्मीदवार पवन बंसल मजबूत स्थिति में माने जा रहे हैं।
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पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के वापस कांग्रेस में आ जाने से मंडी सीट पर स्थिति पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त सुखराम बीजेपी में थे, इस कारण ही इस इलाके की कई सीटों पर बीजेपी जीत गई थी।
कांगड़ा सीट ऐसी है जहां बीजेपी दो बार जीतने के बाद कांग्रेस से हार जाती है। बीजेपी दो बार से यहां जीत रही थी। वैसे, बीजेपी ने यहां जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का टिकट काटा, उससे भी उसकी स्थिति बदतर हुई है। इस वजह से कांग्रेस के पवन काजल काफी मजबूत दिख रहे हैं।
हमीरपुर में बीजेपी सांसद अनुराग सिंह ठाकुर की स्थिति कमजोर मानी जा रही है क्योंकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समर्थक ही अनुराग को हराने में लगे बताए जाते हैं। शिमला सीट पर अपनी कमजोर स्थिति देखकर बीजेपी ने अपने लगातार दो बार के सांसद वीरेंदर कश्यप का टिकट काटकर सुरेश कश्यप को टिकट दिया है।
पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर तो खरगौन, धार, रतलाम और देवास सीटें तो कांग्रेस को मिलनी ही चाहिए। विधानसभा चुनाव में 8 में से खरगोन की 6 और धार की 6 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। इसी तरह रतलाम की 5 और उज्जैन की 5 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। विधानसभा चुनाव में देवास में कांग्रेस और बीजेपी ने चार-चार सीटें जीती थीं।
मंदसौर और इंदौर में विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बेहतर किया था। लेकिन इंदौर में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का टिकट जिस तरह बीजेपी ने काटा, उससे बीजेपी समर्थक वोटर भी नाराज बताए जाते हैं। मंदसौर में कांग्रेस ने मीनाक्षी नटराजन को उम्मीदवार बनाया है और वह अच्छी स्थिति में मानी जाती हैं।
(आंकड़े: अभय कुमार)
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