मध्य प्रदेश में 15 साल तक शासन करने के बाद भी बीजेपी को इस लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। क्या उसकी ताकत इतनी कम हो गई है कि उसे उम्मीदवारों के लिए इधर-उधर देखना पड़ रहा है? साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से उतारकर बीजेपी ने खुले तौर पर मान लिया है कि अब उसके बाद मध्य प्रदेश में ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके दम पर पार्टी चुनाव जीतने की उम्मीद बांध सके और जो भोपाल से कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला कर सके।
साध्वी प्रज्ञा के नाम का ऐलान होने से राजनीतिक विश्लेषक हैरान हैं। साध्वी से जीत की उम्मीद करना या उमा भारती का प्रदर्शन दोहराने की अपेक्षा करना नाइंसाफी होगी। उमा भारती भोपाल से एक बार जीत चुकी हैं, लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव ही लड़ने से इनकार कर दिया है।
साध्वा प्रज्ञा अपने भाषणों और चुनावी सभाओं में अपनी जीत के दावे तो कर सकती हैं, लेकिन क्या वह बेरोजगारी, किसान संकट, पानी और बिजली जैसे मुद्दों के साथ ही मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर कोई जवाब या समाधान सामने रख सकती हैं?
बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में अपने 26 में से 14 मौजूदा सांसदों को टिकट देने से इनकार कर दिया है। लेकिन उनकी जगह कौन उम्मीदवार बने इसे लेकर उसे पसीने आ रहे हैं। राज्य की इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, विदिशा और खजुराहो जैसी अहम सीटों पर उसके पास कोई राजनीतिक उम्मीदवार है ही नहीं। दरअसल इन सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों की राजनीतिक या प्रशासनिक क्षमता के बजाय आरएसएस की हिंदुत्व विचारधारा पर ज्यादा भरोसा करती दिख रही है।
क्या इसकी वजह यह है कि शिवराज चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, उमा भारती और सुमित्रा महाजन जैसे बीजेपी के कद्दावर नेताओं को राजनीतिक हवा का एहसास हो गया है और उन्होंने खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया है।
इंदौर की ही बात करें, तो बीजेपी ने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को टिकट देने से इनकार कर दिया और शंकर लालवानी जैसे एक अनजान से चेहरे पर दांव खेला है। लालवानी को अब सुमित्रा महाजन की नाराजगी और उनके प्रतिद्वंदी कैलाश विजयवर्गीय का सामना करना पड़ेगा और ऐसे में अगर यहां बीजेपी की किला भरभराकर गिर पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
उधर भोपाल की ही तरह खुजराहो से भी बीजेपी ने आरएसएस की पसंद के उम्मीदव विष्णु दत्त को उतारा है। पहले विष्णु दत्त का नाम भोपाल के लिए सामने आया था, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते उन्हें खजुराहो भेज दिया गया।
वैसे बीजेपी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाने से पार्टी में कोई उत्साह नहीं है। बाबूलाल गौड़ और उमाशंकर गुप्ता जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर ‘बाहरी’ का तमगा लगा चुके हैं। ऐसे में ‘बाहरी प्रज्ञा’ को पार्टी का समर्थन मिलेगा, इसमें संदेह है।
प्रज्ञा ठाकुर भड़काऊ भाषण देने के लिए जानी जाती हैं। उनका दावा है कि वे धर्म युद्ध के लिए मैदान में उतरी हैं। उनके जिम्मे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना है ताकि करीब 18 लाख मतदाताओं वाले निर्वाचन क्षेत्र में राजपूतों और मुस्लिमों के बीच वोटों का बंटवारा हो सके।
वैसे भोपाल सीट पर बीजेपी का 1989 से कब्जा रहा है। कांग्रेस ने आखिरी बार 1984 में यह सीट जीती थी, जब पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा यहां के सांसद बने थे।
प्रज्ञा ठाकुर मध्य प्रदेश के भिंड जिले के लाहर इलाके में पैदा हुई थीं और उनका संघ से पुरान रिश्ता है। वह पहली बार चुनावी मैदान में है, इसलिए अगर हार भी गईं तो उनका कुछ नहीं जाता, लेकिन बीजेपी को इससे बड़ा झटका लगेगा।
इस बीच प्रज्ञा की उम्मीदवारी को चुनौती दी जा चुकी है क्योंकि उनपर आतंकवाद के आरोप हैं। प्रज्ञा संघ की छात्र शाखा विद्यार्थी परिषद और दुर्गा वाहिनी के साथ काम कर चुकी हैं।
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